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Parliament Security Breach: कैसे होती है संसद की सुरक्षा, कितने सुरक्षा घेरों को करना पड़ता है पार, जानें

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Wed, 13 Dec 2023 03:30 PM IST
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सार

यह जानना जरूरी है कि आखिर संसद में सुरक्षा की कितनी परतें होती हैं। 2001 के बाद से संसद की सुरक्षा कितनी बदली है। पहले के मुकाबले अब सुरक्षा घेरों को पार करने के लिए लोगों को क्या जरूरत होती है। आइए जानते हैं...

Parliament Security Details know Security agencies for securing and safeguarding Rajya Sabha Lok Sabha Breach
संसद की सुरक्षा में ये हैं घेरे। - फोटो : Amar Ujala
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भारत की संसद पर 13 दिसंबर 2001 को हुए हमले के बाद इसकी सुरक्षा में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। नए संसद भवन में भी यही सुरक्षा बदलाव आज भी लागू हैं। हालांकि, बुधवार को हुई घटना ने एक बार फिर देश की सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं। बताया गया है कि लोकसभा में दर्शक दीर्घा में जो दो व्यक्ति कूदे, वे दोनों ही एक सांसद के प्रस्ताव पर संसद के अंदर घुसे। इन्हें फिलहाल हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। 
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इस बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर संसद में सुरक्षा की कितनी परतें होती हैं। 2001 के बाद से संसद की सुरक्षा कितनी बदली है। पहले के मुकाबले अब सुरक्षा घेरों को पार करने के लिए लोगों को क्या जरूरत होती है। आइए जानते हैं...
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कैसे होती है संसद की सुरक्षा?
संसद की सुरक्षा व्यवस्था में ढेर सारी एजेंसीज़ और उनका इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल होता है। लोकसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव (सुरक्षा) संसद की पूरी सुरक्षा के प्रमुख होते हैं। संसद की सुरक्षा में लगी सारी एजेंसियां, इन्हीं को रिपोर्ट करती हैं।

संसद की सुरक्षा में कौन-कौन सी एजेंसी शामिल
1. पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस
2. पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG) 
3. सुरक्षा एजेंसियां
4. दिल्ली पुलिस

1. पहला घेरा- दिल्ली पुलिस
संसद की सुरक्षा के सबसे बाहरी घेरे में दिल्ली पुलिस तैनात रहती है। यानी सबसे पहली एंट्री में लोगों पर दिल्ली पुलिस की निगरानी रहती है। यहां किसी भी तरह की घटना पर दिल्ली पुलिस की ही कार्रवाी होती है। दिल्ली पुलिस यहां VVIP को सुरक्षा मुहैया कराने से लेकर उन्हें एस्कॉर्ट करने तक का काम कराते हैं। 

2. दूसरा घेरा- सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एनएसजी, आदि
संसद परिसर के आसपास ढेर सारी एजेंसियों के हथियारबंद जवान भी तैनात होते हैं। इनमें सीआरपीएफ, आईटीबीपी और एनएसजी के कमांडो प्रमुख हैं। इसके अलावा दिल्ली पुलिस की एक आतंकरोधी स्वाट (SWAT) टीम भी तैनात रहती है। इसमें दिल्ली पुलिस के कमांडो होते हैं, जिनके पास अचानक आए किसी भी खतरे से निपटने के लिए खास हथियार और वाहन होते हैं। इनकी ड्रेस एनएसजी के ब्लैक कैट कमांडोज की तरह दिखती है, लेकिन इनकी वर्दी का रंग नीला होता है।

3. पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG)
संसद के बाहर अगला घेरा केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG) ग्रुप का है। यह फोर्स डेढ़ हज़ार से ज्यादा जवान और अधिकारियों से मिलकर बनी है, जिसका मुख्य काम संसद और देश की रक्षा है। इस सुरक्षा घेरे को बनाने का काम 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के हमले के बाद ही हुआ। पीडीजी के पास आतंकरोधी ऑपरेशन के लिए पास से लड़ने वाले हथियार और वाहन होते हैं। इसमें एक समर्पित संचार टीम और मेडिकल टीम होती है। 

4. पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस (PSS)
संसद में बाहरी सुरक्षा के घेरों के बाद आता है, संसद के अंदर की सुरक्षा। लोकसभा और राज्यसभा में सांसदों की सुरक्षा के लिए यही सुरक्षा सेवा तैनात रहती है। दोनों सदनों के लिए अलग-अलग सुरक्षा मुहैया कराई जाती है। यही सेवा संसद में सांसदों के अलावा विजिटर्स पास से आए लोगों, मीडिया से आए लोगों और बाकी लोगों की सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होती है। इसके अलावा लोकसभा के स्पीकर, राज्यसभा के सभापति और सांसदों को भी संसद के अंदर यही सिक्योरिटी सर्विस सुरक्षा देती है। दोनों सदनों में तैनात मार्शल भी इसी सर्विस को रिपोर्ट करते हैं। 

इतना ही नहीं पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस देश के अहम लोगों की रक्षा के लिए तैनात सुरक्षा सेवाओं से सहयोग का काम भी करती है। मसलन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद पहुंचते हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए एसपीजी के साथ तालमेल बिठाने का काम भी पीएसएस का ही होता है। इसके अलावा बजट की सुरक्षा, राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बैलट बक्सों की सुरक्षा, संसद परिसर में आने वाली गाड़ियों की चेकिंग और आग या किसी और आपदा में पहली भूमिका इसी सुरक्षा समूह की होती है। 
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