{"_id":"69245af38137d6a8a60be5dc","slug":"defence-clash-between-former-ordnance-factory-board-and-new-dpsus-over-corporatisation-of-ordnance-factories-2025-11-24","type":"story","status":"publish","title_hn":"Defence: पूर्ववर्ती ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड और नए डीपीएसयू के बीच टकराव, आयुध कारखानों के निगमीकरण का विरोध","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
Defence: पूर्ववर्ती ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड और नए डीपीएसयू के बीच टकराव, आयुध कारखानों के निगमीकरण का विरोध
डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला
Published by: कुमार विवेक
Updated Mon, 24 Nov 2025 08:01 PM IST
सार
भारत सरकार ने 2021 में 41 आयुध कारखानों का निगमीकरण किया था। इन कारखानों को सात डीपीएसयू में पुनर्गठित किया गया। एआईडीईएफ और बीपीएमएस सहित कर्मचारी संघों ने इस निर्णय का विरोध किया। इस मामले में अब भी टकराव जारी है। आइए इस बारे में विस्तार से जानें।
विज्ञापन
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 के लिए बनी समिति
- फोटो : ANI
विज्ञापन
विस्तार
यूनाइटेड फोरम ऑफ ऑर्डनेंस एम्प्लॉइज (यूएफओई) और पूर्ववर्ती ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से बने सात नए रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू) के बीच एक नया टकराव शुरू हो गया है। वजह, कर्मचारियों के समावेश का विवादास्पद मुद्दा, निगमीकरण के पांच साल बाद भी नहीं सुलझ नहीं सका है।
Trending Videos
भारत सरकार ने 2021 में 41 आयुध कारखानों का निगमीकरण किया था। इन कारखानों को सात डीपीएसयू में पुनर्गठित किया गया। एआईडीईएफ और बीपीएमएस सहित कर्मचारी संघों ने इस निर्णय का विरोध किया। कर्मचारियों ने दिवंगत मनोहर पर्रिकर सहित पूर्ववर्ती रक्षा मंत्रियों की इस प्रतिबद्धता का हवाला दिया कि आयुध कारखानों का निगमीकरण नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद निगमीकरण कर दिया गया।
विज्ञापन
विज्ञापन
एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, यह मामला मद्रास उच्च न्यायालय भी पहुच चुका है। न्यायालय ने निगमीकरण को एक नीतिगत निर्णय माना, लेकिन सरकार की लिखित प्रतिबद्धता-विशेषकर उसके हलफनामे के पैरा 55(क) और (ख)—पर जोर दिया कि कर्मचारी तब तक केंद्र सरकार के कर्मचारी बने रहेंगे, जब तक कि वे आमेलन का विकल्प न चुनें। रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) ने सात नए डीपीएसयू के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशकों को निगमों द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किए गए आमेलन पैकेज के मसौदे पर हितधारकों के साथ परामर्श करने का निर्देश दिया।
सचिव (रक्षा उत्पादन) ने 10 नवंबर को एक बैठक आयोजित की। सभी मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों से इस बैठक में भाग लेने का आग्रह किया गया। 'यूएफओई' ने 'डीपीएसयू' के साथ बैठकों को अस्वीकार कर दिया। 20 नवंबर को एक वर्चुअल बैठक में, यूएफओई ने सर्वसम्मति से नए डीपीएसयू के 'सीएमडी' द्वारा आयोजित किसी भी बैठक में शामिल न होने का संकल्प लिया।
वजह, 41 कारखानों के 80 प्रतिशत से अधिक रक्षा असैन्य कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के कर्मचारी बने रहने के लिए पहले ही अग्रिम विकल्प प्रस्तुत कर दिए हैं। 863 आईओएफएस अधिकारियों ने भी इसी तरह के अनुरोध प्रस्तुत किए हैं। यूएफओई इस बात पर जोर दे रहा है कि उच्च न्यायालय के समक्ष बतौर वादा, पेश की गई सेवा शर्तों को बरकरार रखा जाए। सीएमडी की पहली परामर्श बैठक 26 नवंबर को देहरादून में निर्धारित है। इसके बाद कानपुर, कोलकाता, चेन्नई, पुणे और जबलपुर में बैठकों के सत्र आयोजित होंगे। ये सत्र, 27 दिसंबर को समाप्त होंगे। यूएफओई ने 21 नवंबर को डीडीपी और सभी सात सीएमडी को अपना निर्णय बता दिया है। यूएफओई ने कहा है कि डीपीएसयू के नेतृत्व में अवशोषण पैकेजों पर होने वाली चर्चाओं में कोई भागीदारी नहीं होगी।
वे अपनी सेवानिवृत्ति तक केंद्र सरकार के कर्मचारी बने रहने के तौर-तरीकों पर केवल डीडीपी के साथ बातचीत करने को तैयार हैं। सीजी सेवा का दर्जा, लाभ और सुरक्षा की गारंटी देने वाली एक औपचारिक अधिसूचना जारी करने की पुनः अपील, जो मद्रास उच्च न्यायालय में सरकार के हलफनामे के अनुरूप हो, की गई है। कर्मचारियों द्वारा अवशोषण में शामिल होने से इनकार करने के कारण, सरकार एक गंभीर गतिरोध का सामना कर रही है।
डीपीएसयू को दिया गया आदेश अवशोषण पैकेज पर परामर्श करने का था, न कि केंद्र सरकार के प्रतिधारण पर बातचीत करने का। उच्च न्यायालय के समक्ष दर्ज प्रतिबद्धताओं के अनुसार, सरकार कर्मचारियों को डीपीएसयू में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।
सी. श्रीकुमार ने इस मुद्दे को 'प्रतिष्ठा की लड़ाई' के रूप में देखने के खिलाफ चेतावनी दी है। उन्होंने कहा, सरकार अपने ही कर्मचारियों की सेवा शर्तों से समझौता नहीं कर सकती। ये कर्मचारी केंद्र सरकार के कर्मचारियों के रूप में आयुध कारखानों में शामिल हुए थे। वे अपनी सुरक्षित सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देकर उन रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में क्यों शामिल हों, जो ऑर्डर के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
उन्होंने आगे तर्क दिया है कि आयुध कारखाने युद्ध भंडार के रूप में काम करते हैं, न कि लाभ-संचालित कंपनियों के रूप में। रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों को निजी रक्षा निर्माताओं के साथ असमान प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
एकमात्र व्यावहारिक समाधान एक अधिसूचना जारी करना है, जिसमें सभी 58,000 से अधिक रक्षा असैन्य कर्मचारियों को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के रूप में प्रतिनियुक्ति पर रखा जाए, जैसा कि प्रसार भारती के गठन के बाद ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के कर्मचारियों के लिए अपनाया गया था। अब यह गतिरोध बढ़ता जा रहा है, क्योंकि डीपीएसयू छह राष्ट्रव्यापी परामर्शों की तैयारी कर रहे हैं। इनमें कर्मचारी शामिल होने से इनकार कर रहे हैं। अब अगला कदम पूरी तरह से भारत सरकार की इच्छा पर निर्भर है। सरकार को अपनी निगमीकरण नीति को कानूनी रूप से दर्ज प्रतिबद्धताओं और बढ़ते कर्मचारी असंतोष के साथ संतुलित करना होगा।