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Supreme Court: 'अंग प्रत्यारोपण पर राष्ट्रीय नीति और समान नियम बनाएं', केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Wed, 19 Nov 2025 02:03 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश अंग प्रत्यारोपण के पूरे सिस्टम को देशभर में एकसमान, न्यायपूर्ण और भरोसेमंद बनाने की दिशा में बड़ा और ऐतिहासिक माना जा रहा है। इस फैसले से ये उम्मीद जगती है कि भविष्य में अंग दान का दायरा सिर्फ अमीर निजी अस्पतालों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि हर वर्ग के लोगों के लिए होगा।
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
देश में अंग दान और प्रत्यारोपण की प्रक्रिया अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को कई अहम निर्देश देते हुए कहा कि पूरे देश में एक जैसी नीति और एक जैसे नियम बनाए जाएं, ताकि अंग दान की प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और तेज हो सके। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने यह आदेश भारतीय सोसायटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
यह भी पढ़ें - 'लोकतंत्र के लिए खतरा': राहुल गांधी और कांग्रेस पर बरसे देश के पूर्व जज-नौकरशाह, EC की छवि खराब करने का आरोप
केंद्र को राज्यों से बात कर एकरूपता लाने का निर्देश
कोर्ट ने कहा कि, आंध्र प्रदेश को 2011 के मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में हुए संशोधनों को अपनाने के लिए केंद्र उन्हें राजी करे। वहीं कर्नाटक, तमिलनाडु और मणिपुर जैसे राज्यों को तुरंत मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण के नियम, 2014 लागू करने को कहा जाए, क्योंकि अभी वे अपने अलग-अलग नियमों पर चल रहे हैं। कोर्ट का कहना था कि अलग-अलग राज्यों के अलग मानदंड मरीजों और दाताओं, दोनों के लिए असमानता पैदा करते हैं।
सभी के लिए समान नियम, भेदभाव पर रोक
पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह एक राष्ट्रीय नीति तैयार करे, जिसमें, अंग आवंटन के लिए एक समान मॉडल नियम, लिंग और जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने के उपाय और पूरे देश के लिए एक-सी दाता मानदंड शामिल हो। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा था कि अभी देश में ऐसा कोई एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं है, जहां दाता और मरीजों की जानकारी एक जगह उपलब्ध हो। इससे प्रक्रिया धीमी पड़ती है और अमीर-गरीब के बीच खाई और चौड़ी होती जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि आज भी 90% प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में होते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों की भागीदारी बहुत कम है।
कुछ राज्यों में एसओटीओ का अभाव- कोर्ट ने जताई चिंता
मणिपुर, नागालैंड, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अभी तक राज्य अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीओ) ही नहीं है। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह राज्यों से बात कर इन संस्थाओं की स्थापना करे, ताकि हर राज्य में अंग दान की प्रणाली मजबूत हो सके।
जीवित दाताओं की सुरक्षा - शोषण रोकने के निर्देश
अदालत ने विशेष चिंता जताई कि जीवित दाताओं का कई जगह शोषण होता है। इसलिए उनके कल्याण के लिए विशेष दिशा-निर्देश, अंग दान के बाद उनकी देखभाल और किसी भी तरह के व्यावसायीकरण या शोषण को रोकने का स्पष्ट तंत्र बनाने को कहा गया।
मृत्यु प्रमाण पत्र में 'ब्रेन डेथ' का स्पष्ट उल्लेख
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि, जन्म और मृत्यु पंजीकरण फॉर्म (फॉर्म 4 और 4ए) में यह कॉलम जोड़ा जाए कि क्या व्यक्ति की मृत्यु ब्रेन डेथ से हुई। और क्या परिवार को अंग दान का विकल्प बताया गया था। इससे ब्रेन-डेड मरीजों के अंगों को सम्मानजनक और कानूनी तरीके से दान में बदला जा सकेगा।
