TRF: पाक ने जम्मू-कश्मीर में खड़ा किया 'लश्कर' का मुखौटा; आर्थिक चोट और 'ग्रे' सूची से निकलने के लिए किया ऐसा
पाकिस्तान के आतंकी संगठन 'लश्कर-ए-तैयबा' के मुखौटा समूह 'टीआरएफ' ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी। लश्कर चीफ हाफिज सईद को जब यह अहसास हुआ कि इस बार भारत, कोई बड़ा कदम उठाएगा तो उसने बैकफुट पर आना बेहतर समझा। यही वजह रही कि पहलगाम हमले के 48 घंटे बाद टीआरएफ ने अपना बयान बदल लिया।


विस्तार
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, पहलगाम हमले को लेकर पाकिस्तान की पोल तभी खुल गई थी, जब उसने यूएन की सुरक्षा परिषद में द रजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) का नाम लेने से रोक दिया था। भारत ने टीआरएफ का नाम लेकर जब निंदा प्रस्ताव की पहल की तो पाकिस्तान ने इसका पुरजोर विरोध किया। पाकिस्तान ने निंदा प्रस्ताव से टीआरएफ का नाम निकलवा ही दिया। आखिर, पाकिस्तान जम्मू कश्मीर के आतंकी संगठन 'टीआरएफ' का बचाव क्यों कर रहा है। जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान ने 2019 में आर्थिक चोट से बचने और 'ग्रे' सूची से बाहर आने के लिए जम्मू कश्मीर में 'लश्कर' के मुखौटे के तौर पर 'टीआरएफ' को खड़ा किया था। बाद में इस आतंकी संगठन ने पाकिस्तानी आईएसआई और 'लश्कर-ए-तैयबा' चीफ हाफिज सईद के इशारे पर जम्मू कश्मीर में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया है।
48 घंटे बाद टीआरएफ ने बदला था बयान
बता दें कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन 'लश्कर-ए-तैयबा' के मुखौटा समूह 'टीआरएफ' ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी। लश्कर चीफ हाफिज सईद को जब यह अहसास हुआ कि इस बार भारत, कोई बड़ा कदम उठाएगा तो उसने बैकफुट पर आना बेहतर समझा। यही वजह रही कि पहलगाम हमले के 48 घंटे बाद टीआरएफ ने अपना बयान बदल लिया। टीआरएफ ने कहा, इस हमले में हमारा हाथ नहीं है। आतंकी संगठन के इंटरनल ऑडिट में यह पता चला है कि किसी ने साइबर घुसपैठ कर टीआरएफ का नाम आगे कर दिया था।
पाकिस्तान ने यूएन सुरक्षा परिषद में किया बचाव
'ऑपरेशन सिंदूर' का अपडेट देते हुए विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने कहा, टीआरएफ ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी। जब पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में टीआरएफ का बचाव किया तो यह बात साफ हो गई कि पहलगाम हमला पाकिस्तान की साजिश का हिस्सा रहा है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री और पूर्व विदेश मंत्री ने यह बात मानी है कि आतंकियों के साथ उनका क्या रिश्ता रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि पहलगाम हमले की जांच के लिए एक एजेंसी का गठन होना चाहिए। पहले भी भारत इस तरह के जांच में शामिल हो चुका है। पाकिस्तानी आतंकियों को लेकर कई बार सबूत दिए जा चुके हैं। जब आतंकियों के जनाजे में पाकिस्तान की सेना शामिल होती है तो इस नापाक गठजोड़ को समझना मुश्किल नहीं है।
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2018 में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला गया
आतंकी गतिविधियों के चलते पाकिस्तान को 2018 में 'फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे सूची में डाल दिया गया था। इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से आर्थिक मदद मिलना मुश्किल हो गया। पड़ोसी मुल्क की स्थिति खराब होने लगी। भारत ने यूएन में सबूतों सहित वह प्रस्ताव रखा, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान, आतंकियों का समर्थन करता है। 'ग्रे' सूची से बाहर निकलने के लिए पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा संगठन टीआरएफ को खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं, पाकिस्तान में मौजूद दूसरे आतंकी संगठनों की भी जम्मू कश्मीर में प्रॉक्सी विंग स्थापित की गई। इसका मकसद पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय जनमत को यह बताना था कि जम्मू कश्मीर में जो आतंकी हमले हो रहे हैं, उनमें अब पाकिस्तान का हाथ नहीं है। वहां पर जो भी संगठन हैं, वे लोकल हैं। नतीजा, चार साल बाद अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान को 'ग्रे' लिस्ट से बाहर कर दिया गया। अब भारत, उसे दोबारा से ग्रे सूची में शामिल कराने का प्रयास कर रहा है।
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आर्थिक नाकाबंदी मजबूत करने पर जोर
पहलगाम के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की आर्थिक नाकाबंदी करने के लिए भारत प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान के साथ आयात-निर्यात पर रोक लगाने के बाद भारत ने एशियन डेवेलपमेंट बैंक से कहा कि वह पाकिस्तान को जो वित्तीय सहायता देता है, उसे घटाया जाए। वजह, पाकिस्तान, आतंकवादियों की शरणस्थली बन चुका है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एडीबी प्रेजिडेंट मसातो कांडा के साथ इटली में बैठक की है। इस दौरान भी पाकिस्तान की हरकतों को लेकर बातचीत हुई है। भारत का प्रयास है कि पाकिस्तान को दोबारा से 'एफएटीएफ' की ग्रे लिस्ट में शामिल कराया जाए। अगर ऐसा हो जाता है कि आर्थिक संकट का सामना कर रहे पड़ोसी मुल्क को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद मिलना मुश्किल हो जाएगा। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी इसी मुहिम में जुटे हैं। वे भी कई देशों के साथ संपर्क कर रहे हैं। एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में शामिल होने के बाद अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से पाकिस्तान को आर्थिक मदद मिलना कठिन हो जाएगा और दूसरा, जो पैसा मिलेगा, उसके इस्तेमाल पर कड़ी निगरानी होने लगेगी।
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