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IndiGo: सरकार पर दबाव बनाने के आरोप में घिरी इंडिगो, पांच माह पहले बने नियम; फिर क्रू स्टाफ क्यों नहीं बढ़ाया?
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: शुभम कुमार
Updated Sat, 06 Dec 2025 08:12 AM IST
सार
इंडिगो पिछले चार दिनों से उड़ान रद्द और किराए में उछाल से जूझ रही है। एफडीटीएल नियम लागू होने के बाद पायलटों को लंबे आराम और नाइट शिफ्ट पर कड़ी पाबंदियां मिलीं। 4 दिसंबर को करीब 800 उड़ानें रद्द, टिकटें 10,000 से 40,000 रुपये तक। ऐसे में सवाल यह है कि क्या इंडिगो ने नियमों का सामना करने के लिए पर्याप्त पायलट और क्रू तैनात किया या सरकार पर दबाव बनाने के लिए इस संकट को हवा दी गई?
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इंडिगो संकट
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो पिछले चार दिनों से भारी अव्यवस्था का सामना कर रही है। एक ओर उड़ानों का बड़े पैमाने पर रद्द होना और दूसरी ओर आसमान छूते किराए ने यात्रियों को परेशानी में डाल दिया है। एयरलाइन ने जिम्मेदारी नए एफडीटीएल (एफ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन) नियमों पर डाली, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इंडिगो के पास तैयारी के लिए पर्याप्त समय था। इस कारण यह आरोप भी गंभीर हो गया है कि एयरलाइन ने नियमों में ढील पाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने का रास्ता चुना।
एविएशन विशेषज्ञों के अनुसार इस संकट की जड़ जनवरी 2024 में दायर उस याचिका में है जिसमें पायलट यूनियन ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने थकान और लम्बी ड्यूटी को गंभीर सुरक्षा जोखिम बताया था। कोर्ट के निर्देश के बाद डीजीसीए ने एफडीटीएल नियमों में बदलाव किए और इन्हें एक जुलाई 2025 से लागू कर दिया। इन नियमों ने पायलटों को साप्ताहिक 36 घंटे की बजाय 48 घंटे का अनिवार्य आराम दिया और किसी भी छुट्टी को वीकली रेस्ट मानने पर रोक लगा दी। नवंबर 2025 में इनका दूसरा चरण लागू हुआ, जिसमें लगातार नाइट शिफ्ट पर कड़ी पाबंदियां लग गईं। इन्हीं बदलावों का असर इंडिगो पर सबसे अधिक पड़ा। 2 दिसंबर को दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे बड़े एयरपोर्ट्स पर उड़ानें अनियमित होना शुरू हुईं और ऑन-टाइम परफॉर्मेंस गिरकर 35% पर आ गया। 3 दिसंबर को यह स्थिति और बिगड़ी और ऑपरेशनल परफॉर्मेंस 19.7% तक गिर गया।
कैसे बढ़ा किराया, हालात भी हुए ठप..
4 दिसंबर को हालात लगभग ठप हो गए। करीब 800 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं और ओटीपी सिर्फ 8.5% पर रह गया। कई रूट्स पर टिकट का किराया 10,000 से बढ़कर 40,000 तक देखा गया। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के सूत्रों के अनुसार इंडिगो ने शुरुआती तीन दिनों में विभिन्न कारण बताए। लेकिन उसने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि नए एफडीटीएल नियमों को लागू करने के लिए उसके पास पर्याप्त पायलट और क्रू उपलब्ध नहीं थे।
4 दिसंबर को डीजीसीए के साथ बैठक के बाद एयरलाइन ने पहली बार स्वीकार किया कि उसने क्रू रोस्टरिंग की जरूरतों का कम आकलन किया था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि एयरलाइन को नए स्टाफ की भर्ती के लिए 9 महीने का समय मिला था, लेकिन उसने पर्याप्त नियुक्तियां नहीं कीं। कई विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि इंडिगो ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए जानबूझकर उड़ानें प्रभावित होने दीं, ताकि सरकार एफडीटीएल नियमों में ढील देने के लिए मजबूर हो जाए। यह आरोप सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का विषय बना रहा।
