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Air Defence: क्या है भारत की हवाई रक्षा ढाल, कैसे नाकाम किए पाकिस्तान के सारे वार; कितने वर्षों में हुई तैयार?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Wed, 14 May 2025 02:40 PM IST
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सार
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भारत की रक्षा करने के लिए तैनात एयर डिफेंस ग्रिड।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
भारत के ऑपरेशन सिंदूर से बौखलाए पाकिस्तान ने 7 मई से लेकर 10 मई के बीच जब-जब एलओसी के पार हमला करने की कोशिश की, तब-तब भारत की हवाई रक्षा प्रणाली ने उसके वारों को न सिर्फ नाकाम किया, बल्कि उसके हथियारों को तबाह भी कर दिया। भारत के एयर डिफेंस सिस्टम की दुश्मन को मुहंतोड़ जवाब देने की यह क्षमता पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी है और इसकी तुलना अमेरिका और इस्राइल जैसे देशों के एयर डिफेंस सिस्टम से होने लगी है।ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर भारत को दुश्मन के लगभग हर वार से बचाने वाले इस एयर डिफेंस सिस्टम का निर्माण कैसे हुआ? यह प्रणाली कौन-कौन से हथियार और उपकरणों के जरिए खुद को अभेद्य बनाती है? भारत की वायुसेना और सेना की हवाई रक्षा प्रणाली सम्मिलित तौर पर कैसे काम करती है? साथ ही इसका भविष्य क्या है? आइये जानते हैं...
पहले जानें- अचानक चर्चा में क्यों है भारत की हवाई रक्षा शील्ड?
ऑपरेशन सिंदूर पर मीडिया ब्रीफिंग के दौरान भारतीय सेना के अफसरों ने पीछे लगी स्क्रीन पर भारत के इंटीग्रेटेड एयर कमांड और कंट्रोल सिस्टम (IACCS) की झलक दिखाई। डीजीएमओ की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अधिकारियों ने कहा कि भारत की हवाई रक्षा प्रणाली इस तरह की है कि अगर दुश्मन किसी एक परत से बच भी जाता है तो अगली परत उसे छोड़नी नहीं है।
इसके बाद मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब में स्थित आदमपुर बेस पहुंचे, जहां उनके पीछे एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को बिल्कुल ठीक स्थिति में दिखाया गया। यह पाकिस्तान के उन दावों को झुठलाने का सबूत बना, जिसमें दुश्मन सेना ने कहा था कि उसने भारत के आदमपुर बेस को नुकसान पहुंचाया और वहां एस-400 बैटरी को तबाह कर दिया। इसके बाद से ही भारत के आईएसीसीएस की चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी है।
ऑपरेशन सिंदूर पर मीडिया ब्रीफिंग के दौरान भारतीय सेना के अफसरों ने पीछे लगी स्क्रीन पर भारत के इंटीग्रेटेड एयर कमांड और कंट्रोल सिस्टम (IACCS) की झलक दिखाई। डीजीएमओ की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अधिकारियों ने कहा कि भारत की हवाई रक्षा प्रणाली इस तरह की है कि अगर दुश्मन किसी एक परत से बच भी जाता है तो अगली परत उसे छोड़नी नहीं है।
इसके बाद मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब में स्थित आदमपुर बेस पहुंचे, जहां उनके पीछे एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को बिल्कुल ठीक स्थिति में दिखाया गया। यह पाकिस्तान के उन दावों को झुठलाने का सबूत बना, जिसमें दुश्मन सेना ने कहा था कि उसने भारत के आदमपुर बेस को नुकसान पहुंचाया और वहां एस-400 बैटरी को तबाह कर दिया। इसके बाद से ही भारत के आईएसीसीएस की चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी है।
भारत में कैसे शुरू हुई एकीकृत रक्षा ग्रिड बनाने की तैयारी?
