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Operation Sindoor: 'ऑपरेशन सिंदूर' में जैश-ए-मोहम्मद का संचार नेटवर्क भी ध्वस्त, सरजाल में छिपा हुआ था ठिकाना
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Wed, 07 May 2025 02:46 PM IST
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सार
भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का बदला 'ऑपरेशन सिंदूर' के जरिए लिया है। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान और पीओके में कुल नौ ठिकानों को निशाना बनाया है। इस दौरा सेना ने पाकिस्तान के सरजाल में छिपे जैश-ए-मोहम्मद के संचार नेटवर्क को भी ध्वस्क कर दिया है।

'ऑपरेशन सिंदूर' में जैश-ए-मोहम्मद का संचार नेटवर्क ध्वस्त
- फोटो : PTI
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विस्तार
भारतीय वायुसेना ने बुधवार तड़के 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादियों के ठिकानों पर सटीक हमले किए। इसमें सबसे अहम निशाना जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के उस गुप्त संचार नेटवर्क को बनाया गया, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शकरगढ़ इलाके के सरजाल गांव में मौजूद था।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में छिपा था नेटवर्क
जानकारी के मुताबिक, यह नेटवर्क तहरा कलां गांव के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में छिपाया गया था और लंबे समय से भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ था। इस केंद्र में हाई फ्रिक्वेंसी (एचएफ) संचार प्रणाली लगी थी, जिसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ कर चुके आतंकियों से संपर्क बनाए रखने और उनके ऑपरेशनों की योजना बनाने में किया जाता था। भारतीय सेना की इस सर्जिकल स्ट्राइक में यह नेटवर्क पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया।
यह भी पढ़ें - Timeline: भारत ने हर बार आतंकवाद के पनाहगार पाकिस्तान को दी गहरी चोट; पढ़ें दोनों देशों के संघर्ष की टाइमलाइन
सीमा पार बैठे आकाओं से टूटा आतंकियों का कनेक्शन
सूत्रों के मुताबिक, यह हमला आतंकियों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है क्योंकि इससे सीमा पार बैठे उनके आकाओं से संपर्क व्यवस्था टूट सकती है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकियों को आधुनिक सैन्य संचार उपकरण मुहैया करा रही थी। इनमें एलओआरए (लॉन्ग रेंज) अल्ट्रा सेट और डिजिटल मोबाइल रेडियो (डीएमआर) शामिल हैं। ये उपकरण आतंकियों को भारत में पारंपरिक मोबाइल नेटवर्क का इस्तेमाल किए बिना संपर्क साधने में मदद करते थे, जिससे उनकी पहचान और ट्रैकिंग मुश्किल हो जाती थी।
घुसपैठियों के लिए पाकिस्तान ने लगाए थे मोबाइल टावर
पाकिस्तानी सेना ने इसके अलावा भारत-पाक सीमा और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के आसपास अपने मोबाइल टावरों के सिग्नल भी मजबूत किए थे ताकि घुसपैठिए आसानी से पाकिस्तानी टेलीकॉम नेटवर्क का उपयोग कर सकें और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नजर से बच सकें। जानकारी के अनुसार, ये अल्ट्रा सेट्स खासतौर पर चीन में बनाए गए थे और इन्हें पाकिस्तानी सेना के लिए कस्टमाइज किया गया था। ये सेट सामान्य मोबाइल नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी से अलग काम करते हैं और इनका कंट्रोल स्टेशन पाकिस्तान में होता था। इनके जरिए संदेश चीनी सैटेलाइट्स की मदद से भेजे जाते थे। दिलचस्प बात ये है कि दो अल्ट्रा सेट आपस में सीधे संपर्क नहीं कर सकते थे; उनके बीच संदेश पहले सरजाल कैंप भेजे जाते और वहां से एन्क्रिप्ट कर आगे भेजे जाते थे।
यह भी पढ़ें - फूट-फूटकर रोया मसूद अजहर: ऑपरेशन सिंदूर में परिवार के 10 लोगों की मौत, बोला- मैं क्यूं नहीं मर गया!
क्या है एलओआरए और डीएमआर तकनीक?
