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SC: बानू मुश्ताक के दशहरा उद्घाटन वाले मामले में अब होगी 'सुप्रीम' सुनवाई, हाईकोर्ट ने खारिज की थी याजिका
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Thu, 18 Sep 2025 11:53 AM IST
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सार
कर्नाटक सरकार द्वारा बुकर विजेता बानू मुश्ताक को मैसूर दशहरे का उद्घाटन करने का न्योता देने पर विवाद गहराया है। भाजपा और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मुद्दा बताया। कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिकाएं खारिज की थीं, लेकिन अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। साथ ही नीचे सुप्रीम कोर्ट में आज हुईं कई और सुनवाई के बारे में भी जानें।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
कर्नाटक सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक को इस साल मैसूर दशहरा का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर विवाद गहराता जा रहा है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर लिया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि गैर-हिंदू को परंपरागत पूजा-अर्चना का अधिकार देना अनुचित है। वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले को खारिज कर दिया था।
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस याचिका पर विचार करने के लिए हामी भर दी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि दशहरा 22 सितंबर से शुरू हो रहा है, इसलिए मामले की तुरंत सुनवाई जरूरी है। उनका तर्क है कि एक गैर-हिंदू द्वारा अग्रेश्वरी पूजा करना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है।
हाईकोर्ट ने किया था याचिकाओं को खारिज
15 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले पर दायर चार जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इनमें से एक याचिका भाजपा के पूर्व सांसद प्रताप सिंघा ने दायर की थी। अदालत ने साफ कहा था कि किसी अलग धर्म के व्यक्ति द्वारा राज्य सरकार की ओर से आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन करना संविधान या किसी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं है।
तीन सितंबर को मैसूरु जिला प्रशासन ने औपचारिक रूप से मुश्ताक को उद्घाटन का आमंत्रण दिया था। इसके बाद भाजपा और अन्य विरोधी समूहों ने कड़ा एतराज जताया। उनका कहना है कि मुश्ताक ने पहले भी ऐसे बयान दिए हैं जिन्हें “हिंदू विरोधी” और “कन्नड़ विरोधी” माना गया है।
अदालत की दलील और अगला कदम
इसी पृष्ठभूमि में इस विवाद ने तूल पकड़ा। मैसूरु दशहरा का उद्घाटन पारंपरिक रूप से चामुंडेश्वरी देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ होता है। देवी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर और वेद मंत्रों के उच्चारण के बीच राज्यपाल या आमंत्रित विशिष्ट अतिथि उद्घाटन करते हैं। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और इसी वजह से एक गैर-हिंदू को आमंत्रित किए जाने पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उद्घाटन से किसी के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता। लेकिन याचिकाकर्ता इस फैसले से असंतुष्ट रहे और अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शीर्ष अदालत इस मामले पर जल्द सुनवाई करेगी ताकि दशहरा शुरू होने से पहले स्थिति साफ हो सके।
ये भी पढ़ें- 'प्रक्रिया हाईजैक कर वोट काटे जा रहे, निशाने पर दलित और OBC', राहुल ने ज्ञानेश कुमार को भी घेरा
सुप्रीम कोर्ट ने वकील की डिग्री की जांच के लिए सीबीआई को सौंपी जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की शैक्षणिक डिग्री की प्रामाणिकता की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को सौंप दी है। मामला तब सामने आया जब बिहार की मगध यूनिवर्सिटी ने दावा किया कि संबंधित वकील की मार्कशीट और डिग्री नकली है और विश्वविद्यालय से जारी नहीं की गई थी।
यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासन समिति के एक आदेश से जुड़ा है। अनुशासन समिति के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने विश्वविद्यालय की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया। रिपोर्ट में कहा गया था कि वकील द्वारा प्रस्तुत बी.कॉम डिग्री और अंकपत्र विश्वविद्यालय से जारी नहीं हुए हैं और फर्जी हैं।
अदालत में पेश किए गए दस्तावेज
शीर्ष अदालत ने वकील को निर्देश दिया था कि वह अपनी डिग्रियों की फोटोकॉपी जमा करे। इसके बाद वकील ने बी.कॉम (ऑनर्स) परीक्षा 1991 की डिग्री की प्रति अदालत में दाखिल की। उसने दावा किया कि विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड फटा हुआ है, इसलिए डिग्री की पुष्टि उपलब्ध दस्तावेजों से नहीं हो पा रही है।
पीठ ने कहा कि हम उचित समझते हैं कि इस पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए ताकि यह तय किया जा सके कि वकील द्वारा प्रस्तुत बी.कॉम की डिग्री असली है या नकली। अदालत ने सीबीआई, दिल्ली को जांच अधिकारी नियुक्त करने और 3 नवंबर तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
अब सीबीआई यह जांच करेगी कि 1991 में मगध यूनिवर्सिटी से जारी बताई गई डिग्री वाकई असली है या जालसाजी के तहत तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कानूनी कार्रवाई तय होगी।

गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस याचिका पर विचार करने के लिए हामी भर दी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि दशहरा 22 सितंबर से शुरू हो रहा है, इसलिए मामले की तुरंत सुनवाई जरूरी है। उनका तर्क है कि एक गैर-हिंदू द्वारा अग्रेश्वरी पूजा करना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है।
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हाईकोर्ट ने किया था याचिकाओं को खारिज
15 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले पर दायर चार जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इनमें से एक याचिका भाजपा के पूर्व सांसद प्रताप सिंघा ने दायर की थी। अदालत ने साफ कहा था कि किसी अलग धर्म के व्यक्ति द्वारा राज्य सरकार की ओर से आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन करना संविधान या किसी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं है।
तीन सितंबर को मैसूरु जिला प्रशासन ने औपचारिक रूप से मुश्ताक को उद्घाटन का आमंत्रण दिया था। इसके बाद भाजपा और अन्य विरोधी समूहों ने कड़ा एतराज जताया। उनका कहना है कि मुश्ताक ने पहले भी ऐसे बयान दिए हैं जिन्हें “हिंदू विरोधी” और “कन्नड़ विरोधी” माना गया है।
अदालत की दलील और अगला कदम
इसी पृष्ठभूमि में इस विवाद ने तूल पकड़ा। मैसूरु दशहरा का उद्घाटन पारंपरिक रूप से चामुंडेश्वरी देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ होता है। देवी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर और वेद मंत्रों के उच्चारण के बीच राज्यपाल या आमंत्रित विशिष्ट अतिथि उद्घाटन करते हैं। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और इसी वजह से एक गैर-हिंदू को आमंत्रित किए जाने पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उद्घाटन से किसी के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता। लेकिन याचिकाकर्ता इस फैसले से असंतुष्ट रहे और अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शीर्ष अदालत इस मामले पर जल्द सुनवाई करेगी ताकि दशहरा शुरू होने से पहले स्थिति साफ हो सके।
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सुप्रीम कोर्ट ने वकील की डिग्री की जांच के लिए सीबीआई को सौंपी जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की शैक्षणिक डिग्री की प्रामाणिकता की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को सौंप दी है। मामला तब सामने आया जब बिहार की मगध यूनिवर्सिटी ने दावा किया कि संबंधित वकील की मार्कशीट और डिग्री नकली है और विश्वविद्यालय से जारी नहीं की गई थी।
यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासन समिति के एक आदेश से जुड़ा है। अनुशासन समिति के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने विश्वविद्यालय की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया। रिपोर्ट में कहा गया था कि वकील द्वारा प्रस्तुत बी.कॉम डिग्री और अंकपत्र विश्वविद्यालय से जारी नहीं हुए हैं और फर्जी हैं।
अदालत में पेश किए गए दस्तावेज
शीर्ष अदालत ने वकील को निर्देश दिया था कि वह अपनी डिग्रियों की फोटोकॉपी जमा करे। इसके बाद वकील ने बी.कॉम (ऑनर्स) परीक्षा 1991 की डिग्री की प्रति अदालत में दाखिल की। उसने दावा किया कि विश्वविद्यालय का रिकॉर्ड फटा हुआ है, इसलिए डिग्री की पुष्टि उपलब्ध दस्तावेजों से नहीं हो पा रही है।
पीठ ने कहा कि हम उचित समझते हैं कि इस पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए ताकि यह तय किया जा सके कि वकील द्वारा प्रस्तुत बी.कॉम की डिग्री असली है या नकली। अदालत ने सीबीआई, दिल्ली को जांच अधिकारी नियुक्त करने और 3 नवंबर तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
अब सीबीआई यह जांच करेगी कि 1991 में मगध यूनिवर्सिटी से जारी बताई गई डिग्री वाकई असली है या जालसाजी के तहत तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कानूनी कार्रवाई तय होगी।
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