Border Dispute: मोदी-जिनपिंग की बातचीत, क्या देश को 65 में से 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स से खोया अधिकार वापस मिलेगा
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चीन के राष्ट्रपति अगले माह जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दिल्ली आएंगे। उस दौरान दोनों देशों के बीच अनौपचारिक बातचीत हो सकती है। देखने वाली बात यह होगी कि क्या लद्दाख में भारत को 65 में से 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स से खोया अधिकार वापस मिल जाएगा।
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विस्तार
चीन के राष्ट्रपति अगले माह जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं। उस दौरान दोनों देश के नेताओं के बीच अनौपचारिक बातचीत हो सकती है। देखने वाली बात यह होगी कि क्या लद्दाख में भारत को 65 में से 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स से खोया अधिकार वापस मिल जाएगा। 15वें ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 24 अगस्त को एक अनौपचारिक एवं संक्षिप्त वार्ता हुई है। दोनों देशों के बीच 'लद्दाख' बॉर्डर पर जारी तनाव कम करने के लिए पीएम मोदी और जिनपिंग ने बातचीत की।
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में 'लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल' (एलएसी) पर 2020 से तनाव चल रहा है। दोनों मुल्कों के सैन्य अधिकारियों के बीच सीमा विवाद का हल निकालने के लिए 19 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक मामले का समाधान नहीं हो सका। चीन के राष्ट्रपति अगले माह जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दिल्ली पहुंच रहे हैं। उस दौरान भी मोदी और जिनपिंग के बीच अनौपचारिक बातचीत हो सकती है। देखने वाली बात यह होगी कि इन वार्ताओं के बीच क्या लद्दाख में भारत को 65 में से 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स से खोया अधिकार वापस मिल जाएगा।
इससे पहले एससीओ की बैठक में मिले थे मोदी-जिनपिंग ...
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को ब्रिक्स सम्मेलन में सभी सदस्य राष्ट्रों के नेताओं के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को संक्षिप्त बातचीत करते हुए देखा गया। हालांकि, पीएम मोदी ने जब ब्रिक्स बिजनेस फोरम की बैठक को संबोधित किया तो उस वक्त शी जिनपिंग मौजूद नहीं थे। उन्होंने चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेनटाओ को उस बैठक में भेजा था।
जानकारों का कहना है कि इससे पहले दोनों नेताओं के बीच जब कभी इस तरह की संक्षिप्त बातचीत हुई है, उसमें पीएम मोदी ने सीमा विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान निकालने पर जोर दिया है। ब्रिक्स सम्मेलन से पहले इन दोनों नेताओं ने गत वर्ष उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुई शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक में मंच साझा किया था। हालांकि उस वक्त भी दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई थी।
लोकसभा में भी उठ चुका है पेट्रोलिंग पॉइंट्स का मुद्दा ...
पिछले दिनों लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान यह मुद्दा उठा था। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने चीन से लगती सीमा पर पैट्रोलिंग पॉइंट्स को लेकर मोदी सरकार से कई सवाल पूछे थे। उन्होंने पूछा, क्या चीन बॉर्डर पर 65 में से 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स से हमने अपना अधिकार खो दिया है। क्या 'बफर' जोन भी भारत की जमीन में बने हैं। भारत और चीन के बीच मिलिट्री टॉक्स के 18 राउंड पूरे होने के बाद क्या नतीजा निकला है। हमारे बहादुर जवान, चीन का मुकाबला कर रहे हैं। दूसरी तरफ चीन के साथ भारत का व्यापार बढ़ता जा रहा है। तिवारी ने पूछा, क्या आक्रमण करने के पैसे हम चीन को दे रहे हैं।
सिक्योरिटी रिसर्च पेपर में हुआ था खुलासा ...
