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Maharashtra: 16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद मिला न्याय, रिश्वत मामले में पूर्व स्टेशन मास्टर निर्दोष करार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: नितिन गौतम
Updated Mon, 16 Jun 2025 12:27 PM IST
सार
अदालत ने माना कि शिकायतकर्ता की गवाही और अन्य सबूतों में अंतर था और अदालत ने वॉइस रिकॉर्डिंग के सबूत को विश्वसनीय नहीं माना। जज ने शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए।
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : ANI
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विस्तार
महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक विशेष सीबीआई अदालत ने रिश्वत मामले में पूर्व स्टेशन मास्टर को निर्दोष माना है। पूर्व स्टेशन मास्टर ने इसके लिए 16 साल कानूनी लड़ाई लड़ी। अब जाकर उन्हें अदालत से न्याय मिला है। अदालत ने शिकायतकर्ता की गवाही और पेश किए गए सबूतों में अंतर पाया, जिसके बाद पूर्व अधिकारी को रिहा करने का आदेश दिया।
क्या था मामला
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत एस शिंदे ने 9 जून को दिए अपने फैसले में पूर्व स्टेशन मास्टर को रिहा करने का आदेश दिया। जिसकी कॉपी रविवार को मिली। फैसले में जस्टिस शिंदे ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा। साल 2009 में एक फल विक्रेता ने पूर्व स्टेशन मास्टर रामकरण पंचूराम मीणा पर रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि स्टेशन मास्टर ने फल विक्रेता सोनू राशिद रेन से 13 जून 2009 को दीवा रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों और स्टेशन परिसर में फल बेचने देने के लिए हर महीना 1000 रुपये और पूर्व के महीनों के लिए अतिरिक्त 5000 रुपये की रिश्वत मांगी थी।
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16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने किया रिहा
सीबीआई ने कथित तौर पर मीणा को 2500 रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा भी था। फल विक्रेता की शिकायत पर मीणा के खिलाफ भ्रष्टाचार रोधी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष का मामला शिकायतकर्ता की गवाही और अन्य गवाहों पर आधारित था। जिसमें एक इलेक्ट्रॉनिक सबूत, वॉइस रिकॉर्डिंग भी शामिल थी। अदालत ने माना कि शिकायतकर्ता की गवाही और अन्य सबूतों में अंतर था और अदालत ने वॉइस रिकॉर्डिंग के सबूत को विश्वसनीय नहीं माना। जज ने शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए।
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क्या था मामला
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत एस शिंदे ने 9 जून को दिए अपने फैसले में पूर्व स्टेशन मास्टर को रिहा करने का आदेश दिया। जिसकी कॉपी रविवार को मिली। फैसले में जस्टिस शिंदे ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा। साल 2009 में एक फल विक्रेता ने पूर्व स्टेशन मास्टर रामकरण पंचूराम मीणा पर रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि स्टेशन मास्टर ने फल विक्रेता सोनू राशिद रेन से 13 जून 2009 को दीवा रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों और स्टेशन परिसर में फल बेचने देने के लिए हर महीना 1000 रुपये और पूर्व के महीनों के लिए अतिरिक्त 5000 रुपये की रिश्वत मांगी थी।
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16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने किया रिहा
सीबीआई ने कथित तौर पर मीणा को 2500 रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा भी था। फल विक्रेता की शिकायत पर मीणा के खिलाफ भ्रष्टाचार रोधी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष का मामला शिकायतकर्ता की गवाही और अन्य गवाहों पर आधारित था। जिसमें एक इलेक्ट्रॉनिक सबूत, वॉइस रिकॉर्डिंग भी शामिल थी। अदालत ने माना कि शिकायतकर्ता की गवाही और अन्य सबूतों में अंतर था और अदालत ने वॉइस रिकॉर्डिंग के सबूत को विश्वसनीय नहीं माना। जज ने शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए।
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