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Mahmood Madani: 'प्रधानमंत्री, विपक्षी नेता सभी की भाषा का स्तर गिरा', जमीयत अध्यक्ष मौलाना मदनी का बयान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नितिन गौतम
Updated Fri, 05 Sep 2025 01:14 PM IST
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सार
मदनी ने कहा, 'बार-बार, खासकर भारत के बाहर, यह चर्चा होती है कि मुसलमानों का नरसंहार होगा। यह बात अक्सर कही जाती है, यहां तक कि मुझसे भी, लेकिन मैं इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं हूं।'

मौलान महमूद मदनी
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि हाल के वर्षों में राजनीतिक भाषा और संवाद का स्तर गिर गया है। मदनी ने प्रधानमंत्री, विपक्षी नेताओं और राज्य के नेताओं सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं पर गलत और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। मौलाना महमूद मदनी ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय नागरिक समाज द्वारा दिखाए गए सब्र की खूब तारीफ की।
असम सीएम की टिप्पणियों पर जताई नाराजगी
एक इंटरव्यू में, इस्लामी विद्वान ने कहा, 'अब मानक गिर गए है, यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी समुदायों के लिए अनुचित भाषा बोलते हैं, और विपक्ष ने भी स्तर गिरा दिया है।' मौलाना महमूद मदनी ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणियों पर भी कड़ी आपत्ति जताई और उन्हें अपमानजनक बताया। उन्होंने कहा 'असम के मुख्यमंत्री की भाषा बेहद आपत्तिजनक है। वह राज्य के संरक्षक हैं, लेकिन जिस तरह की भाषा का वह इस्तेमाल कर रहे हैं वह गलत है। हम एक-दूसरे से असहमत हो सकते हैं, लेकिन मेरा उनसे आग्रह है कि बोलते समय सही शब्दों का इस्तेमाल करें।'
'पहलगाम हमले के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश हो सकती थी'
मदनी ने इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र में राजनीतिक और सामाजिक विचारों में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन इससे नफरत और दुश्मनी नहीं पैदा होनी चाहिए। पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश हो सकती थी, लेकिन आतंकियों की साजिश को नाकाम करने का श्रेय मदनी ने भारत के नागरिक समाज को दिया।
ये भी पढ़ें- BJP Vs Congress: केरल कांग्रेस के सोशल मीडिया पोस्ट पर बवाल, बीड़ी से की बिहार की तुलना; भाजपा ने किया पलटवार
मदनी ने भारत के नागरिक समाज की जमकर की तारीफ
मदनी ने कहा, 'बार-बार, खासकर भारत के बाहर, यह चर्चा होती है कि मुसलमानों का नरसंहार होगा। यह बात अक्सर कही जाती है, यहां तक कि मुझसे भी, लेकिन मैं इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं हूं। पहलगाम में आतंकवादियों ने जो किया, उसके बाद बहुत कुछ आसानी से हो सकता था। कम से कम कुछ अशांति तो हो ही सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह सिर्फ सरकार का काम नहीं था। हालांकि मैं इस बात से इनकार नहीं करूंगा कि सरकार भी कुछ हद तक इसकी हकदार है। लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि नागरिक समाज ही इसका असली हकदार है।' मदनी ने ये भी कहा कि देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कामकाज में सुधार हुआ है और इसमें बीते दस वर्षों में बड़ा अंतर आया है। हालांकि उन्होंने जांच एजेंसियों के समावेशी होने की जरूरत पर भी बल दिया।
'सशस्त्र बलों के साथ खड़े होना नागरिकों का कर्तव्य'
मदनी ने कहा, 'जिस तरह से पहलगाम हमले में आतंकियों ने जिस तरह से लोगों के नाम पूछकर उनकी हत्या की, अगर कोई और देश होता, तो बहुत अराजकता फैल जाती। यही भारत की खूबसूरती है। मैं अपने देशवासियों का जितना भी शुक्रिया अदा करूं कम है, जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं। जिस तरह से लोगों ने धैर्य दिखाया, उसकी तारीफ होनी ही चाहिए।' उन्होंने आगे कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों के साथ खड़ा होना देश के नागरिकों का कर्तव्य है और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विपक्ष ने भी यही किया। मदनी ने कहा, 'जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ, तो अच्छे कामों के लिए भी सरकार की आलोचना करने वालों ने भी इसका समर्थन किया। अपनी सेना के साथ खड़ा होना हमारा कर्तव्य है।'

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एक इंटरव्यू में, इस्लामी विद्वान ने कहा, 'अब मानक गिर गए है, यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी समुदायों के लिए अनुचित भाषा बोलते हैं, और विपक्ष ने भी स्तर गिरा दिया है।' मौलाना महमूद मदनी ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणियों पर भी कड़ी आपत्ति जताई और उन्हें अपमानजनक बताया। उन्होंने कहा 'असम के मुख्यमंत्री की भाषा बेहद आपत्तिजनक है। वह राज्य के संरक्षक हैं, लेकिन जिस तरह की भाषा का वह इस्तेमाल कर रहे हैं वह गलत है। हम एक-दूसरे से असहमत हो सकते हैं, लेकिन मेरा उनसे आग्रह है कि बोलते समय सही शब्दों का इस्तेमाल करें।'
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'पहलगाम हमले के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश हो सकती थी'
मदनी ने इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र में राजनीतिक और सामाजिक विचारों में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन इससे नफरत और दुश्मनी नहीं पैदा होनी चाहिए। पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश हो सकती थी, लेकिन आतंकियों की साजिश को नाकाम करने का श्रेय मदनी ने भारत के नागरिक समाज को दिया।
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मदनी ने भारत के नागरिक समाज की जमकर की तारीफ
मदनी ने कहा, 'बार-बार, खासकर भारत के बाहर, यह चर्चा होती है कि मुसलमानों का नरसंहार होगा। यह बात अक्सर कही जाती है, यहां तक कि मुझसे भी, लेकिन मैं इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं हूं। पहलगाम में आतंकवादियों ने जो किया, उसके बाद बहुत कुछ आसानी से हो सकता था। कम से कम कुछ अशांति तो हो ही सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह सिर्फ सरकार का काम नहीं था। हालांकि मैं इस बात से इनकार नहीं करूंगा कि सरकार भी कुछ हद तक इसकी हकदार है। लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि नागरिक समाज ही इसका असली हकदार है।' मदनी ने ये भी कहा कि देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कामकाज में सुधार हुआ है और इसमें बीते दस वर्षों में बड़ा अंतर आया है। हालांकि उन्होंने जांच एजेंसियों के समावेशी होने की जरूरत पर भी बल दिया।
'सशस्त्र बलों के साथ खड़े होना नागरिकों का कर्तव्य'
मदनी ने कहा, 'जिस तरह से पहलगाम हमले में आतंकियों ने जिस तरह से लोगों के नाम पूछकर उनकी हत्या की, अगर कोई और देश होता, तो बहुत अराजकता फैल जाती। यही भारत की खूबसूरती है। मैं अपने देशवासियों का जितना भी शुक्रिया अदा करूं कम है, जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं। जिस तरह से लोगों ने धैर्य दिखाया, उसकी तारीफ होनी ही चाहिए।' उन्होंने आगे कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों के साथ खड़ा होना देश के नागरिकों का कर्तव्य है और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विपक्ष ने भी यही किया। मदनी ने कहा, 'जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ, तो अच्छे कामों के लिए भी सरकार की आलोचना करने वालों ने भी इसका समर्थन किया। अपनी सेना के साथ खड़ा होना हमारा कर्तव्य है।'
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