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Tribunals: 'न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन..', SC में ट्रिब्यूनल सुधार कानून के कई प्रावधान खारिज
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Wed, 19 Nov 2025 01:18 PM IST
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल)
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2021 के अधिकरण सुधार कानून के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया। ये प्रावधन विभिन्न अधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल से जुड़े थे। कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने इन्हें मामूली बदलाव के साथ फिर से लागू कर दिया था।
चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्र की बेंच ने कहा कि ये प्रावधान शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और इन्हें वापस नहीं लेना चाहिए था। बेंच ने कहा, लंबित मामलों को निपटाना केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि अन्य सरकारी शाखाओं को भी इसमें शामिल होना चाहिए।
ये भी पढ़ें: केंद्र सरकार ने मदुरै और कोयंबटूर के लिए मेट्रो प्रस्ताव लौटाया, स्टालिन बोले- ये बदले की कार्रवाई
कोर्ट ने कहा कि संसद ने पहले खारिज किए गए प्रावधानओं को दोबारा लागू करके 'बाध्यकारी न्यायिक फैसलों विधायिका द्वारा प्रभावित करने' का प्रयास किया। सीजेआई ने अपना फैसले पढ़ते हुए कहा, हमने अध्यादेश और 2021 के कानून के प्रावधानों की तुलना की और यह दिखाता है कि जो प्रावधान पहले रद्द किए गए थे, उन्हें मामूली बदलाव के साथ फिर से लागू किया गया है।
उन्होंने कहा, इसलिए हमने फैसला किया है कि 2021 के कानून के प्रावधान बनाए नहीं रखे जा सकते, क्योकि यह शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। यह विधायिका की ओर से न्यायिक फैसलों को प्रभावित करने के समान है। इसलिए इसे असांविधानिक घोषित किया गया।
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कोर्ट ने कहा कि संसद ने पहले खारिज किए गए प्रावधानओं को दोबारा लागू करके 'बाध्यकारी न्यायिक फैसलों विधायिका द्वारा प्रभावित करने' का प्रयास किया। सीजेआई ने अपना फैसले पढ़ते हुए कहा, हमने अध्यादेश और 2021 के कानून के प्रावधानों की तुलना की और यह दिखाता है कि जो प्रावधान पहले रद्द किए गए थे, उन्हें मामूली बदलाव के साथ फिर से लागू किया गया है।
उन्होंने कहा, इसलिए हमने फैसला किया है कि 2021 के कानून के प्रावधान बनाए नहीं रखे जा सकते, क्योकि यह शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। यह विधायिका की ओर से न्यायिक फैसलों को प्रभावित करने के समान है। इसलिए इसे असांविधानिक घोषित किया गया।