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Defence: रक्षा कंपनियों का मुनाफा 35 करोड़ से बढ़कर हुआ 1,549 करोड़ रुपये, अब कर्मचारी कर रहे हैं ये मांग

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Wed, 16 Oct 2024 07:56 PM IST
सार

Defence: केंद्र सरकार ने तीन वर्ष पहले आयुध निर्माणी बोर्ड को खत्म कर 7 कंपनियां बनाई थीं। आयुध कारखानों का निगमीकरण कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ कर्मचारी अभी तक कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

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Profit of defense companies increased from Rs 35 crore to Rs 1,549 crore, now employees are making this demand
आयुध निर्माणी कानपुर - फोटो : amar ujala
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विस्तार
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केंद्र सरकार ने तीन साल पहले दो सौ वर्ष से अधिक पुराने 41 आयुध कारखानों को सात निगमों में तब्दील कर दिया था। इसके साथ आयुध निर्माणी बोर्ड भी खत्म हो गया। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी.श्रीकुमार ने बुधवार को बताया, मीडिया में ऐसी रिपोर्ट सामने आई है कि आयुध निर्माणी बोर्ड खत्म कर जो 7 कंपनियां बनाई गई थीं, तीन वर्ष में उनका मुनाफा 35 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,549 करोड़ रुपये हो गया है। वाईआईएल ने 425 करोड़ रुपये का लाभ, एवीएनएल ने 605 करोड़ रुपये का लाभ और एमआईएल ने 559 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है। दूसरी तरफ कारखानों का निगमीकरण होने के बाद कर्मचारियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। अपनी दिक्कतों को लेकर वह लगातार सरकार से मांग कर रहे हैं।
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बतौर श्रीकुमार, कर्मचारी मांग कर रहे हैं कि उन्हें सरकारी कर्मचारियों के रूप में भर्ती किया गया है। वे किसी भी सूरत में निगमों में शामिल नहीं होना चाहते। केंद्र सरकार ने तीन वर्ष पहले आयुध निर्माणी बोर्ड को खत्म कर 7 कंपनियां बनाई थीं। आयुध कारखानों का निगमीकरण कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ कर्मचारी अभी तक कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी मांग है कि उन्हें सरकारी कर्मचारियों के रूप में ही रखा जाए। सरकार को संबंधित आयुध कारखानों में उनकी सेवानिवृत्ति तक केंद्र सरकार के कर्मचारियों / रक्षा नागरिक कर्मचारियों के रूप में उनकी स्थिति बनाए रखने के लिए एक अधिसूचना प्रकाशित करनी चाहिए। एआईडीईएफ द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में दायर याचिका में सरकार द्वारा दिए गए उस आश्वासन के अनुसार कि कर्मचारियों का वही दर्जा बरकरार रखा जाए, जो निगमीकरण से पहले था। सी. श्रीकुमार ने कहा, ये कंपनियां किस आधार पर लाभ का दावा कर रही हैं, अभी तक यह ज्ञात नहीं है।
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रक्षा क्षेत्र की कंपनियां लाभ में चल रही हैं, यह दावा सीएजी ऑडिट रिपोर्ट पर आधारित है, सशस्त्र बलों या अन्य ग्राहकों को की गई सामान की आपूर्ति के आधार पर है, यह मालूम नहीं है। भारत सरकार को कोई लाभांश दिया गया है, ऐसा कुछ भी ज्ञात नहीं है। बतौर श्रीकुमार, इन कंपनियों के प्रबंधन ने सरकार को संतुष्ट करने के लिए इस प्रकार के बयानों की घोषणा की है तो इसके बदले में सरकार को यह बताना होगा कि निगमीकरण का निर्णय एक सफल निर्णय है। कर्मचारियों के संगठन ने रक्षा मंत्री को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है। उसमें कहा गया है कि आयुध कारखानों के निगमीकरण का प्रयोग, एक दुस्साहस और पूर्ण विफलता है। अब तक रक्षा मंत्रालय ने एआईडीईएफ, बीपीएमएस और सीडीआरए द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत रिपोर्टों का जवाब देने की जहमत नहीं उठाई है। रक्षा मंत्री ने बार-बार यह आश्वासन तो दिया है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी फेडरेशनों के साथ नियमित बातचीत करेंगे। उनके सेवा संबंधी सभी मामलों का निपटारा किया जाएगा। 

