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मराठा आरक्षण का विरोध तेज: ओबीसी-बंजारा और आदिवासी संगठन ने की प्रदर्शन की तैयारी, जानें अब आगे क्या होगा?
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जालना
Published by: बशु जैन
Updated Sun, 14 Sep 2025 07:54 PM IST
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सार
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे ने बीते 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान में भूख हड़ताल शुरू की थी। दबाव के बीच, सरकार ने दो सितंबर को एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी कर कहा कि जिन मराठाओं के पास पुराने दस्तावेजों में खुद को कुनबी बताया गया है, उन्हें कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इसका विरोध शुरू हो गया है।

मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
महाराष्ट्र में अब मराठा आरक्षण का विरोध तेज हो गया है। मराठों को आरक्षण देने के लिए जारी सरकारी आदेश के विरोध में जालना जिले में ओबीसी-बंजारा और आदिवासी संगठन ने विरोध प्रदर्शन की तैयारी की है। संगठनों का कहना है कि राज्य सरकार जब तक मराठा आरक्षण जीआर को वापस नहीं लेती, तब तक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र और कोटा प्राप्त करने की अनुमति देने वाले हैदराबाद राजपत्र के कार्यान्वयन से अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। कुनबी एक कृषि प्रधान समुदाय, महाराष्ट्र में ओबीसी वर्ग का हिस्सा है।
बंजारा संगठन गोर सेना के अध्यक्ष संदेश चव्हाण ने कहा कि हमें अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था और हैदराबाद राज्य में आरक्षण प्राप्त था। हम चाहते हैं कि हमारे समान अधिकार बहाल हों। धाराशिव निवासी 32 वर्षीय बंजारा स्नातक ने शनिवार को आत्महत्या कर ली। उसने अपने पीछे एसटी आरक्षण की मांग करते हुए एक नोट छोड़ा था। 11 सितंबर से बंजारा युवा जालना कलेक्टर कार्यालय के बाहर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं। जबकि वरिष्ठ नेता हरिभाऊ राठौड़ ने 15 सितंबर को जालना और बीड में मार्च निकालने की घोषणा की है।
आदिवासी संगठन ने बंजारा समुदाय की मांग का किया विरोध
आदिवासी संगठनों ने बंजारा समुदाय की मांग का विरोध किया है और दावा किया है कि बंजारा समुदाय को विमुक्त जाति और घुमंतू जनजाति (वीजेएनटी) खंड के तहत पहले से ही 3 प्रतिशत कोटा का लाभ मिल रहा है। ओबीसी कार्यकर्ता नवनाथ वाघमारे और सतसुंग मुंधे ने चेतावनी दी कि आरक्षण बढ़ाने से ओबीसी श्रेणी में पहले से सूचीबद्ध 374 जातियों के अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे। ओबीसी नेताओं ने 10 अक्तूबर को नागपुर में एक विशाल मोर्चा निकालने का संकल्प लिया है।
वहीं मराठा क्रांति मोर्चा के राज्य समन्वयक संजय लाखे पाटिल ने भी जारंगे के खिलाफ बोलते हुए दावा किया है कि उन्हें हैदराबाद राजपत्र के बारे में कोई गहन जानकारी नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि केवल कुनबी रिकॉर्ड वाले मराठों को ही लाभ मिलेगा। सरकार मराठों को धोखा दे रही है।
हैदराबाद राजपत्र क्या है?
