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Manipur Issue: लोकसभा में रात दो बजे मणिपुर पर चर्चा, गृह मंत्री के जवाब के बाद राष्ट्रपति शासन का हुआ अनुमोदन

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिव शुक्ला Updated Thu, 03 Apr 2025 02:31 AM IST
सार

मणिपुर के मामले में संसद में चर्चा के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार आधी रात के बाद लोकसभा में रात करीब दो बजे प्रस्ताव पेश किया। विपक्ष ने आधी रात चर्चा के औचित्य पर सवाल खड़े किए। इस पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि चर्चा की जा सकती है। स्पीकर के निर्देश पर चर्चा की शुरुआत कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने की। सांसदों के वक्तव्य के बाद गृह मंत्री शाह ने बताया कि मणिपुर में शांति बहाली के क्या प्रयास किए जा रहे हैं। देर रात लगभग 1.40 घंटे की चर्चा के बाद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव लोकसभा में 3.40 बजे अनुमोदित किया गया।
 

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Parliament: Discussion on Manipur in Lok Sabha at 2 am, Home Minister Shah made a proposal know updates
लोकसभा। - फोटो : संसद टीवी वीडियो ग्रैब
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विस्तार
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भारत के संसदीय इतिहास में आज एक दुर्लभ मौका आया जब लोकसभा से वक्फ विधेयक पारित होने के बाद रात दो बजे संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने सदन की कार्यवाही जारी रखने की अपील की। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव रखा। शाह ने कहा कि इसी साल फरवरी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से पेश वैधानिक संकल्प पर चर्चा की जाए। स्पीकर ओम बिरला ने चर्चा की शुरुआत कराई। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने चर्चा की शुरुआत की। पूरा मामला मणिपुर से जुड़ा है, जहां लंबे समय तक सांप्रदायिक हिंसा के कारण अशांति रही। बता दें कि शाह ने जिस वैधानिक संकल्प का जिक्र कर उसका अनुमोदन किया है, उसे राष्ट्रपति ने 13 फरवरी को जारी किया था। शाह की तरफ से पेश प्रस्ताव का मकसद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर बात कर संसद से इसा अनुमोदन करना है। देश के कानून के मुताबिक किसी राज्य में छह माह के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इसे संसद में स्वीकृत कराना जरुरी होता है।

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कांग्रेस सांसद थरूर ने 10 मिनट के भाषण में सरकार को आईना दिखाया
थरूर ने कहा कि मणिपुर की खौफनाक तस्वीरें राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के 21 महीने पहले आई थीं। उन्होंने कहा कि 70 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। 250 से अधिक लोगों की मौत हुई है। लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। इससे साफ है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के जिम्मेदार लोग अपनी ड्यूटी पूरी करने में अक्षम रहे। उन्होंने कहा कि मणिपुर की सरकार को अल्पमत में आने के कारण भंग करना पड़ा। गठबंधन सहयोगी के समर्थन वापस लेने के बाद मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। बकौल थरूर, 'लगभग दो साल से मणिपुर में हिंसा हो रही है। 11वीं बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ रहा है। 77 साल के इतिहास में सबसे अधिक बार इसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा है, जिस पर चिंता करने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने राज्य के लोगों की पीड़ा का ध्यान रखते हुए अभी तक राज्य का दौरा नहीं किया है, जो काफी चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हालात का जायजा लेने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। सरकार मणिपुर के लोगों का भरोसा खो चुकी है। राज्य चौतरफा समस्याओं से जूझ रहा है, ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला ऐसा अवसर है, जब सांविधानिक मूल्यों में लोगों का भरोसा कायम रखने के प्रयास किए जाएं। अब केंद्रीय सशस्त्र बलों की 288 कंपनियां, इंडियन आर्मी और असम राइफल्स की 150 बटालियन मणिपुर में सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही है। इसमें कोई शुबह नहीं है कि घुसबैठ, हिंसा और तनावपूर्ण हालात से निपटने में सुरक्षाबल पूरी तरह सक्षम हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में जब सुरक्षाबलों को तैनात किया जाता है, तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि विकासकार्यों पर खर्च होने वाले फंड सुरक्षाकर्मियों की तैनाती पर होते हैं। उन्होंने कहा कि वे अपनी पार्टी की तरफ से इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, लेकिन सरकार को शांति बहाली करने के और सक्रिय प्रयास करने चाहिए, जिससे वहां के लोगों का भरोसा जीता जा सके।
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सपा सांसद ने भी सरकार को घेरा
थरूर के बाद उत्तर प्रदेश से निर्वाचित सांसद लालजी वर्मा ने सरकार को कटघरे में कड़ा किया। यूपी के अंबेडकर नगर से निर्वाचित सपा सांसद लालजी वर्मा ने कहा कि मणिपुर में लंबे समय तक मानवता कराहती रही, लेकिन मानवता की बात करने वाली सरकार इस केंद्र सरकार ने हालात की संवेदनशीलता और विपक्ष की मांगों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द मणिपुर में हालात को सामान्य बनाकर राज्य में एक लोकतांत्रिक सरकार को बहाल किया जाना चाहिए।