इसके अलावा प्रत्यक्ष उत्पादन श्रमिकों को उनके आउटपुट और प्रदर्शन के आधार पर लाभ मिलता था। पीस वर्क प्रॉफिट में भी भारी गिरावट आई है। कई आयुध कारखानों में कर्मचारी अपना न्यूनतम समय वेतन कमाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। ये कर्मचारी अभी तक सरकारी कर्मचारी हैं। उनका वेतन कम नहीं किया जा सकता। यदि वे अपना वेतन अर्जित करने में सक्षम नहीं हैं तो उनके न्यूनतम समय वेतन की गारंटी प्रबंधन द्वारा सरकारी आदेशों के अनुसार और न्यूनतम वेतन अधिनियम के अनुसार दी जानी चाहिए। कर्मियों को न्यूनतम गारंटी वेतन का भुगतान किया जाए। 

पहले, कर्मचारियों को 41 आयुध कारखानों के औसत प्रदर्शन के आधार पर उत्पादकता से जुड़ा बोनस मिलता था। अब, प्रत्येक कंपनी अपने स्वयं के बोनस की घोषणा कर रही है। दो निगमों एडब्लूईआईएल और जीआईएल ने केवल 30 दिनों के न्यूनतम बोनस का भुगतान किया है। टीसीएल ने अभी तक अपने कर्मचारियों को 30 दिन के बोनस की भी घोषणा नहीं की है। निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा के नाम पर प्रबंधन उत्पादों के श्रम अनुमानों में भारी कमी कर रहा है। पूरा बोझ औद्योगिक श्रमिकों के कंधे पर डाला जा रहा है, जो टुकड़ा कार्य प्रणाली पर तैनात हैं। कर्मचारी और उनकी यूनियनें इस अन्याय के खिलाफ लगातार लड़ रहे हैं। 

पिछले तीन वर्षों से देश की सेवा करते हुए शहीद हुए कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पूरी तरह से बंद कर दी गई है। इस संबंध में सरकार को कई अभ्यावेदन सौंपे गए हैं। उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। हाल ही में कर्मचारियों को पता चला कि सरकार, कर्मचारियों को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में एकतरफा ट्रांसफर करने पर विचार कर रही है। इस तरह दूसरी सैकड़ों समस्याएं भी हैं, जिनका कर्मचारियों को सामना करना पड़ रहा है। कर्मचारियों के प्रति न तो सरकार और न ही कंपनियों का रुख सकारात्मक है। कर्मचारियों को संकट, तनाव और अवसाद में रखना और यह दावा करना कि कंपनियां लाभ में चल रही हैं, एक क्रूर मजाक है। 

श्रीकुमार ने बताया, एक जिम्मेदार एवं देशभक्त ट्रेड यूनियन होने के नाते कर्मियों ने अभी तक उत्पादन गतिविधियों में असहयोग का कोई निर्णय नहीं लिया है। यदि सभी कंपनियों ने लाभ कमाया है तो यह केवल कर्मचारियों की सभी समस्याओं और कठिनाइयों के बावजूद उनकी कड़ी मेहनत के कारण है। इसके बाद भी सरकार, उनके हितों की उपेक्षा कर रही है। यह दावा करने की बजाए कि कंपनियां निगमीकरण के कारण लाभ में हैं, सरकार को एक मॉडल नियोक्ता के रूप में कर्मचारियों के कल्याण और आवश्यकता का ध्यान रखना चाहिए। 
 
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