मराठवाड़ा क्षेत्र हैदराबाद के निजाम के अधीन था। उनके प्रशासन ने राजपत्र में जातियों और व्यवसायों का दस्तावेजीकरण किया था। 1918 में मराठों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दिया गया था। जो एक ऐसी मिसाल है जिसका इस्तेमाल अब उनके ओबीसी दावे के समर्थन में किया जा रहा है। उस समय निजाम का शासन 17 जिलों पर था, जिनमें से पांच, औरंगाबाद, बीड, नांदेड़, परभणी और उस्मानाबाद, बाद में महाराष्ट्र का हिस्सा बन गए।
मराठा आरक्षण की मांग और महाराष्ट्र में रार
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला उस समय लिया, जब मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे ने बीते 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान में भूख हड़ताल शुरू की थी। उनके आंदोलन के चलते दक्षिण मुंबई के कई इलाकों में जनजीवन प्रभावित हुआ। इस दबाव के बीच, सरकार ने दो सितंबर को एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी कर कहा कि जिन मराठाओं के पास पुराने दस्तावेजों में खुद को कुनबी बताया गया है, उन्हें कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इसके लिए एक समिति का गठन भी किया गया है। हालांकि, सरकार के इस कदम से ओबीसी वर्गों में नाराजगी देखी जा रही है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा।

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बंजारा संगठन गोर सेना के अध्यक्ष संदेश चव्हाण ने कहा कि हमें अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था और हैदराबाद राज्य में आरक्षण प्राप्त था। हम चाहते हैं कि हमारे समान अधिकार बहाल हों। धाराशिव निवासी 32 वर्षीय बंजारा स्नातक ने शनिवार को आत्महत्या कर ली। उसने अपने पीछे एसटी आरक्षण की मांग करते हुए एक नोट छोड़ा था। 11 सितंबर से बंजारा युवा जालना कलेक्टर कार्यालय के बाहर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं। जबकि वरिष्ठ नेता हरिभाऊ राठौड़ ने 15 सितंबर को जालना और बीड में मार्च निकालने की घोषणा की है।
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आदिवासी संगठन ने बंजारा समुदाय की मांग का किया विरोध
आदिवासी संगठनों ने बंजारा समुदाय की मांग का विरोध किया है और दावा किया है कि बंजारा समुदाय को विमुक्त जाति और घुमंतू जनजाति (वीजेएनटी) खंड के तहत पहले से ही 3 प्रतिशत कोटा का लाभ मिल रहा है। ओबीसी कार्यकर्ता नवनाथ वाघमारे और सतसुंग मुंधे ने चेतावनी दी कि आरक्षण बढ़ाने से ओबीसी श्रेणी में पहले से सूचीबद्ध 374 जातियों के अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे। ओबीसी नेताओं ने 10 अक्तूबर को नागपुर में एक विशाल मोर्चा निकालने का संकल्प लिया है।
वहीं मराठा क्रांति मोर्चा के राज्य समन्वयक संजय लाखे पाटिल ने भी जारंगे के खिलाफ बोलते हुए दावा किया है कि उन्हें हैदराबाद राजपत्र के बारे में कोई गहन जानकारी नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि केवल कुनबी रिकॉर्ड वाले मराठों को ही लाभ मिलेगा। सरकार मराठों को धोखा दे रही है।
हैदराबाद राजपत्र क्या है?
मराठवाड़ा क्षेत्र हैदराबाद के निजाम के अधीन था। उनके प्रशासन ने राजपत्र में जातियों और व्यवसायों का दस्तावेजीकरण किया था। 1918 में मराठों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दिया गया था। जो एक ऐसी मिसाल है जिसका इस्तेमाल अब उनके ओबीसी दावे के समर्थन में किया जा रहा है। उस समय निजाम का शासन 17 जिलों पर था, जिनमें से पांच, औरंगाबाद, बीड, नांदेड़, परभणी और उस्मानाबाद, बाद में महाराष्ट्र का हिस्सा बन गए।
मराठा आरक्षण की मांग और महाराष्ट्र में रार
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला उस समय लिया, जब मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मनोज जरांगे ने बीते 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान में भूख हड़ताल शुरू की थी। उनके आंदोलन के चलते दक्षिण मुंबई के कई इलाकों में जनजीवन प्रभावित हुआ। इस दबाव के बीच, सरकार ने दो सितंबर को एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी कर कहा कि जिन मराठाओं के पास पुराने दस्तावेजों में खुद को कुनबी बताया गया है, उन्हें कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इसके लिए एक समिति का गठन भी किया गया है। हालांकि, सरकार के इस कदम से ओबीसी वर्गों में नाराजगी देखी जा रही है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा।