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SC: ‘डीएनए जांच में पिता साबित नहीं तो क्या बच्चे को पालने का दायित्व नहीं’, सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: जलज मिश्रा Updated Sun, 10 Dec 2023 05:47 AM IST
सार

हाईकोर्ट ने कहा था, रिकॉर्ड में मौजूद डीएनए रिपोर्ट के अनुसार, पुरुष को बच्चे के भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है भले ही बच्चे का जन्म याचिकाकर्ता (महिला) और उस पुरुष के बीच विवाह के दौरान हुआ हो।

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Supreme Court Will Hear case regarding DNA report of biological Father
सुप्रीम कोर्ट। - फोटो : ANI
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सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर विचार करने का फैसला किया है कि क्या कोई व्यक्ति डीएनए रिपोर्ट में जैविक पिता घोषित नहीं होने के बाद विवाह के दौरान पैदा हुए बच्चे को भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा? शीर्ष अदालत के समक्ष एक महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट के 17 अक्तूबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने उसके बच्चे को भरण-पोषण से वंचित कर दिया था।

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हाईकोर्ट ने कहा था, रिकॉर्ड में मौजूद डीएनए रिपोर्ट के अनुसार, पुरुष को बच्चे के भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है भले ही बच्चे का जन्म याचिकाकर्ता (महिला) और उस पुरुष के बीच विवाह के दौरान हुआ हो। इस संबंध में कानून यह तय करता है कि जैविक पिता अपने बच्चे के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी है। महिला की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर कार्रवाई करते हुए जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने पिछले दिनों दिए आदेश में उस व्यक्ति को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह के भीतर उसका जवाब मांगा है।

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सुप्रीम कोर्ट ने माना था डीएनए जांच पर्याप्त नहीं
महिला ने अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया (2023) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। सुप्रीम कोर्ट ने तब माना था कि यदि कोई पुरुष और महिला शादी से पहले गर्भधारण के समय एक साथ रहते थे, लेकिन डीएनए परीक्षण से पता चला कि बच्चा पति से पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में जब तक कि पुरुष की महिला तक पहुंच होने का सबूत न हो, बच्चे के भरण-पोषण से मना करने के लिए डीएनए परीक्षण निर्णायक नहीं होगा।

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