तृणमूल की महिला सांसद का सरकार पर हमला
थरूर के बाद पश्चिम बंगाल के जादवपुर से निर्वाचित तृणमूल कांग्रेस सांसद सयानी घोष ने चर्चा में भाग लिया। उन्होंने शायराना अंदाज में सरकार को घेरा। 

जिंदगी यूं ही गुजारी जा रही है, जैसे कोई जंग हारी जा रही है।
जिस जगह पहले के जख्मों के निशां हैं, फिर वहीं पर चोट मारी जा रही है।


घोष ने कहा कि मणिपुर के हालात में सुधार के लिए प्रयास करें। पहले अपने देश के लोगों को मित्र बनाएं, वातावरण में संतुलन लाएं। इसके बाद ही विश्वबंधु कहे जाने का प्रयास करें।

इसे भी पढ़ें- Waqf Bill: लोकसभा से रात 1.56 बजे पारित हुआ वक्फ संशोधन विधेयक; 1.50 घंटे चली वोटिंग, समर्थन में पड़े 288 वोट

कनिमोझी ने भी सरकार को घेरा
घोष के बाद तमिलनाडु से निर्वाचित डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि आधी रात के बाद दो बजे से मणिपुर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करना दिखाता है कि सरकार को पूर्वोत्तर के इस राज्य की कोई परवाह नहीं है। उन्होंने कहा कि मणिपुर में 260 से अधिक मौतें हुई हैं। 67 हजार से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। पांच हजार से अधिक घरों को जलाया गया। चर्च और मंदिर में भी तोड़फोड़ की गई। वहां की स्थिति बेहद दयनीय है। सरकार को शांति बहाल करने पर ध्यान देना चाहिए।

कनिमोझी के बाद महाराष्ट्र से निर्वाचित शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे / यूबीटी) सांसद अरविंद सावंत ने चर्चा में भाग लिया। उन्होंने सरकार को घेरा और कहा कि जब वे मणिपुर का दौरा करने गए थे, तो विचलित करने वाला मंजर देखकर वे व्यथित हो गए। सरकार को मेडिकल कॉलेज के छात्रों की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।

सावंत के बाद महाराष्ट्र से ही निर्वाचित महिला सांसद सुप्रिया सुले ने मणिपुर के मुद्दे पर बात की। बारामती लोकसभा सीट से निर्वाचित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की सांसद सुले ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रस्ताव का समर्थन उन्हें भारी मन से करना पड़ रहा है। सुले ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति शासन जैसे हालात सही नहीं हैं, लेकिन गृह मंत्री शाह को जम्मू-कश्मीर के तर्ज पर ही मणिपुर के मुद्दे पर सख्ती दिखानी चाहिए, जिससे लोगों का कष्ट दूर किया जा सके।

इसके बाद बिहार की औरंगाबाद सीट से निर्वाचित राष्ट्रीय जनता दल के सांसद अभय कुमार सिन्हा ने चर्चा में भाग लिया। उन्होंने कहा कि विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए निश्चित समय सीमा तय की जाए। सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के बाद लोकतंत्र बहाल करने के लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित किया जाए। राज्य सरकार की विफलता की न्यायिक जांच कराई जाए। सरकार की जवाबदेही तय कर हिंसा के दोषियों को सख्त सजा दिलाई जाए।

 मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाना सरकार की विफलता
उत्तर प्रदेश के अमेठी सीट से निर्वाचित कांग्रेस सांसद किशोरी लाल ने कहा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाना सरकार की विफलता दिखाता है। किशोरी लाल ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद जब दो समुदाय के लोगों के बीच हिंसा हुई, तो सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इस कारण हालात और खराब हो गए। कांग्रेस पार्टी ने मणिपुर की बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ 10 फरवरी 2025 को अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही थी, लेकिन एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद 13 फरवरी से राष्ट्रपति शासन लागू है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात जैसे कार्यक्रम करते हैं, लेकिन मणिपुर की बात कभी नहीं करते, उन्हें राज्य का दौरा कर पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम करना चाहिए।

