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AITUC: ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस ने संपत्तियों की नीलामी पर उठाए सवाल, रोजगार की सुरक्षा पर चिंता

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Mon, 10 Nov 2025 08:36 PM IST
सार

एआईटीयूसी का आरोप है कि सरकार पूरी अर्थव्यवस्था को निजी कंपनियों के हवाले कर रही है। यह काम पीपीपी मॉडल जैसे तरीकों के जरिए किया जा रहा है। संगठन ने आठवें वेतन आयोग को लेकर भी अपनी चिंताएं जताई हैं। 

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भारतीय अर्थव्यवस्था। - फोटो : amarujala
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विस्तार
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ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के निजीकरण तथा राष्ट्रीय संपत्तियों की बिक्री के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। बैठक में एआईटीयूसी ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत बंदरगाह, हवाई अड्डे, सड़क, रेल, बिजली, दूरसंचार और इंटरनेट जैसे 13 क्षेत्रों की संपत्तियों को औसतन 40 वर्षों के लिए पट्टे पर देने की योजना के पीछे का मकसद निजी लाभ सुनिश्चित करना है। संगठन ने इस नीति को राष्ट्रहित के विरुद्ध बताया और इसके गुप्त उद्देश्यों पर चिंता जताई।

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नई दिल्ली स्थित एटक भवन में बीते रविवार हुई एआईटीयूसी की राष्ट्रीय कार्यसमिति बैठक में प्रतिनिधियों ने रक्षा कर्मचारियों के हितों के लिए एआईडीईएफ के संघर्ष को समर्थन दिया। बैठक में केंद्र सरकार की रक्षा उद्योग नीतियों और राष्ट्रीय संपत्तियों के निजीकरण को लेकर गंभीर चिंता जताई गई। प्रतिनिधियों ने कहा कि ये नीतियां राष्ट्रहित के विरुद्ध हैं और कॉरपोरेट लाभ के लिए चलाई जा रही हैं।
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एआईटीयूसी ने आरोप लगाया कि बैंकिंग, बीमा, रक्षा, रेलवे, सार्वजनिक परिवहन, बिजली, मंत्रालय, स्वास्थ्य, शिक्षा, हवाई अड्डे, बंदरगाह, बुनियादी ढांचा निर्माण और रखरखाव जैसे सभी उद्योग और सेवाएं खतरे में हैं। सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है। पूरी अर्थव्यवस्था को निजी कंपनियों के हवाले कर रही है। यह काम सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी मॉडल), विनिवेश, आउटसोर्सिंग और अब राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन जैसे तरीकों से किया जा रहा है।

'रोजगार पर बुरा असर पड़ेगा'
एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार ने चेताया कि इस तरह के निजीकरण से न सिर्फ राष्ट्रीय संपत्तियों को नुकसान होगा, बल्कि रोजगार पर भी बुरा असर पड़ेगा। काम ठेके, आउटसोर्स और निश्चित अवधि के कर्मचारियों से कराया जाएगा। इससे स्थायी नौकरी, ट्रेड यूनियन अधिकार और सामूहिक सौदेबाजी जैसी मजदूरों की बुनियादी सुविधाएं खत्म हो जाएंगी। सरकार की निजीकरण नीति से छोटे व्यापारी, रेहड़ी-पटरी वाले, दिहाड़ी मजदूर और लघु उद्योगों पर बड़ा असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कॉरपोरेट कंपनियों की ओर से संपत्तियों पर कब्जा बढ़ने से लाखों लोग अपनी रोजी-रोटी और जगह से बेदखल हो सकते हैं। 

एआईटीयूसी ने भारतीय आयुध कारखानों के निगमीकरण पर भी चिंता जताई
एआईटीयूसी के अनुसार, कोविड-19 महामारी के दौरान घोषित राहत पैकेज का इस्तेमाल करते हुए सरकार ने पुराने समझौतों को दरकिनार कर दिया और भारतीय आयुध कारखानों के निगमीकरण की घोषणा कर दी। यह फैसला उस समय लिया गया, जब पांच दिन की हड़ताल और संघर्ष के बाद सुलह की प्रक्रिया चल रही थी। औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए आयुध निर्माणी बोर्ड को भंग कर दिया गया। इन कारखानों को सात अलग-अलग निगमों में बांटकर कॉरपोरेट क्षेत्र को सौंप दिया गया। आयुध कारखानों के सात डीपीएसयू में से तीन डीपीएसयू (तीन निगम) पहले से ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि अन्य रक्षा सार्वजनिक उपक्रम भी खतरे में हैं क्योंकि सरकार ने रक्षा उत्पादन क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है। अब निजी कंपनियों को लाइसेंस दिए जा रहे हैं ताकि वे आयुध कारखानों के प्रतिस्पर्धी बन सकें। आयुध कारखानों के असैन्य कर्मचारी, जो मूल रूप से केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं, अब नए बनाए गए सात डीपीएसयू में अपनी सेवानिवृत्ति तक केंद्र सरकार के कर्मचारी बने रहने के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज कर रही है।

