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Jaguar Crash: पांच महीने में दूसरा जगुआर क्रैश; करगिल और सियाचिन में दिखाई थी ताकत, क्या अब विदाई की घड़ी आई?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Wed, 09 Jul 2025 06:41 PM IST
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सार
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भारतीय वायुसेना का जगुआर।
- फोटो :
अमर उजाला
विस्तार
राजस्थान के चुरू के पास बुधवार सुबह एक जगुआर प्रशिक्षण विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के दो पायलटों की मौत हो गई। आईएएफ ने कहा कि दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का गठन किया गया है।ऐसे में यह जानना अहम है कि जो जगुआर लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है, वह कितना खतरनाक है? आमतौर पर भारत में फ्लाइंग कॉफिन कहे जाने वाले मिग विमानों के हादसे की खबरें आम हैं, पर जगुआर का भारत में क्या इतिहास है? इसे किसने बनाया है और इसकी खूबियां क्या हैं? भारतीय वायुसेना कब से इस फाइटर जेट का इस्तेमाल कर रही है और इसने कब-कब देश को संघर्ष के मैदान पर बढ़त दिलाई है। आइये जानते हैं...
पहले जानें- क्या है जगुआर विमान?
एसईपीईसीएटी (SEPECAT) जगुआर एक कम ऊंचाई पर उड़ने वाला सुपरसॉनिक (आवाज की गति से तेज रफ्तार वाला) लड़ाकू विमान है। इसके उत्पादन के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने साझेदारी की थी। 1960 में पहली बार इसे बनाने की तैयारी शुरू हुई और 1968 से लेकर 1981 तक इसका उत्पादन किया गया। शुरुआती दौर में इसे ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स और फ्रांस की वायुसेना ने इस्तेमाल किया। इस लड़ाकू विमान को अमेरिका-रूस के बीच शीत युद्ध के मद्देनजर परमाणु क्षमताओं के इस्तेमाल लायक बनाया था।
विदेशी बाजार में जगुआर को उम्मीद के मुताबिक खरीदार नहीं मिले, लेकिन भारत, ओमान, इक्वाडोर और नाइजीरिया में वायुसेनाओं ने इस लड़ाकू विमान को काफी पसंद किया। इन देशों ने अपने अलग-अलग सैन्य अभियानों में जगुआर का इस्तेमाल भी किया। खासकर भारत ने तो दो अलग-अलग मौकों पर जगुआर के जरिए पाकिस्तान को खदेड़ा।
एसईपीईसीएटी (SEPECAT) जगुआर एक कम ऊंचाई पर उड़ने वाला सुपरसॉनिक (आवाज की गति से तेज रफ्तार वाला) लड़ाकू विमान है। इसके उत्पादन के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने साझेदारी की थी। 1960 में पहली बार इसे बनाने की तैयारी शुरू हुई और 1968 से लेकर 1981 तक इसका उत्पादन किया गया। शुरुआती दौर में इसे ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स और फ्रांस की वायुसेना ने इस्तेमाल किया। इस लड़ाकू विमान को अमेरिका-रूस के बीच शीत युद्ध के मद्देनजर परमाणु क्षमताओं के इस्तेमाल लायक बनाया था।
विदेशी बाजार में जगुआर को उम्मीद के मुताबिक खरीदार नहीं मिले, लेकिन भारत, ओमान, इक्वाडोर और नाइजीरिया में वायुसेनाओं ने इस लड़ाकू विमान को काफी पसंद किया। इन देशों ने अपने अलग-अलग सैन्य अभियानों में जगुआर का इस्तेमाल भी किया। खासकर भारत ने तो दो अलग-अलग मौकों पर जगुआर के जरिए पाकिस्तान को खदेड़ा।
क्या हैं जगुआर की खासियतें?
- जगुआर हाई-विंग लोडिंग डिजाइन की वजह से कम-ऊंचाई पर एक स्थिर उड़ान भर सकता है। इससे यह रडार की पकड़ में आने से भी बचता है।
- अपने डिजाइन की वजह से जगुआर जंगी हथियारों को आसानी से ले जा सकता है। विमान के विंग स्पैन पर लगे पंखों से इसे शानदार ग्राउंड क्लीयरेंस मिलता है।
- जगुआर एक मल्टीरोल फाइटर जेट है, जो एयर-टू-ग्राउंड, एयर-टू-एयर, और एंटी-शिप मिसाइलों से लैस है, इसमें परमाणु हथियारों से हमला करने की भी क्षमता है।
- इसमें घातक हथियार भी मौजूद हैं। इससे जमीनी हमले, हवाई क्षेत्र की रक्षा, और नौसैन्य हमलों को अंजाम देने की क्षमताएं हैं।
- जगुआर सिंगल सीटर, डबल इंजन एयरक्राफ्ट है।. इसके ट्रेनर प्रारूप में दो पायलटों को बिठाने की भी व्यवस्था है।
ये फाइटर जेट एक बार में 900-1000 किमी तक उड़ान भर सकता है, लेकिन इसकी खास क्षमता रडार की पकड़ में आए बिना जमीन के करीब उड़ान भरने की है, जिसमें जगुआर 650 किमी तक उड़ सकता है।
भारतीय वायुसेना में क्या रहा है जगुआर का इतिहास?