गत जनवरी में दिल्ली में आयोजित डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन में एक विस्तृत सिक्योरिटी रिसर्च पेपर में भारत के क्षेत्र पर चीन के अवैध कब्जे जैसी स्थिति सामने आई थी। उस पेपर में कई तरह के खुलासे हुए थे। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में उसी सम्मेलन का हवाला देते हुए पूछा था कि भारत ने 65 पैट्रोलिंग पॉइंट्स (पीपी) में से 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स पर क्या अपना अधिकार खो दिया है। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि मई 2020 से पहले भारत सभी 65 पैट्रोलिंग पॉइंट्स पर पैट्रोलिंग करता था। गलवान में मई 2020 के दौरान ही भारत के 20 बहादुरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भाग लिया था।
26 पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर खोया अधिकार ...
रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने अब 65 पैट्रोलिंग पॉइंट्स (पीपी) में 26 पैट्रोलिंग पॉइंट्स पर अपना अधिकार खो दिया है। मई 2020 से पहले भारत सभी 65 पैट्रोलिंग पॉइंट्स पर पैट्रोलिंग करता था। पेपर में कहा गया, वर्तमान में, काराकोरम दर्रे से लेकर चुमुर तक 65 पीपी हैं, जिन्हें आईएसएफ (भारतीय सुरक्षा बल) द्वारा नियमित रूप से गश्त किया जाना है। 65 पीपी में से, 26 पीपी (यानी पीपी नंबर 5-17, 24-32, 37, 51,52,62) में हमारी उपस्थिति प्रतिबंधात्मक या आईएसएफ (भारतीय सुरक्षा बलों) द्वारा गश्त नहीं करने के कारण खो गई है। बाद में चीन, भारत को यह तथ्य स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है कि इन क्षेत्रों में लंबे समय से आईएसएफ या नागरिकों की उपस्थिति नहीं देखी गई है।
भारत इन क्षेत्रों पर नियंत्रण खो देता है ...
इसके बाद भारतीय सीमा की ओर आईएसएफ के नियंत्रण वाले सीमा क्षेत्र में बदलाव होता है। ऐसे सभी पॉकेट को बफर जोन बना दिया जाता है, जिससे भारत इन क्षेत्रों पर नियंत्रण खो देता है। इंच दर इंच जमीन हड़पने की पीएलए की इस चाल को 'सलामी स्लाइसिंग' के नाम से जाना जाता है। रिसर्च पेपर में कहा गया है कि सितंबर 2021 तक, जिला प्रशासन और सुरक्षा बलों के वरिष्ठ अधिकारी डीबीओ सेक्टर में काराकोरम दर्रे (दौलत बेग ओल्डी से 35 किमी) तक आसानी से गश्त कर रहे थे। हालांकि, दिसंबर 2021 में भारतीय सेना द्वारा डीबीओ पर चेक पोस्ट के रूप में स्वतः प्रतिबंध लगाए गए थे, जिससे काराकोरम पास तक जाने के लिए रोक लग जाए।
आईएसएफ द्वारा रेबोस चराई पर प्रतिबंध ...
बिना फेंस वाली सीमाएं चांगथांग क्षेत्र (रेबोस) के खानाबदोश समुदाय के लिए चरागाह के रूप में काम कर रही थी। समृद्ध चरागाहों की कमी को देखते हुए, वे परंपरागत रूप से पीपी के करीब के क्षेत्रों में उद्यम करते हैं। पेपर में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि 2014 के बाद से, आईएसएफ द्वारा रेबोस वाले क्षेत्रों में चराई पर प्रतिबंध लगाया गया है। भारतीय सैनिकों को विशेष रूप से पीएलए द्वारा आपत्ति की जा सकने वाली उच्च पहुंच पर रेबोस की आवाजाही को रोकने के लिए वेश बदलकर तैनात किया जाता है। इसी तरह डेमचोक, कोयल जैसे सीमावर्ती गांवों में विकास कार्य, पीएलए की प्रत्यक्ष इलेक्ट्रॉनिक निगरानी में हैं। वहां पर पीएलए द्वारा तुरंत आपत्ति जताई जा सकती है।