एआईटीयूसी ने साफ किया है कि वह रक्षा उद्योग को बचाने और असैनिक कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एआईडीईएफ के संघर्षों में पूरी मजबूती से साथ खड़ा रहेगा। संगठन का मानना है कि यह सिर्फ कर्मचारियों की लड़ाई नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता से जुड़ा मुद्दा है। इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों तथा पेंशनभोगियों के लिए 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की मांग भी जोर पकड़ रही है। मौजूदा नियमों के अनुसार, हर 10 साल में वेतन और पेंशन संशोधन होना चाहिए, जो 1 जनवरी 2026 से लागू होना है। लेकिन मोदी सरकार ने वर्ष 2024 तक इस आयोग के गठन को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं दिया था। संसद में भी यही जानकारी दी गई थी।

'बिहार में चुनाव देख आठवें वेतन आयोग का गठन हुआ' 
एआईटीयूसी का कहना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में सरकार ने 16 जनवरी 2025 को अचानक आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा कर दी।  फिर यह घोषणा ठंडे बस्ते में चली गई। इससे नाराज होकर केंद्रीय कर्मचारी और पेंशनभोगी सरकार के कर्मचारी-विरोधी रवैये के खिलाफ आंदोलन पर उतर आए, लेकिन जैसे ही बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ी, सरकार ने 28 अक्तूबर 2025 को आयोग के गठन की औपचारिक घोषणा कर दी, साथ ही इसके कार्यक्षेत्र भी तय किए गए। हालांकि, आयोग को दिए गए कार्यक्षेत्रों में कई सीमाएं तय की गई हैं, जो उसकी स्वतंत्र सिफारिशों की राह में बाधा बन सकती हैं। पेंशनभोगियों के मामले में इस बार एक नया आयाम जोड़ा गया है। आयोग को "गैर-अंशदायी पेंशन योजना (ओपीएस) की अप्रदत्त लागत" का अध्ययन करने का निर्देश दिया गया है, जो पहले के कार्यक्षेत्रों से हटकर है। इससे यह आशंका जताई जा रही है कि सरकार ओपीएस को लेकर कोई कठोर रुख अपना सकती है।

'पेंशनभोगी नए वेतन आयोग को लेकर चिंतित'
संगठन ने कहा कि सरकार ने सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 को संशोधित कर 2021 में कुछ नए प्रावधान जोड़े हैं, इनसे यह तय होता है कि मौजूदा पेंशनभोगियों को वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ कब और कैसे मिलेगा, इसका फैसला केंद्र सरकार ही करेगी। इस वजह से सशस्त्र बलों सहित करीब 70 लाख पेंशनभोगी आठवें केंद्रीय वेतन आयोग को लेकर चिंतित हैं। उन्हें डर है कि कहीं उनके पेंशन संशोधन में देरी या कटौती न हो जाए। इसलिए जरूरी है कि आठवां वेतन आयोग पूरी तरह स्वतंत्र रूप से काम करे और कर्मचारियों व पेंशनभोगियों की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में रखे।  

एआईटीयूसी ने कहा कि आठवें केंद्रीय वेतन आयोग से अपेक्षा की जा रही है कि वह इन सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशें तैयार करे। एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि केंद्र सरकार के 95% से अधिक एनपीएस (नेशनल पेंशन सिस्टम) के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों ने सरकार की प्रस्तावित यूपीएस (यूनिवर्सल पेंशन स्कीम) की तीसरी योजना को अस्वीकार कर दिया है। इसके बावजूद, सरकार ने अंशदायी एनपीएस को समाप्त करने के बजाय एक और अंशदायी पेंशन योजना पेश की है, जो कर्मचारियों की मांगों के विपरीत है। ऐसे में यह अपेक्षित है कि 8वां वेतन आयोग गैर-अंशदायी पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल करने की स्पष्ट सिफारिश करे, जो कर्मचारियों की लंबे समय से चली आ रही मांग है।
 

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