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'समय पर पूरे नहीं होते डिफेंस प्रोजेक्ट': IAF चीफ क्यों निराश, कौन से प्रोजेक्ट अटके; इनमें देरी की क्या वजह?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Fri, 30 May 2025 08:16 PM IST
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सार
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वायुसेना प्रमुख एपी सिंह।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
भारत में बने हथियारों की दुनियाभर में हो रही चर्चा के बीच, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह इनके निर्माण में होने वाली देरी का मुद्दा उठाया है। बीते चार महीने में यह दूसरा मौका है जब वायु सेना प्रमुख रक्षा परियोजनाओं में हो रही देरी को लेकर मुखर हुए हैं। इससे पहले मौजूदा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने भी बीते साल सितंबर में कुछ ऐसा ही कहा था। उन्होंने कहा था कि भारत की रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया इतनी धीमी है कि सशस्त्र बल जिस दर से तकनीक को अपनाना चाहते हैं, उसमें काफी मुश्किल आती है।रक्षा परियोजनाओं में देरी का मुद्दा क्या है? कौन सी रक्षा परियोजनाएं वर्षों की देरी का सामना कर रही हैं? कौन से अफसर इससे पहले रक्षा परियोजनाओं में देरी का मुद्दा उठा चुके हैं? सरकारों ने इसे लेकर क्या कदम उठाए हैं? आइये जानते हैं...
रक्षा परियोजनाओं में कितनी देरी?
भारत में रक्षा परियोजनाओं में देरी की शिकायतें कोई नई नहीं हैं। 2014 में रक्षा मंत्रालय ने एक सूची जारी की थी, जिसमें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के उन प्रोजेक्ट्स की जानकारी दी गई थी जिनमें लंबी देरी हो चुकी थी। इनमें से परियोजनाएं अभी भी पूरे नहीं हुई हैं। इनमें देश के पहला स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस से लेकर एयरो इंजन कावेरी तक के नाम शामिल हैं।
IAF: 'ऐसा वादा क्यों करें जो पूरा न हो सके...'; रक्षा सौदों में हो रही देरी पर वायुसेना प्रमुख ने जताई चिंता
भारत में रक्षा परियोजनाओं में देरी की शिकायतें कोई नई नहीं हैं। 2014 में रक्षा मंत्रालय ने एक सूची जारी की थी, जिसमें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के उन प्रोजेक्ट्स की जानकारी दी गई थी जिनमें लंबी देरी हो चुकी थी। इनमें से परियोजनाएं अभी भी पूरे नहीं हुई हैं। इनमें देश के पहला स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस से लेकर एयरो इंजन कावेरी तक के नाम शामिल हैं।
IAF: 'ऐसा वादा क्यों करें जो पूरा न हो सके...'; रक्षा सौदों में हो रही देरी पर वायुसेना प्रमुख ने जताई चिंता
कौन सी परियोजना कितनी देरी से चल रही है?
1. लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके1 और एमके2इस प्रोजेक्ट को 1983 में मंजूरी मिली। 1994 में बनने की डेडलाइन रखी गई। कई प्रतिबंधों और आपूर्तियों में दिक्कत के चलते यह प्रोजेक्ट लगातार टल रहा है।
- पहले एलसीए एमके-1 स्क्वाड्रन के दो विमानों को जुलाई 2016 को सुलुर में तैयार किया गया। यानी सिर्फ फाइटर जेट्स को तैयार करने में ही 33 साल लग गए।
- तेजस एमके-1 और तेजस एमके-1ए का मकसद भारतीय वायुसेना में सेवा दे रहे पुराने मिग-21 फाइटर जेट्स की धीरे-धीरे जगह लेना था। वहीं, तेजस एमके-II को मिग-29, मिराज और जैगुआर लड़ाकू विमानों को रिप्लेस करना था।
- यह सभी विमानों अगले दशक से सेवा से बाहर होना शुरू हो जाएंगे। ऐसे में वायुसेना को तेजस एमके-1 और एमके-II की डिलीवरी काफी पहले मिल जानी थी, जिससे पायलटों की ट्रेनिंग से लेकर इन्हें सक्रिय सेवा में लाया जा सकता।
तेजस प्रोजेक्ट में देरी की वजह क्या?
