कानों देखी: हमेशा सतर्क और सख्त दिखने वाले योगी आदित्यनाथ को क्यों आ रहा है गुस्सा!
देश के लगभग सभी राज्यों में कोराना के चलते स्वास्थ्य सेवाओं की बदइंतजामी सामने आ गई है, ऐसे में एक मंत्री को अपने नजदीकी रिश्तेदार को बेड दिलाने के लिए लगाना पड़ा एड़ी-चोटी का जोर, वहीं संक्रमण से बाहर आने के बाद क्यों बढ़ रहा है योगी का गुस्सा, पढ़ें राजनीतिक जगत की गपशप हमारे विशेष कॉलम कानों-देखी में...
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हो सकता है कोरोना के कारण शरीर में आई सुस्ती ही कारण हो? यह भी हो सकता है कि निजी सचिव जयशंकर सिंह और प्रताप के कोरोना संक्रमित होने का भी असर हो। वैसे तो टीम मुख्यमंत्री योगी के कई अधिकारी कोरोना संक्रमित हैं। सूचना विभाग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले नवनीत सहगल भी अभी संक्रमण से बाहर नहीं आए हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय भी संक्रमण से खासा तंग है। सीएम के ओएसडी तक परेशान हैं, लेकिन एक चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री जल्दी-जल्दी गुस्से में आ रहे हैं। बताते हैं पहले ऐसा नहीं था। वे हमेशा प्रशासनिक मामलों में सतर्क और सख्त रहते थे, लेकिन इस तरह से गुस्सा नहीं करते थे। हालांकि इस बारे में लखनऊ के एक बड़े अधिकारी ने सही फरमाया। जनाब का कहना है कि 2022 आने में अब सात महीने ही रह गए हैं। ऊपर से कोरोना ने जीना हराम कर रखा है। अब इस पर गुस्सा भी नहीं आएगा क्या?
मेरे समधी को तो वेंटीलेटर वाला बेड दिलवाओ
एक राज्यमंत्री के सामने बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो गई। कुछ समय पहले तक वह कोरोना संक्रमण से निपटने की तैयारियों पर ठीकठाक बातें कर रहे थे। थोड़ी देर में उन्हें पता चला कि उनके समधी कोरोना संक्रमित हैं और सुबह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है। उनका स्टाफ समधी के लिए अस्पताल में वेंटीलेटर वाले बेड के इंतजाम में जुट गया। कई बार अस्पतालों में फोन घुमाने के बाद निराश स्टाफ ने मंत्री को अपनी व्यथा बताई। बताते हैं इसके बाद मंत्री को खुद मोर्चा संभालना पड़ा। बड़ी मशक्कत के बाद उन्हें बेड दिलवाने में कामयाबी मिल पाई। मामला यहीं नहीं थमा। बेड़ मिलने के तुरंत बाद मंत्री ने अपने स्टाफ को भी ताकीद कर दिया कि कोई भी सिफारिश आए तो हमारे रिश्तेदार का हवाला देकर मामला संभाल लेना।
बस आ जाते हैं डा. गुलेरिया, डा. पॉल, डा. त्रेहन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टीम के मीडिया मैनेजमेंट का कोई जवाब नहीं है। टीम के गुरु प्रधानमंत्री के पुराने विश्वास पात्र हैं। उनके नाम से बड़े-बड़े केन्द्रीय मंत्री और सचिव स्तर के अधिकारी घबराते हैं। उन्हें पता है कि कब प्रधानमंत्री की यशस्वी छवि को सरकार के सहारे की जरूरत है और कब किस चेहरे को जनता के बीच में छवि को ठीकठाक रखने के लिए आगे लाना है। बताते हैं कोरोना का विस्फोट होने के बाद से लगातार एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया, नीति आयोग के सदस्य डा. वीके पॉल, मेदांता के डा. त्रेहन मोर्चा संभाले हुए हैं। कहा जा रहा है कि यह ऐसे ही नहीं है। इसके पीछे बड़ा कारण यह भी तीनों चेहरे चिकित्सा क्षेत्र का नाम हैं। इनके सामने आने से जहां जनता को जानकारी मिलेगी, वहीं लोगों का गुस्सा थामने में मदद मिलेगी। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि राजनीतिक बातें नहीं होंगी। बताते हैं यही कारण है कि इन तीन चेहरों के बाद और कोई चेहरा सामने नहीं आ रहा है। इन सबके समानांतर पूरा मोर्चा प्रधानमंत्री ने भी संभाल रखा है।
हम तो कह रहे थे, हमारी सुन कौन रहा था?
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो बताएंगे कि कोरोना की 2021 की लहर के लिए कई एजेंसियां लगातार चेतावनी दे रही थीं। एक बड़े अधिकारी तो यहां तक कहते हैं टीकाकरण का अभियान शुरू होने से पहले ही पटरी से उतर गया। उन लोगों को उम्मीद थी कि इसका शुभारंभ भी अच्छे तरीके से होगा, लेकिन दिसंबर 2020 के आखिरी सप्ताह तक ऊहापोह की स्थिति बनी रही। सूत्र बताते हैं कि मार्च में सीधे संक्रमण के मामले तीन गुना बढ़ जाने पर लोगों के कान जरूर खड़े हुए, लेकिन फिर वही सवाल। आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? कोविड-19 टास्क फोर्स के एक सदस्य तो यहां तक कहते हैं कि जब बड़े-बड़े कोविड व्यवहार को धता बताने लगे तो आखिर वह लोगों से ही कैसे उसे मानने की अपील करवा पाते।