भारत को पहली बार जगुआर लड़ाकू विमान का प्रस्ताव 1968 में इसका उत्पादन शुरू होने के साथ ही मिला था। हालांकि, तब भारत ने झिझकते हुए इसे खरीदने से मना कर दिया था। बताया जाता है कि तब भारत में इसकी सफलता को लेकर कई संशय थे। खुद फ्रांस और ब्रिटेन ने इसे खरीदने को लेकर कोई सीधा बयान नहीं दिया था।
हालांकि, 1978 में भारत जगुआर विमान खरीदने वाला सबसे बड़ा आयातक बन गया। तब भारत की तरफ से जगुआर के लिए 1 अरब डॉलर का ऑर्डर दिया गया था। भारत ने इसे दसौ के मिराज एफ1 और साब के विगेन के ऊपर तरजीह दी थी। भारत ने 40 जगुआर विमानों के जरिए वायुसेना को मजबूत करने की कोशिशें शुरू कर दीं।
2019 में जब भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक कीं, तब जगुआर को एफ-16 लड़ाकू विमानों को चकमा देने और टारगेट क्षेत्र से दूर करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
भारत को पहली बार जगुआर लड़ाकू विमान का प्रस्ताव 1968 में इसका उत्पादन शुरू होने के साथ ही मिला था। हालांकि, तब भारत ने झिझकते हुए इसे खरीदने से मना कर दिया था। बताया जाता है कि तब भारत में इसकी सफलता को लेकर कई संशय थे। खुद फ्रांस और ब्रिटेन ने इसे खरीदने को लेकर कोई सीधा बयान नहीं दिया था।
हालांकि, 1978 में भारत जगुआर विमान खरीदने वाला सबसे बड़ा आयातक बन गया। तब भारत की तरफ से जगुआर के लिए 1 अरब डॉलर का ऑर्डर दिया गया था। भारत ने इसे दसौ के मिराज एफ1 और साब के विगेन के ऊपर तरजीह दी थी। भारत ने 40 जगुआर विमानों के जरिए वायुसेना को मजबूत करने की कोशिशें शुरू कर दीं।
2019 में जब भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक कीं, तब जगुआर को एफ-16 लड़ाकू विमानों को चकमा देने और टारगेट क्षेत्र से दूर करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
भारत में कहां-कहां तैनात हैं जगुआर लड़ाकू विमान?
- भारतीय वायुसेना इस वक्त छह स्क्वाड्रन में करीब 120 जगुआर लड़ाकू विमान ऑपरेट करती है। इसकी 5वीं स्क्वाड्रन को टस्कर्स (हाथी) कहा जाता है। वहीं, 14वीं स्क्वाड्रन को बुल्स (बैल) कहा जाता है। यह दोनों स्क्वाड्रन अंबाला में तैनात हैं।
- इसके अलावा जगुआर की नंबर-6 स्क्वाड्रन को 'ड्रैगन्स' बुलाया जाता है। यहां से लड़ाकू विमान के नौसैन्य वैरियंट संचालित होते हैं और इनका बेस जामनगर है।
- स्क्वाड्रन नंबर 224, जिसे वॉरलॉर्ड भी कहा जाता है, भी जामनगर से संचालित होती है। गोरखपुर नंबर-16 स्क्वाड्रन, जिसे ब्लैक कोबरा कहा जाता है, का बेस है। इसके अलावा इसकी 27वीं स्क्वाड्रन को फ्लेमिंग ऐरोज (जलते हुए तीर) नाम दिया गया है।
हरियाणा में मार्च में हादसे का शिकार हुआ था जगुआर
इसी साल मार्च में हरियाणा के पंचकूला स्थित मोरनी के बालदवाला गांव के पास को भारतीय वायुसेना का लड़ाकू विमान जगुआर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। भारतीय वायुसेना के अधिकारी ने बताया कि विमान ने प्रशिक्षण उड़ान के लिए अंबाला एयरबेस से उड़ान भरी थी। पायलट पैराशूट से उतरकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा था। तब इस घटना के पीछे तकनीकी खराबी को वजह बताया गया था।
इसी साल मार्च में हरियाणा के पंचकूला स्थित मोरनी के बालदवाला गांव के पास को भारतीय वायुसेना का लड़ाकू विमान जगुआर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। भारतीय वायुसेना के अधिकारी ने बताया कि विमान ने प्रशिक्षण उड़ान के लिए अंबाला एयरबेस से उड़ान भरी थी। पायलट पैराशूट से उतरकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहा था। तब इस घटना के पीछे तकनीकी खराबी को वजह बताया गया था।