- स्वदेशी इंजन की गैरमौजूदगी की वजह से विदेशी तकनीक और इसके पार्ट्स पर निर्भरता के कारण परियोजना लगातार अटकी है। 1998 में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की तरफ से कई प्रतिबंध लगा दिए गए। ऐसे में फाइटर जेट के इंजन के लिए कलपुर्जे मिलने में खासी देरी हुई। 2013 में डीआरडीओ के तत्कालीन महानिदेशक वीके सारस्वत ने कहा था कि अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के तेजस प्रोजेक्ट को दो दशक पीछे ढकेल दिया।
- इन प्रतिबंधों की वजह से सभी सप्लायरों ने समझौते तोड़ लिए और यूरोपीय फर्म्स ने भी सहयोग नहीं किया। इसके चलते तेजस के डिजायन को स्वदेशी तकनीक के इस्तेमाल लायक बनाया गया और नई प्रोडक्शन फैसिलिटी बनाने की मजबूरी पैदा हुई। इससे प्रोजेक्ट की कीमत में भी भारी बढ़ोतरी हुई।
- कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि जो तेजस लड़ाकू विमान बने, उनमें करीब 53 कमियां रहीं, जो कि युद्ध क्षेत्र में वायुसेना पर भारी पड़ सकती हैं। इन कमियों को दूर करने में भी डीआरडीओ और एचएएल को काफी समय लग गया। अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक्स ने समझौते के बावजूद अपने जीई-404 इंजन की आपूर्ति में देरी की। भारत को इसके पहले इंजन ही 2025 में मिल पाए हैं।
- 2015 में इस प्रोजेक्ट से जुड़ी कैग (CAG) की रिपोर्ट में सामने आया कि देरी की वजह से वायुसेना को करीब 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, क्योंकि उसे अपने पुराने लड़ाकू विमानों के अस्थायी इस्तेमाल को बढ़ाने में काफी खर्च करना पड़ा है।
2. एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए)
भारत ने पहली बार 2007 में रूस के सहयोग से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने का लक्ष्य रखा। तब इसे फिफ्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट (एफजीएफए) प्रोजेक्ट नाम दिया गया। हालांकि, 2007 में हुआ यह समझौता 2018 में आगे के चरणों में तय नहीं हो पाया। जहां रूस ने इस दौरान अकेले ही अपना पांचवीं पीढ़ी का सुखोई-57 स्टेल्थ फाइटर जेट तैयार कर लिया, वहीं भारत ने 2010 में शुरू किए गए अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को हाल ही में शुरू करने की तरफ कदम बढ़ाए।
भारत ने पहली बार 2007 में रूस के सहयोग से पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने का लक्ष्य रखा। तब इसे फिफ्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट (एफजीएफए) प्रोजेक्ट नाम दिया गया। हालांकि, 2007 में हुआ यह समझौता 2018 में आगे के चरणों में तय नहीं हो पाया। जहां रूस ने इस दौरान अकेले ही अपना पांचवीं पीढ़ी का सुखोई-57 स्टेल्थ फाइटर जेट तैयार कर लिया, वहीं भारत ने 2010 में शुरू किए गए अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) को हाल ही में शुरू करने की तरफ कदम बढ़ाए।
प्रोजेक्ट में कितनी देरी?
- 2015 के एयरो इंडिया में एएमसीए का डिजाइन तय हो गया। इसके अलावा इसके इंजन निर्माण के लिए साझेदार ढूंढने की समयसीमा छह महीने तय की गई। हालांकि, इसमें लगातार देरी हुई।
- 2018 में डीआरडीओ की एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) ने प्रोटोटाइप बनाने की ओर कदम बढ़ाए। हालांकि, प्रोजेक्ट को 2024 में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की मंजूरी मिली। भारत में ऑपरेशन सिंदूर के बाद मई 2025 में एएमसीए प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है। 2031 तक डीआरडीओ को एचएएल या किसी निजी साझेदार के साथ मिलकर पांच प्रोटोटाइप की टेस्टिंग करनी है।
- माना जा रहा है कि अगर सब समयानुसार चलता रहा तो 2035 तक भारत को अपना पहला पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान मिल सकता है। यानी परियोजना की नींव रखे जाने के 25 साल बाद।
एलसीए में देरी की वजह क्या?