1. 1999भारत में इस तरह की रक्षा ग्रिड बनाने की तैयारी 1999 के करगिल संघर्ष के बाद हुई थी। दरअसल, इस दौरान यह साफ हो चुका था कि भारत को एक केंद्रीकृत और तकनीकी तौर पर बेहतर व्यवस्था की जरूरत है, जो कि अपने हवाई क्षेत्र और जमीनी क्षेत्र के अभियानों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर सके। इसके बाद भारत ने अपनी सैन्य संचार प्रणाली को बेहतर करने की ठानी।
2. 2003
इसी फैसले के मद्देनजर 2003 में आईएसीसीएस निदेशालय की स्थापना हुई और देशभर में एयर कमांड और कंट्रोल केंद्रों के डिजिटलीकरण की शुरुआत हुई।
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3. 2010
आईएसीसीएस ढांचे के निर्माण में एक अहम कदम इसी साल आया, जब वायुसेना के अपने नेटवर्क (एएफएनईटी) की लॉन्चिंग हुई। इसके तहत भारत ने 1950 से ही वायुसेना उपकरणों और हथियारों की कनेक्टिविटी के लिए इस्तेमाल होने वाले ट्रोपोस्कैटर सिस्टम्स (Troposcatter System) को बदला और खुद का डिजिटल संचार ग्रिड स्थापित किया।
AFNET ने भारतीय वायुसेना के दो कामों को आसान किया। पहला- इसने रक्षा संचार को आधुनिक बनाया और इसके अलावा राष्ट्रीय दूरसंचार ढांचे को बदलने में भी योगदान दिया। इस तकनीक की खूबियों को पेश करने के लिए पंजाब के एक एयरबेस में दो मिग-29 एयरक्राफ्ट्स के लक्ष्य भेदने के अभ्यास का लाइव प्रसारण किया गया। इसके बाद IACCS का पूरा फ्रेमवर्क, जिसमें हथियारों और उपकरणों को डिजिटल माध्यमों से जोड़ना था, उसे अलग-अलग चरणों में लागू किया गया।
आईएसीसीएस ढांचे के निर्माण में एक अहम कदम इसी साल आया, जब वायुसेना के अपने नेटवर्क (एएफएनईटी) की लॉन्चिंग हुई। इसके तहत भारत ने 1950 से ही वायुसेना उपकरणों और हथियारों की कनेक्टिविटी के लिए इस्तेमाल होने वाले ट्रोपोस्कैटर सिस्टम्स (Troposcatter System) को बदला और खुद का डिजिटल संचार ग्रिड स्थापित किया।
AFNET ने भारतीय वायुसेना के दो कामों को आसान किया। पहला- इसने रक्षा संचार को आधुनिक बनाया और इसके अलावा राष्ट्रीय दूरसंचार ढांचे को बदलने में भी योगदान दिया। इस तकनीक की खूबियों को पेश करने के लिए पंजाब के एक एयरबेस में दो मिग-29 एयरक्राफ्ट्स के लक्ष्य भेदने के अभ्यास का लाइव प्रसारण किया गया। इसके बाद IACCS का पूरा फ्रेमवर्क, जिसमें हथियारों और उपकरणों को डिजिटल माध्यमों से जोड़ना था, उसे अलग-अलग चरणों में लागू किया गया।
भारत कैसे करता है अपने हवाई क्षेत्र की रक्षा?
डीजीएमओ स्तर की प्रेस वार्ता में भारत की रक्षा ग्रिड का पूरा ब्योरा पेश किया गया। इसमें भारत के रक्षा ढांचे की एक-एक परत की जानकारी दी गई और बताया गया कि किस ऊंचाई और रेंज पर कौन सी परत सक्रिय होती है।
1. बाहरी परत
दुश्मन देश के किसी भी वार को नाकाम करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी इसी परत में लगे हथियारों की होती है। भारत इस परत में घुसने वाले दुश्मनों के हथियारों और उपकरणों से निपटने के लिए लंबी दूरी तक मार करने वाले प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करता है। उदाहरण के तौर पर एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम, जिसकी रेंज सामान्यतः 300 किलोमीटर तक है। इसके अलावा युद्ध के लिए तैयार लड़ाकू विमानों को भी इसी लेयर में तैनात किया जाता है, ताकि दुश्मन के हमलों को अंदर की परतों में जाने से रोका जा सके।
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3. अंदरूनी परत
यह परत आमतौर पर तब सक्रिय होती है, जब बाहर की सारी परतों से दुश्मन के हथियार नष्ट नहीं कर पातीं और कुछ-एक हथियारों के अंदरूनी स्थानों को निशाना बनाने की संभावना बन जाती है। हालांकि, भारत ने इस परत में भी कम ऊंचाई तक मार करने वाली तोपें, बंदूकें, जेडएसयू-23 शिल्का, मैनपैड्स (MANPADS), ड्रोन्स, आदि तैनात किए हैं। इनमें सबसे खतरनाक है एल-70 गन्स, जिनका अचूक निशाना किसी भी हथियार को मार गिरा सकता है।
यह परत आमतौर पर तब सक्रिय होती है, जब बाहर की सारी परतों से दुश्मन के हथियार नष्ट नहीं कर पातीं और कुछ-एक हथियारों के अंदरूनी स्थानों को निशाना बनाने की संभावना बन जाती है। हालांकि, भारत ने इस परत में भी कम ऊंचाई तक मार करने वाली तोपें, बंदूकें, जेडएसयू-23 शिल्का, मैनपैड्स (MANPADS), ड्रोन्स, आदि तैनात किए हैं। इनमें सबसे खतरनाक है एल-70 गन्स, जिनका अचूक निशाना किसी भी हथियार को मार गिरा सकता है।
थलसेना का आकाशतीर भी करता है रक्षा में मदद
- वायुसेना की तरह ही भारतीय थलसेना की भी हवाई रक्षा नियंत्रण प्रणाली है। इसका नाम आकाशतीर दिया गया है। आकाशतीर का निर्माण भी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की तरफ से किया गया है। 2023 में भारत के रक्षा मंत्रालय ने इसका कॉन्ट्रैक्ट सौंपा था।
- आकाशतीर का मुख्य काम हवाई क्षेत्र में नीचे उड़ान भर रहे हथियारों की निगरानी करना और वायुसेना के सिस्टम से समन्वय बिठाकर उन्हें हवा में ही खत्म करना है। फिलहाल इसे IACCS के साथ जोड़ने का काम किया जा रहा है।