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SHANTI Bill: संसद में बिल का विरोध, मनोज झा बोले- कोई सरकार अमृत पीकर नहीं आती; सागरिका घोष की बात पर भी चर्चा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नितिन गौतम
Updated Thu, 18 Dec 2025 03:28 PM IST
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राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने SHANTI बिल का विरोध किया
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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परमाणु क्षेत्र में निजी भागीदारी की अनुमति देने वाले विधेयक 'भारत के रुपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा का संधारणीय दोहन और अभिवर्द्धन विधेयक, 2025’ (Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India (SHANTI) Bill, 2025) को बुधवार को लोकसभा से मंजूरी मिल गई। गुरुवार को इस विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा हुई, जहां विपक्षी सांसदों ने इसका जमकर विरोध किया।
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कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने किया विरोध
बिल पर चर्चा की शुरुआत में केंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा कि किसी शब्द का संक्षिप्त स्वरूप या नाम को चर्चित बनाने में वर्तमान सरकार का कोई मुकाबला नहीं है। उन्होंने केंद्र सरकार को 2014 के पहले का इतिहास बताते हुए विधेयक से जुड़ी चिंताओं को रेखांकित किया। जयराम रमेश ने कहा कि देश का पहला परमाणु ऊर्जा कानून 6 अप्रैल, 1948 को बना था। पंडित नेहरू ने बिल पेश किया था, जिस पर चर्चा के बाद संविधान सभा ने सहमति जताई थी। बकौल जयराम रमेश, तत्कालीन कैबिनेट में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, आंबेडकर जैसे लोग थे। करीब आधे घंटे के संबोधन के अंतिम हिस्से में कर्नाटक से निर्वाचित कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रमेश ने कहा, जाने-माने एटॉमिक इंजीनियर डॉ काकोडकर ने निजी क्षेत्र को अनुमति देने के फैसले को लेकर आगाह किया था। उन्होंने कहा, सरकार कई तरह से मजबूर है। अमेरिका और विदेशी कंपनियों समेत निजी कंपनियों की मजबूरी है। सरकार कह रही है कि एक साल से विचार चल रहा है, लेकिन और लोगों से राय-मशविरा करने से आसमान नहीं गिर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह से जल्दबाजी में निजी क्षेत्र को परमाणु क्षेत्र से जुड़ी अनुमति देना घातक साबित हो सकता है।
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तृणमूल कांग्रेस सांसद ने भी विरोध किया
पश्चिम बंगाल से निर्वाचित तृणमूल कांग्रेस सांसद सागरिका घोष ने भी इस शांति विधेयक का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि SHANTI बिल के नाम पर बनाया जा रहा यह कानून देश के लिए बुनियादी रूप से बहुत घातक है। उन्होंने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा, एक देश के रूप में क्या हम संप्रभुता से समझौता करने को तैयार हैं? हमें इस सवाल पर विचार करना होगा। विदेशी दबाव का जिक्र करते हुए सागरिका ने कहा कि सरकार कुलीन और धनाढ्य लोगों के हित में निरंकुश तरीके से नीतियां बना रही है। उन्होंने कहा, ये किसी से छिपा नहीं है कि सरकार किन उद्योगपतियों के हित में नीतियां बना रही है। उन्होंने इस विधेयक के प्रावधानों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि परमाणु कोई सामान्य वाणिज्यिक गतिविधि वाला क्षेत्र नहीं है। ऐसे में सरकार को इस तरह की जल्दबाजी में ऐसे कानून बनाने से बचना चाहिए। उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिम्मेदारियों के अभाव में दोषी बच निकलते हैं और पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजे नहीं मिलते।
मनोज झा के भाषण की भी चर्चा, कहा- कोई भी सरकार अमृत पीकर नहीं आती
बिहार से आने वाले प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने जब परमाणु से जुड़े इस बिल पर बोलना शुरू किया तो उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज में कहा, कोई भी सरकार अमृत पीकर नहीं आती। उन्होंने कहा, विधेयक से जुड़े प्रावधान चिंताजनक हैं, इसलिए वे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की तरफ से वे कुछ आपत्तियां दर्ज कराना चाहते हैं। उन्होंने कहा, न जाने इस बिल को देखकर उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति है। उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े सिद्धांतों का जिक्र करते हुए कहा, जहां खतरा या आपदा की आशंका हो, वहां सरकार की मौजूदगी होनी ही चाहिए। दुनिया में अपनाई जा रही नीतियों का जिक्र करते हुए प्रोफेसर झा ने कहा, भारत सरकार को चीन, फ्रांस और रूस जैसे देशों के मानकों पर भी ध्यान देना चाहिए। इस विषय पर अमेरिका के मॉडल को सर्वश्रेष्ठ मानना ठीक नहीं है।