अमेरिका-यूरोप में पायलटों के आराम के साप्ताहिक घंटे तय
इंटरनेशनल सिविल एवियशन ऑर्गेनाइजेशन (आईसीएओ) के अनुसार अमेरिका में एफएफएए के नियमों के तहत पायलट हफ्ते में कम से कम 32 घंटे का आराम लेते हैं और महीने में 100 घंटे से अधिक उड़ान नहीं भर सकते। यूरोप में ईएएसए एक दिन में अधिकतम 10 घंटे उड़ान की अनुमति देता है, जिसे विशेष परिस्थितियों में 12 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। दो उड़ान ड्यूटी के बीच 10-11 घंटे आराम अनिवार्य है और हफ्ते में एक बार 36 घंटे का ब्रेक दिया जाता है। रूस और चीन दोनों देशों में पायलटों के आराम से जुड़े मानक अंतरराष्ट्रीय ढांचे आईसीएओ की सिफारिशों पर आधारित हैं, लेकिन दोनों ने अपनी घरेलू जरूरतों के अनुसार कुछ सख्त प्रावधान लागू किए हैं।
रूस में पायलट एक दिन में आम तौर पर 10 घंटे से अधिक उड़ान नहीं भर सकते और दो ड्यूटी के बीच कम से कम 12 घंटे का आराम अनिवार्य है, जबकि लगातार नाइट ऑपरेशन पर भी सीमाएं लगाई गई हैं। चीन में नियम इससे कुछ अधिक नियंत्रित हैं। चाइना सिविल एविएशन अथॉरिटी पायलटों को एक दिन में अधिकतम 8-9 घंटे की उड़ान की अनुमति देती है और दो उड़ानों के बीच न्यूनतम 10-12 घंटे का रेस्ट अनिवार्य करती है। चीन में साप्ताहिक आराम भी कड़ा है, जहां पायलटों को हर सात दिनों में कम से कम 36 से 48 घंटे का रेस्ट दिया जाता है।
डीजीसीए के नए नियम
नए मानकों के अनुसार पायलट दिन में अधिकतम 10 घंटे और रात में अधिकतम 8 घंटे उड़ान भर सकते हैं। दो पायलटों की स्थिति में कुल ड्यूटी 13 घंटे तक बढ़ सकती है, लेकिन इसके बाद अनिवार्य आराम देना आवश्यक है। हफ्ते में उड़ान की सीमा 100 से 125 घंटे निर्धारित की गई है और सालाना उड़ान सीमा 1,000 घंटे से अधिक नहीं हो सकती। लगातार सिर्फ 2 नाइट शिफ्ट की अनुमति है और हफ्ते में 2 से अधिक नाइट लैंडिंग नहीं की जा सकती। नियमों के उल्लंघन पर एयरलाइन पर एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इसलिए इंडिगो पर पड़ा सबसे अधिक असर
एविएशन मार्केट में इंडिगो की हिस्सेदारी 60-65% के बीच है और वह रोजाना लगभग 2300 उड़ानें संचालित करती है। इस विशाल ऑपरेशन में किसी भी प्रकार की छोटी गड़बड़ी तुरंत बड़े पैमाने पर असर डालती है। इंडिगो के पास 5,456 पायलट, 10,212 केबिन क्रू और कुल 41,000 से अधिक कर्मचारी हैं, लेकिन नए नियमों के अनुरूप यह संख्या पर्याप्त साबित नहीं हुई। इसके विपरीत अन्य एयरलाइंस की उड़ानें कम हैं और उनके पास स्टाफ अपेक्षाकृत अधिक है, इसलिए वे नए शेड्यूल के साथ जल्दी सामंजस्य बिठा पाईं। विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि इंडिगो के पास भी पर्याप्त समय था लेकिन उसने सही अमल नहीं किया। इंडिगो को लगा कि वह बाजार का बड़ा खिलाड़ी है और सरकार को झुका लेगा।
विशेषज्ञों की राय: यह संकट मोनोपोली का सीधा दुष्परिणाम
एविएशन विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा संकट भारतीय घरेलू विमानन में लंबे समय से बढ़ती एकाधिकार प्रवृत्ति का अपरिहार्य नतीजा है। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार जब किसी एक एयरलाइन की हिस्सेदारी 60% के आसपास पहुंच जाती है तो पूरे उद्योग की स्थिरता उसी एक कंपनी की कार्य-क्षमता पर निर्भर हो जाती है। सेंटर फार एशिया पेसिफिक एवियशन (सीएपीए) इंडिया के वरिष्ठ विश्लेषकों का मत है कि यह वह स्थिति है जहां एक निजी कंपनी की आंतरिक कमी पूरे देश के एयर ट्रांसपोर्ट सिस्टम को झकझोर देती है। यदि एक खिलाड़ी की ऑपरेशनल विफलता से राष्ट्रीय स्तर पर हवाई यातायात चरमरा जाए, तो इसे सिर्फ परिचालन संकट नहीं, बल्कि संरचनात्मक नीति विफलता कहा जाएगा। कुछ अर्थशास्त्रियों की राय इससे भी अधिक कठोर है। उनका कहना है कि मोनोपोली का सबसे बड़ा खतरा यह है कि कंपनी अप्रत्यक्ष रूप से नीतिगत निर्णयों पर दबाव डालने की स्थिति में पहुंच जाती है।
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एविएशन विशेषज्ञों के अनुसार इस संकट की जड़ जनवरी 2024 में दायर उस याचिका में है जिसमें पायलट यूनियन ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने थकान और लम्बी ड्यूटी को गंभीर सुरक्षा जोखिम बताया था। कोर्ट के निर्देश के बाद डीजीसीए ने एफडीटीएल नियमों में बदलाव किए और इन्हें एक जुलाई 2025 से लागू कर दिया। इन नियमों ने पायलटों को साप्ताहिक 36 घंटे की बजाय 48 घंटे का अनिवार्य आराम दिया और किसी भी छुट्टी को वीकली रेस्ट मानने पर रोक लगा दी। नवंबर 2025 में इनका दूसरा चरण लागू हुआ, जिसमें लगातार नाइट शिफ्ट पर कड़ी पाबंदियां लग गईं। इन्हीं बदलावों का असर इंडिगो पर सबसे अधिक पड़ा। 2 दिसंबर को दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे बड़े एयरपोर्ट्स पर उड़ानें अनियमित होना शुरू हुईं और ऑन-टाइम परफॉर्मेंस गिरकर 35% पर आ गया। 3 दिसंबर को यह स्थिति और बिगड़ी और ऑपरेशनल परफॉर्मेंस 19.7% तक गिर गया।
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कैसे बढ़ा किराया, हालात भी हुए ठप..
4 दिसंबर को हालात लगभग ठप हो गए। करीब 800 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं और ओटीपी सिर्फ 8.5% पर रह गया। कई रूट्स पर टिकट का किराया 10,000 से बढ़कर 40,000 तक देखा गया। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के सूत्रों के अनुसार इंडिगो ने शुरुआती तीन दिनों में विभिन्न कारण बताए। लेकिन उसने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि नए एफडीटीएल नियमों को लागू करने के लिए उसके पास पर्याप्त पायलट और क्रू उपलब्ध नहीं थे।
4 दिसंबर को डीजीसीए के साथ बैठक के बाद एयरलाइन ने पहली बार स्वीकार किया कि उसने क्रू रोस्टरिंग की जरूरतों का कम आकलन किया था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि एयरलाइन को नए स्टाफ की भर्ती के लिए 9 महीने का समय मिला था, लेकिन उसने पर्याप्त नियुक्तियां नहीं कीं। कई विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि इंडिगो ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए जानबूझकर उड़ानें प्रभावित होने दीं, ताकि सरकार एफडीटीएल नियमों में ढील देने के लिए मजबूर हो जाए। यह आरोप सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा का विषय बना रहा।
अमेरिका-यूरोप में पायलटों के आराम के साप्ताहिक घंटे तय
इंटरनेशनल सिविल एवियशन ऑर्गेनाइजेशन (आईसीएओ) के अनुसार अमेरिका में एफएफएए के नियमों के तहत पायलट हफ्ते में कम से कम 32 घंटे का आराम लेते हैं और महीने में 100 घंटे से अधिक उड़ान नहीं भर सकते। यूरोप में ईएएसए एक दिन में अधिकतम 10 घंटे उड़ान की अनुमति देता है, जिसे विशेष परिस्थितियों में 12 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। दो उड़ान ड्यूटी के बीच 10-11 घंटे आराम अनिवार्य है और हफ्ते में एक बार 36 घंटे का ब्रेक दिया जाता है। रूस और चीन दोनों देशों में पायलटों के आराम से जुड़े मानक अंतरराष्ट्रीय ढांचे आईसीएओ की सिफारिशों पर आधारित हैं, लेकिन दोनों ने अपनी घरेलू जरूरतों के अनुसार कुछ सख्त प्रावधान लागू किए हैं।
