नतीजों से पहले तीसरे मोर्चे के लिए कोशिश जारी, आज स्टालिन से मिलेंगे केसीआर
लोकसभा चुनावों के छह चरणों के लिए मतदान हो चुके हैं। वहीं 19 मई को आखिरी और सातवें चरण के लिए मतदान होंगे। इसी बीच नतीजों से पहले तीसरे मोर्चे के लिए कोशिशें तेज हो गई हैं। सोमवार को तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव द्रविड़ मुनेत्र कड़घम के अध्यक्ष एमके स्टालिन के साथ चेन्नई में मुलाकात करेंगे। इससे पहले भी केसीआर ने गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस मोर्चा बनाने के लिए कई नेताओं से मुलाकात की है।
देश के 13 राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों की मौजूदगी काफी मजबूत है। यह राज्य इस तरह हैं- असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। इन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां न केवल अहम भूमिका में हैं बल्कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती हैं।
पहले की तुलना में बढ़ा वोट शेयर
राज्य स्तर पर मौजूद क्षेत्रीय दलों के वोट शेयर पर नजर डाली जाए तो यह पहले के मुकाबले बढ़ा है। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों का विश्लेषण किया जाए तो यह दिखाई देगा कि एआईएडीएमके, एआईटीसी, बीजेडी, आरजेडी, शिवसेना, टीडीपी, टीआरएस जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का वोट प्रतिशत 2009 की तुलना में 2014 में बढ़ा है।
2019 में क्षेत्रीय पार्टियां डालेंगी असर
जनता के बीच आने वाली ज्यादातर रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि 2014 की तरह इस बार कोई लहर नहीं है। पक्ष और विपक्ष के प्रति कोई खास रुझान नहीं दिख रहा है। ऐस में यह कहना मुश्किल है कि जनादेश कैसा होगा। मगर ज्यादा संभावना इसी बात की है कि क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत स्थिति में होंगी। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के प्रदर्शन में ज्यादा अतंर नहीं होगा और न ही उनका वोट राष्ट्रीय पार्टियों में जाएगा।
दिलचस्प बात यह है कि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बदलाव के तहत वोट राष्ट्रीय पार्टी की बजाए एक क्षेत्रीय पार्टी से दूसरी में जाता है। 2014 में ज्यादातर राज्यों में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था। मगर इस चुनाव में राज्यों स्तर पर विभिन्न गठबंधनों के कारण मुकाबला आमने-सामने का हो गया है और इससे क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत होती हुई दिख रही हैं।
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