BrahMos Missiles: ब्रह्मोस मिसाइलों का एक साथ लॉन्च, दुश्मन के इलाके में गहरे लक्ष्य भेदने की परखी गई क्षमता
ब्रह्मोस को दो नदियों के नाम से मिलाकर बनाया गया है। भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर इस मिसाइल का नाम रखा गया है। इस मिसाइल को बनाने में भारत और रूस दोनों का योगदान है।
विस्तार
भारतीय सेना के पश्चिमी कमान ने बताया कि कमांडर-इन-चीफ, अंडमान और निकोबार कमांड और जीओसी खड़गा कोर ने ब्रह्मोस मिसाइलों का सटीक तरीके से एक साथ लॉन्च देखा। इस दौरान दुश्मन के इलाके में गहरे लक्ष्य को भेदने की उनकी क्षमताओं को अच्छे से परखा गया।
कैसे रखा गया इस मिसाइल का नाम?
ब्रह्मोस को दो नदियों के नाम से मिलाकर बनाया गया है। भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर इस मिसाइल का नाम रखा गया है। इस मिसाइल को बनाने में भारत और रूस दोनों का योगदान है।
ब्रह्मोस मिसाइल : एक संक्षिप्त परिचय
- भारत और रूस ने संयुक्त रूप से मिसाइल को विकसित किया है, रूस का हिस्सा 49.5 फीसदी और भारत का हिस्सा 50.05 फीसदी।
- 450 किमी तक की रेंज और 200 किलो का पारंपरिक वॉरहेड ले जाने की क्षमता रखती है मिसाइल।
- नौ मीटर लंबी और 670 मिमी व्यास वाली मिसाइल का कुल वजन लगभग तीन टन है।
- 14 किमी तक की ऊंचाई तक जा सकती है और 20 किमी की दूरी पर मार्ग बदल लेती है।
- मिसाइल पनडुब्बी, जहाज, एयरक्राफ्ट या जमीन से भी लॉन्च की जा सकती है।
- ब्रह्मोस की रफ्तार अमेरिकी सेना की मिसाइल टॉमहॉक से चार गुना तेज है।
- जहाज और जमीन से लॉन्च होने पर यह मिसाइल 200 किलो युद्धसामग्री ले जा सकती है।
- एयरक्राफ्ट से लॉन्च होने पर 300 किलो की युद्धसामग्री ले जा सकती है।
- मेनुवरेबल तकनीक से लैस होने से, लक्ष्य रास्ता जरूर बदल लें लेकिन उसे निशाना जरूर बनाती है।
- ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में कहा जाता है कि दागो और भूल जाओ।
ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल देश की आधुनिक और दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल मानी जाती है। अगर कोई दुश्मन पहाड़ में छिपा बैठा है तो भी ये मिसाइल उसे ढूंढ निकालकर मारने की क्षमता रखती है। इसे तीनों सेनाओं में शामिल किया जा चुका है।
सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस का इतिहास
इसे भारत के रक्षा शोध और विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूस के एनपीओएम ने संयुक्त रूप से मिलकर बनाया है।
12 जून, 2001 को इस मिसाइल का सफल लॉन्च किया गया था।
आईएनएस राजपूत पहला जहाज था, जिस पर पहली बार मिसाइल को 2005 में शामिल की गई थी।
सुखोई-30 एमकेआई प्लेटफॉर्म पर ब्रह्मोस एयर लॉन्च का सफल परीक्षण किया गया।