- एलसीए की तरह ही एएमसीए के मामले में भी भारत के इंजन न बना पाने को देरी की मुख्य वजह माना जाता है। 13 साल तक एएमसीए के डिजाइन और इंजीनियरिंग पर प्लानिंग चलने के बाद 2023 में इसके इंजन साझा तौर पर बनाने के लिए भारत और फ्रांस की फर्म साफरान के बीच बातचीत शुरू हुई।
- हालांकि, भारत में इंजन बनाने को लेकर यह बातचीत सफल होती नहीं दिखी। ऐसे में नवंबर 2023 में स्वदेशी इंजन के विकल्प के तौर पर अमेरिकी फर्म जनरल इलेक्ट्रिक्स से भारत में ही इंजन बनाने का समझौता किया गया। इसके तहत जीई-414 इंजन्स का निर्माण भारत में ही किया जाना है।
- हालांकि, अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने और उनके अमेरिका में ही उत्पादन को बढ़ावा देने के मंत्र की वजह से अब जीई इंजनों के भारत में बनने को लेकर भी संशय की स्थिति है। इस बीच भारत ने फ्रांस की साफरान से चर्चा को बढ़ा दिया है।
- एलसीए प्रोजेक्ट में देरी की एक वजह डीआरडीओ और अन्य कंपनियों के बीच साझेदारी न हो पाना भी है। दरअसल, एलसीए तेजस प्रोजेक्ट में देरी के बाद से ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की क्षमताओं पर सवाल उठे हैं। ऐसे में अब सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए एचएएल के साथ निजी भारतीय कंपनियों को साझेदार बनने के लिए आमंत्रित किया है।
3. कावेरी जेट इंजन
डीआरडीओ ने कावेरी इंजन को स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान के लिए विकसित करने की योजना बनाई थी। इस प्रोजेक्ट को भी 1980 के दशक में ही शुरू कर लिया गया था। हालांकि, बीते 30 से ज्यादा वर्षों में एलसीए की तरह ही यह परियोजना भी ठंडे बस्ते में ही रही है।
प्रोजेक्ट में कितनी देरी?
डीआरडीओ ने कावेरी इंजन को स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान के लिए विकसित करने की योजना बनाई थी। इस प्रोजेक्ट को भी 1980 के दशक में ही शुरू कर लिया गया था। हालांकि, बीते 30 से ज्यादा वर्षों में एलसीए की तरह ही यह परियोजना भी ठंडे बस्ते में ही रही है।
प्रोजेक्ट में कितनी देरी?
- डीआरडीओ ने कावेरी इंजन को स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान के लिए विकसित करने की योजना बनाई थी। इसे 1986 में डीआरडीओ को सौंपा गया। योजना के तहत शुरुआत में 17 प्रोटोटाइप इंजन बनने थे। बताया जाता है कि पहले इंजन की टेस्टिंग 1995 में हो गई थी, जबकि दूसरा प्रोटोटाइप 1996 में टेस्ट किया गया।
- 1998 तक कावेरी इंजनों के पांच ग्राउंड टेस्ट पूरे हो गए। 1999 में इन इंजनों के फ्लाइट टेस्ट होने थे। इन्हें एलसीए के प्रोटोटाइप के साथ टेस्ट किया जाना था। हालांकि, 1998 के पोखरन परमाणु परीक्षण ने सब बदल दिया।
- 2014 तक कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को खत्म मान लिया गया था। हालांकि, 2016 में फ्रांस की फर्म साफरान ने इसके विकास कार्यक्रम में सहयोग पर दिलचस्पी दिखाई। कुछ बदलावों के बाद कावेरी इंजनों को भारत के स्वदेशी 'घातक' स्टेल्थ ड्रोन्स में लगाने पर सहमति बनी।
प्रोजेक्ट में देरी की वजह क्या?