 

गृह मंत्री शाह ने दिया जवाब
सांसदों के वक्तव्य के बाद गृह मंत्री शाह ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 356 (1) का इस्तेमाल किया गया। सदन इसका अनुमोदन करे, वे यह प्रस्ताव लाए हैं। पूरे घटना की पृष्ठभूमि बताते हुए गृह मंत्री ने कहा, हाईकोर्ट के एक फैसले के कारण मणिपुर में दो समुदायों के बीच हिंसा हुई। इसे दंगा या आतंकवाद नहीं है। फैसले को समझने में हुई भूल के कारण मणिपुर में दो समुदाय आपस में भिड़ गए। सांसदों के बयान का जिक्र करते हुए शाह ने कहा, दिसंबर से मार्च के बीच बीते चार महीने में मणिपुर में हिंसा नहीं हो रही है।

 

केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता शांति बहाल करना
शाह ने कहा, राहत कैंपों में खाने-पीने की चीजें, जरूरी मेडिकल उपकरण और दवाइयों का बंदोबस्त किया गया है। टेक्निकल और मेडिकल शिक्षा के लिए ऑनलाइन इंतजाम किए गए हैं। छोटे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए भी हरसंभव प्रयास किए गए हैं। जब जातीय हिंसा होती है तो कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं। गृह मंत्री ने कहा कि हिंसा होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन सदन में ऐसा दिखाने का प्रयास किया गया कि भाजपा के शासन काल में ही हिंसा हुई। 1993 में हुई जातीय हिंसा का जिक्र कर शाह ने कहा कि 750 से अधिक मौतें हुईं। 1997-98 में कुकी-पाइते संघर्ष में 50 से अधिक गांव नष्ट हो गए। 350 से अधिक लोगों की मौत हुई। 40 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए। 1993 में ही मैतेई-पंगल समुदाय के संघर्ष में 100 से अधिक मौतें हुई थीं, छह महीने तक हिंसा चलती रही थी। तीनों जातीय हिंसा की घटनाएं ऐसे समय में हुई जब केंद्र और राज्य में विपक्षी दलों के गठबंधन- INDIA में शामिल दलों की सरकार थीं, लेकिन तब कोई गृह मंत्री या प्रधानमंत्री राज्य का दौरा करने नहीं गया।

 

मई, 2023 में हिंसा को लेकर शाह ने कहा, हाईकोर्ट के फैसले के बाद जिन 260 लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मौतें हुईं, उनमें 80 फीसदी लोग हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद पहले एक महीने के दौरान मारे गए। हालात को संवेदनशील बताते हुए शाह ने कहा कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो सरकार को भी राजनीतिक जवाब देना पड़ेगा। फिलहाल, केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता शांति बहाल करना है।



 

गृह मंत्रालय बहुत जल्द एक संयुक्त बैठक करेगा
गृह मंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दोनों समुदाय के लोगों से अलग-अलग बैठक हुई है। गृह मंत्रालय बहुत जल्द एक संयुक्त बैठक करने वाला है। ओवरऑल पूरे राज्य की परिस्थिति नियंत्रण में है। पुनर्वास पैकेज पर भी चर्चा जारी है। विस्थापित लोगों के कैंप में रहने तक हालात को सामान्य नहीं कहा जा सकता। सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर शाह ने कहा, संदन के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है। ऐसा करने के लिए कांग्रेस के पास संख्याबल ही नहीं है। 

शाह ने कहा, मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्यपाल ने भाजपा के 37, एनपीपी 6 एनपीएफ 5, जदयू एक और कांग्रेस के पांच सदस्यों से चर्चा के बाद राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की गई, जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दो महीने के भीतर सरकार लोकसभा में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने का अनुमोदन कराने आई है। वे सदस्यों से सर्वसम्मति से इसे स्वीकार करने की अपील करते हैं। इसके बाद स्पीकर ओम बिरला ने सभा की कार्यवाही को पूर्वाह्न 11 बजे तक स्थगित करने का एलान किया।

 

क्या है मणिपुर का संकट
गौरतलब है कि मई 2023 में मणिपुर के जातीय हिंसा हुई थी। हिंसक घटनाओं में 250 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। कई लोगों को विस्थापन के दंश भी झेलने पड़े। इसी साल मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति शासन लगाने का एलान किया गया।
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