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मदुरै दीप विवाद: 'मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की जांच जारी', बोले ओम बिरला
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: देवेश त्रिपाठी
Updated Fri, 19 Dec 2025 02:14 PM IST
सार
तमिलनाडु के मदुरै में मंदिर और दरगाह के बीच विवाद गहराता जा रहा है। बीते दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कार्तिगई दीपम को लेकर कहा था कि तिरुपरमकुंद्रम मुद्दे को हिंदुओं की ताकत के आधार पर राज्य में ही हल किया जा सकता है।
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लोकसभा स्पीकर ओम बिरला
- फोटो : ANI
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विस्तार
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शुक्रवार को कहा कि वह नियमों और प्रक्रिया के अनुसार डीएमके और अन्य विपक्षी सांसदों की ओर से न्यायाधीश के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव की जांच कर रहे हैं। डीएमके और इंडिया ब्लॉक के सांसदों की ओर से मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव दिया गया था।
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9 दिसंबर 2024 को दिए गए महाभियोग प्रस्ताव पर विपक्ष के 100 से ज्यादा सांसदों ने साइन किए थे। इनमें कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और सीपीआई (एम) के सांसद शामिल थे। जस्टिस स्वामीनाथन पर विपक्षी सांसदनों ने निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्षता का अभाव होने का आरोप लगाया। विपक्षी सांसदों की ओर से खासतौर पर जस्टिस स्वामीनाथन पर संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के बजाय एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा के आधार पर मामलों का फैसला करने का आरोप लगाया गया है।
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दरगाह के पास दीपथून पर दीप जलाने के दिए थे निर्देश
कार्तिगई दीपम त्योहार को लेकर जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के एक फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया था। दरअसल, मदुरै जिले में तिरुपरमकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित अरुलमिगु सुब्रमण्य स्वामी मंदिर में कार्तिगई दीपम त्योहार को लेकर जस्टिस स्वामीनाथन ने दीप जलाने के निर्देश दिए थे।
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने पहाड़ी पर स्थित जिस दीपथून पर दीप जलाने की अनुमति दी थी, वह दरगाह के पास बना हुआ है। इसी के चलते राज्य सरकार ने इस निर्देश का विरोध किया था। सरकार ने कहा था कि इससे सामाजिक सद्भाव को नुकसान हो सकता है। हालांकि, राज्य सरकार की अपील के बावजूद जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने निर्देश को बरकरार रखा। वहीं, निर्देश पर प्रशासन की ओर से अमल न होने पर उन्होंने सीआईएसएफ की सुरक्षा में दीप जलाने की अनुमति दे दी।
मामले में अब आगे क्या होगा?
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला यह निर्धारित करेंगे कि औपचारिक जांच के लिए प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं। वहीं, इस मामले पर करीब 56 पूर्व सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर महाभियोग प्रस्ताव की निंदा की थी। उन्होंने इसे न्यायाधीशों को डराने की एक दुस्साहसी कोशिश और न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला बताया।
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