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Shashi Tharoor: शशि थरूर ने अब आपातकाल पर कांग्रेस को घेरा, कहा- अनुशासन और व्यवस्था के नाम पर की गई क्रूरता

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, तिरुवनंतपुरम Published by: बशु जैन Updated Thu, 10 Jul 2025 10:57 AM IST
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सार

पिछले कई दिनों से कांग्रेस सांसद शशि थरूर अपनी ही पार्टी पर हमलावर हैं। अब उन्होंने आपातकाल को लेकर कांग्रेस को घेरा है। थरूर ने कहा कि आपातकाल के नाम पर आजादी छीनी गई। 

Shashi Tharoor cornered Congress, said- Emergency is a dark chapter, it is important to understand its lesson
शशि थरूर, सांसद, कांग्रेस - फोटो : ANI
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कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक बार फिर अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े हुए हैं। इस बार उन्होंने कांग्रेस को आपातकाल को लेकर घेरा है। उन्होंने कहा कि आपातकाल में अनुशासन और व्यवस्था के नाम पर क्रूरता की गई। आपातकाल को भारत के इतिहास का महज काला अध्याय नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसके सबक को पूरी तरह से समझना जरूरी है। उन्होंने आपातकाल में इंदिरा गांधी और संजय गांधी के कामों को लेकर सवाल उठाए।
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एक मलयालम अखबार में प्रकाशित लेख में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 25 जून 1975 और 21 मार्च 1977 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के काले युग को याद किया। उन्होंने कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास क्रूरता में बदल दिए गए। जिन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता।
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कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य शशि थरूर ने कहा कि इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया। यह आपातकाल का गलत उदाहरण बना। ग्रामीण इलाकों में मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और जबरदस्ती की गई। नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त कर दिया गया और उन्हें साफ कर दिया गया। हजारों लोग बेघर हो गए। उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक बहुमूल्य विरासत है जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए। इसे दुनिया भर के लोगों के लिए एक स्थायी अनुस्मारक के रूप में काम करने दें। आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। उन्होंने कहा कि हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी आपातकाल के सबक अभी भी चिंताजनक रूप से प्रासंगिक हैं।

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थरूर ने कहा कि सत्ता को केंद्रीकृत करने, असहमति को दबाने और सांविधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का प्रलोभन विभिन्न रूपों में फिर से प्रकट हो सकता है। अक्सर ऐसी प्रवृत्तियों को राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जा सकता है। इस लिहाज से आपातकाल एक कड़ी चेतावनी है। लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है। 

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