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RSS: संविधान में सबको साथ लेकर चलने की भावना निहितः मोहन भागवत
डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला
Published by: अमित शर्मा
Updated Sun, 21 Dec 2025 01:26 PM IST
सार
मोहन भागवत ने कहा कि संविधान एक लिखित साक्ष्य है। पूरे देश-समाज को इसी के अनुरूप चलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के काल में हम शब्द की कोई मान्यता नहीं थी, क्योंकि वह इस देश को राष्ट्र मानते ही नहीं थे।
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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
- फोटो : ANI
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विस्तार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि देश के संविधान में सबको साथ लेकर चलने की भावना निहित है। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना का पहला शब्द 'हम' यही संदेश देता है कि पूरा भारत वर्ष एक इकाई की तरह है और सभी आपस में मिलकर एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि यह भावना देश के स्वतंत्र होने के बाद आई, बल्कि भारत भूमि पर धर्म की शुरुआत से ही सबको साथ लेकर चलने की भावना निहित रही है। ऐसा धर्म के कारण होता था जिसमें सबको साथ लेकर चलने और सबके कल्याण की भावना अंतर्निहित है।
'अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना' द्वारा ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति और संविधान’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। इसमें अपना उद्बोधन देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संविधान एक लिखित साक्ष्य है। पूरे देश-समाज को इसी के अनुरूप चलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के काल में हम शब्द की कोई मान्यता नहीं थी, क्योंकि वह इस देश को राष्ट्र मानते ही नहीं थे। संविधान के पृष्ठों पर अंकित चित्र यह बताते हैं कि हमारे संविधान में भारत के मूल धर्म का समावेश है। उन्होंने कहा कि यह इसलिए हुआ क्योंकि भारत का संविधान बनाने वाले लोग भारत के संस्कारों और संस्कृति से सराबोर लोग थे।
भागवत ने कहा कि हमें अपनी परम्परा के सही तथ्य को निकालकर सबके सामने प्रस्तुत करना होगा। हमारी परम्परा और संस्कृति से हमारा किस प्रकार जुड़ाव है, इस तथ्य से संविधान के साथ जोड़कर समझदारी के साथ समाज के सामने प्रस्तुत करना पड़ेगा, क्योंकि समझदारी से ही देश चलता है। उन्होंने कहा कि परस्पर भावना के साथ उसका संबल लेते हुए अपना समाज ठीक चलेगा और देश को बड़ा बनाएगा।
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'अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना' द्वारा ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति और संविधान’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। इसमें अपना उद्बोधन देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संविधान एक लिखित साक्ष्य है। पूरे देश-समाज को इसी के अनुरूप चलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के काल में हम शब्द की कोई मान्यता नहीं थी, क्योंकि वह इस देश को राष्ट्र मानते ही नहीं थे। संविधान के पृष्ठों पर अंकित चित्र यह बताते हैं कि हमारे संविधान में भारत के मूल धर्म का समावेश है। उन्होंने कहा कि यह इसलिए हुआ क्योंकि भारत का संविधान बनाने वाले लोग भारत के संस्कारों और संस्कृति से सराबोर लोग थे।
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भागवत ने कहा कि हमें अपनी परम्परा के सही तथ्य को निकालकर सबके सामने प्रस्तुत करना होगा। हमारी परम्परा और संस्कृति से हमारा किस प्रकार जुड़ाव है, इस तथ्य से संविधान के साथ जोड़कर समझदारी के साथ समाज के सामने प्रस्तुत करना पड़ेगा, क्योंकि समझदारी से ही देश चलता है। उन्होंने कहा कि परस्पर भावना के साथ उसका संबल लेते हुए अपना समाज ठीक चलेगा और देश को बड़ा बनाएगा।
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