यह भी पढ़ें - Maharashtra: 'भाजपा को अब शिंदे की जरूरत नहीं' महायुति में सियासी तनाव की खबरों पर शरद पवार की राकांपा का तंज
अप्रैल में कोर्ट ने तलब की थी देशभर की रिपोर्ट
इससे पहले, 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा था कि सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य सचिवों के साथ बैठक कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे, जिसमें, मृत बनाम जीवित दान अनुपात, पुरुष-महिला में दान और प्राप्ति के अंतर, जागरूकता अभियान, आर्थिक सहायता, अस्पतालों की क्षमता और अंग आवंटन की प्रक्रिया जैसी जानकारी शामिल हो। यह रिपोर्ट 18 जुलाई 2025 तक कोर्ट में देनी है।
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केंद्र को राज्यों से बात कर एकरूपता लाने का निर्देश
कोर्ट ने कहा कि, आंध्र प्रदेश को 2011 के मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में हुए संशोधनों को अपनाने के लिए केंद्र उन्हें राजी करे। वहीं कर्नाटक, तमिलनाडु और मणिपुर जैसे राज्यों को तुरंत मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण के नियम, 2014 लागू करने को कहा जाए, क्योंकि अभी वे अपने अलग-अलग नियमों पर चल रहे हैं। कोर्ट का कहना था कि अलग-अलग राज्यों के अलग मानदंड मरीजों और दाताओं, दोनों के लिए असमानता पैदा करते हैं।
सभी के लिए समान नियम, भेदभाव पर रोक
पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह एक राष्ट्रीय नीति तैयार करे, जिसमें, अंग आवंटन के लिए एक समान मॉडल नियम, लिंग और जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने के उपाय और पूरे देश के लिए एक-सी दाता मानदंड शामिल हो। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा था कि अभी देश में ऐसा कोई एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं है, जहां दाता और मरीजों की जानकारी एक जगह उपलब्ध हो। इससे प्रक्रिया धीमी पड़ती है और अमीर-गरीब के बीच खाई और चौड़ी होती जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि आज भी 90% प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में होते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों की भागीदारी बहुत कम है।
कुछ राज्यों में एसओटीओ का अभाव- कोर्ट ने जताई चिंता
मणिपुर, नागालैंड, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अभी तक राज्य अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीओ) ही नहीं है। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह राज्यों से बात कर इन संस्थाओं की स्थापना करे, ताकि हर राज्य में अंग दान की प्रणाली मजबूत हो सके।
जीवित दाताओं की सुरक्षा - शोषण रोकने के निर्देश
अदालत ने विशेष चिंता जताई कि जीवित दाताओं का कई जगह शोषण होता है। इसलिए उनके कल्याण के लिए विशेष दिशा-निर्देश, अंग दान के बाद उनकी देखभाल और किसी भी तरह के व्यावसायीकरण या शोषण को रोकने का स्पष्ट तंत्र बनाने को कहा गया।
मृत्यु प्रमाण पत्र में 'ब्रेन डेथ' का स्पष्ट उल्लेख
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि, जन्म और मृत्यु पंजीकरण फॉर्म (फॉर्म 4 और 4ए) में यह कॉलम जोड़ा जाए कि क्या व्यक्ति की मृत्यु ब्रेन डेथ से हुई। और क्या परिवार को अंग दान का विकल्प बताया गया था। इससे ब्रेन-डेड मरीजों के अंगों को सम्मानजनक और कानूनी तरीके से दान में बदला जा सकेगा।
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अप्रैल में कोर्ट ने तलब की थी देशभर की रिपोर्ट
इससे पहले, 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा था कि सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य सचिवों के साथ बैठक कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे, जिसमें, मृत बनाम जीवित दान अनुपात, पुरुष-महिला में दान और प्राप्ति के अंतर, जागरूकता अभियान, आर्थिक सहायता, अस्पतालों की क्षमता और अंग आवंटन की प्रक्रिया जैसी जानकारी शामिल हो। यह रिपोर्ट 18 जुलाई 2025 तक कोर्ट में देनी है।
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