- 1998 में हुए परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की तरफ से लगे प्रतिबंधों से भारत को जेट इंजन के कलपुर्जे भी नहीं मिल पाए।
- 2004 में कावेरी की रूस में टेस्टिंग हुई। इसे रूस के टीयू-16 बॉम्बर के साथ टेस्ट किया गया, लेकिन इस इंजन के जरिए जरूरी ऊंचाई के परीक्षण पूरे नहीं हो पाए। नतीजतन कावेरी प्रोजेक्ट साल दर साल पिछड़ता चला गया।
- 2006 में एक मौके पर अमेरिकी इंजन निर्माता कंपनी- प्रैट एंड व्हिटनी ने कावेरी इंजन को विकसित करने के लिए डीआरडीओ के साथ सहयोग की इच्छा जताई, लेकिन DRDO समझौते के लिए आगे नहीं आया।
- कावेरी इंजन आगे के वर्षों में अपने थ्रस्ट टू वेट रेश्यो (उड़ान भरने की क्षमता), इंजन में अतिरिक्त गर्मी पैदा करने की समस्या और जरूरत के मुताबिक अतिरिक्त ताकत जेनरेट करने की क्षमता न पैदा करने की वजह से नाकाम रहा।
4. एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम
भारत हवाई और समुद्री क्षेत्र में दुश्मनों की हरकतों का पता लगाने के लिए अभी मुख्यतः जमीन आधारित रडार, सैटेलाइट और सेंसर पर निर्भर है। इसमें एक अहम हथियार अवाक्स सिस्टम होता है, जो कि किसी भी हवाई या नौसैनिक हमले को भांपकर पहले ही अलर्ट कर देता है।
भारत हवाई और समुद्री क्षेत्र में दुश्मनों की हरकतों का पता लगाने के लिए अभी मुख्यतः जमीन आधारित रडार, सैटेलाइट और सेंसर पर निर्भर है। इसमें एक अहम हथियार अवाक्स सिस्टम होता है, जो कि किसी भी हवाई या नौसैनिक हमले को भांपकर पहले ही अलर्ट कर देता है।
प्रोजेक्ट में कितनी देरी हुई?
- डीआरडीओ ने 2003 में भारतीय वायुसेना के साथ मिलकर हवाई निगरानी सिस्टम को मजबूत करने के लिए अवाक्स सिस्टम विकसित करने पर चर्चा की। इससे जुड़ा पहला कॉन्ट्रैक्ट 2008 में किया गया। तब एम्ब्रायर से तीन ईआरजे 145 विमान खरीदे गए थे। इनके एयरफ्रेम में बदलाव के बाद 2017 में इन्हें तैनात कर दिया गया।
- हालांकि, भारत की चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और हजारों किलोमीटर की समुद्री सीमा के लिए कम से कम 18 अवाक्स सिस्टम की जरूरत बताई गई। भारत ने रूस से खरीदे गए तीन पुराने आईएल-76 के एयरफ्रेम्स पर इस्राइल के फैल्कन एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग सिस्ट को स्थापित किया। इस तरह भारत के पास कुल छह अवाक्स सिस्टम हो गए।
- 2021 में भारत के रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने एयर इंडिया से छह एयरबस ए321 विमानों को खरीदा। इन्हें फ्रांस भेजा जाना था, जहां इनके फ्रेम को सैन्य स्तर का बनाने के बाद इनमें रडार-सर्विलांस उपकरण लगाए जाने थे। इन विमानों को अवाक्स के तौर पर तैनात किया जाना था। हालांकि, अक्तूबर 2024 तक के अपडेट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है। माना जा रहा है कि इनके सेना में शामिल होने की समयसीमा 2026-27 तक टल सकती है।
अवाक्स में देरी की वजह क्या?
बताया गया है कि अवाक्स प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में मुख्य समस्या इनकी कीमत को लेकर आ रही है, जिस पर सरकार की तरफ से लगातार बातचीत जारी है। दरअसल, आम यात्री विमानों को सैन्य स्तर पर दोबारा डिजाइन करना और इनमें उपकरणों की फिटिंग एक समय लेने वाला काम है। दूसरी तरफ भारत की तरफ से समझौते में देरी भी भारत के अवाक्स निगरानी सिस्टम को हासिल करने में रोड़ा बनी है।
बताया गया है कि अवाक्स प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में मुख्य समस्या इनकी कीमत को लेकर आ रही है, जिस पर सरकार की तरफ से लगातार बातचीत जारी है। दरअसल, आम यात्री विमानों को सैन्य स्तर पर दोबारा डिजाइन करना और इनमें उपकरणों की फिटिंग एक समय लेने वाला काम है। दूसरी तरफ भारत की तरफ से समझौते में देरी भी भारत के अवाक्स निगरानी सिस्टम को हासिल करने में रोड़ा बनी है।