रूस में पायलट एक दिन में आम तौर पर 10 घंटे से अधिक उड़ान नहीं भर सकते और दो ड्यूटी के बीच कम से कम 12 घंटे का आराम अनिवार्य है, जबकि लगातार नाइट ऑपरेशन पर भी सीमाएं लगाई गई हैं। चीन में नियम इससे कुछ अधिक नियंत्रित हैं। चाइना सिविल एविएशन अथॉरिटी पायलटों को एक दिन में अधिकतम 8-9 घंटे की उड़ान की अनुमति देती है और दो उड़ानों के बीच न्यूनतम 10-12 घंटे का रेस्ट अनिवार्य करती है। चीन में साप्ताहिक आराम भी कड़ा है, जहां पायलटों को हर सात दिनों में कम से कम 36 से 48 घंटे का रेस्ट दिया जाता है।
डीजीसीए के नए नियम
नए मानकों के अनुसार पायलट दिन में अधिकतम 10 घंटे और रात में अधिकतम 8 घंटे उड़ान भर सकते हैं। दो पायलटों की स्थिति में कुल ड्यूटी 13 घंटे तक बढ़ सकती है, लेकिन इसके बाद अनिवार्य आराम देना आवश्यक है। हफ्ते में उड़ान की सीमा 100 से 125 घंटे निर्धारित की गई है और सालाना उड़ान सीमा 1,000 घंटे से अधिक नहीं हो सकती। लगातार सिर्फ 2 नाइट शिफ्ट की अनुमति है और हफ्ते में 2 से अधिक नाइट लैंडिंग नहीं की जा सकती। नियमों के उल्लंघन पर एयरलाइन पर एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इसलिए इंडिगो पर पड़ा सबसे अधिक असर
एविएशन मार्केट में इंडिगो की हिस्सेदारी 60-65% के बीच है और वह रोजाना लगभग 2300 उड़ानें संचालित करती है। इस विशाल ऑपरेशन में किसी भी प्रकार की छोटी गड़बड़ी तुरंत बड़े पैमाने पर असर डालती है। इंडिगो के पास 5,456 पायलट, 10,212 केबिन क्रू और कुल 41,000 से अधिक कर्मचारी हैं, लेकिन नए नियमों के अनुरूप यह संख्या पर्याप्त साबित नहीं हुई। इसके विपरीत अन्य एयरलाइंस की उड़ानें कम हैं और उनके पास स्टाफ अपेक्षाकृत अधिक है, इसलिए वे नए शेड्यूल के साथ जल्दी सामंजस्य बिठा पाईं। विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि इंडिगो के पास भी पर्याप्त समय था लेकिन उसने सही अमल नहीं किया। इंडिगो को लगा कि वह बाजार का बड़ा खिलाड़ी है और सरकार को झुका लेगा।
विशेषज्ञों की राय: यह संकट मोनोपोली का सीधा दुष्परिणाम
एविएशन विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा संकट भारतीय घरेलू विमानन में लंबे समय से बढ़ती एकाधिकार प्रवृत्ति का अपरिहार्य नतीजा है। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार जब किसी एक एयरलाइन की हिस्सेदारी 60% के आसपास पहुंच जाती है तो पूरे उद्योग की स्थिरता उसी एक कंपनी की कार्य-क्षमता पर निर्भर हो जाती है। सेंटर फार एशिया पेसिफिक एवियशन (सीएपीए) इंडिया के वरिष्ठ विश्लेषकों का मत है कि यह वह स्थिति है जहां एक निजी कंपनी की आंतरिक कमी पूरे देश के एयर ट्रांसपोर्ट सिस्टम को झकझोर देती है। यदि एक खिलाड़ी की ऑपरेशनल विफलता से राष्ट्रीय स्तर पर हवाई यातायात चरमरा जाए, तो इसे सिर्फ परिचालन संकट नहीं, बल्कि संरचनात्मक नीति विफलता कहा जाएगा। कुछ अर्थशास्त्रियों की राय इससे भी अधिक कठोर है। उनका कहना है कि मोनोपोली का सबसे बड़ा खतरा यह है कि कंपनी अप्रत्यक्ष रूप से नीतिगत निर्णयों पर दबाव डालने की स्थिति में पहुंच जाती है।
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