एलओआरए तकनीक कम फ्रीक्वेंसी पर लंबी दूरी तक वायरलेस संचार की सुविधा देती है, जबकि डीएमआर सिस्टम सरकारी और सैन्य नेटवर्क पर दो तरफा संपर्क के लिए इस्तेमाल होते हैं। ये सिस्टम बहुत हाई फ्रीक्वेंसी (वीएचएफ) और अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (यूएचएफ) बैंड पर चलते हैं। डीएमआर डिवाइस दिखने में आम वॉकी-टॉकी की तरह होते हैं, लेकिन ये छोटी दूरी (करीब 100 मीटर) से लेकर लंबी दूरी (100 किलोमीटर से ज्यादा) तक संपर्क कर सकते हैं। हालांकि, पहाड़ी इलाकों में इनके सिग्नल में रुकावट आ सकती है।

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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में छिपा था नेटवर्क
जानकारी के मुताबिक, यह नेटवर्क तहरा कलां गांव के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में छिपाया गया था और लंबे समय से भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ था। इस केंद्र में हाई फ्रिक्वेंसी (एचएफ) संचार प्रणाली लगी थी, जिसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ कर चुके आतंकियों से संपर्क बनाए रखने और उनके ऑपरेशनों की योजना बनाने में किया जाता था। भारतीय सेना की इस सर्जिकल स्ट्राइक में यह नेटवर्क पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया।
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सीमा पार बैठे आकाओं से टूटा आतंकियों का कनेक्शन
सूत्रों के मुताबिक, यह हमला आतंकियों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है क्योंकि इससे सीमा पार बैठे उनके आकाओं से संपर्क व्यवस्था टूट सकती है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकियों को आधुनिक सैन्य संचार उपकरण मुहैया करा रही थी। इनमें एलओआरए (लॉन्ग रेंज) अल्ट्रा सेट और डिजिटल मोबाइल रेडियो (डीएमआर) शामिल हैं। ये उपकरण आतंकियों को भारत में पारंपरिक मोबाइल नेटवर्क का इस्तेमाल किए बिना संपर्क साधने में मदद करते थे, जिससे उनकी पहचान और ट्रैकिंग मुश्किल हो जाती थी।
घुसपैठियों के लिए पाकिस्तान ने लगाए थे मोबाइल टावर
पाकिस्तानी सेना ने इसके अलावा भारत-पाक सीमा और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के आसपास अपने मोबाइल टावरों के सिग्नल भी मजबूत किए थे ताकि घुसपैठिए आसानी से पाकिस्तानी टेलीकॉम नेटवर्क का उपयोग कर सकें और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नजर से बच सकें। जानकारी के अनुसार, ये अल्ट्रा सेट्स खासतौर पर चीन में बनाए गए थे और इन्हें पाकिस्तानी सेना के लिए कस्टमाइज किया गया था। ये सेट सामान्य मोबाइल नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी से अलग काम करते हैं और इनका कंट्रोल स्टेशन पाकिस्तान में होता था। इनके जरिए संदेश चीनी सैटेलाइट्स की मदद से भेजे जाते थे। दिलचस्प बात ये है कि दो अल्ट्रा सेट आपस में सीधे संपर्क नहीं कर सकते थे; उनके बीच संदेश पहले सरजाल कैंप भेजे जाते और वहां से एन्क्रिप्ट कर आगे भेजे जाते थे।
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क्या है एलओआरए और डीएमआर तकनीक?
एलओआरए तकनीक कम फ्रीक्वेंसी पर लंबी दूरी तक वायरलेस संचार की सुविधा देती है, जबकि डीएमआर सिस्टम सरकारी और सैन्य नेटवर्क पर दो तरफा संपर्क के लिए इस्तेमाल होते हैं। ये सिस्टम बहुत हाई फ्रीक्वेंसी (वीएचएफ) और अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (यूएचएफ) बैंड पर चलते हैं। डीएमआर डिवाइस दिखने में आम वॉकी-टॉकी की तरह होते हैं, लेकिन ये छोटी दूरी (करीब 100 मीटर) से लेकर लंबी दूरी (100 किलोमीटर से ज्यादा) तक संपर्क कर सकते हैं। हालांकि, पहाड़ी इलाकों में इनके सिग्नल में रुकावट आ सकती है।