Army: भारत-चीन युद्ध 1962 के नायक को तवांग ने किया नमन, बुमला में गूंजा ‘शहीद जोगिंदर सिंह अमर रहें’ का नारा
भारत-चीन युद्ध के अमर योद्धा और परमवीर चक्र विजेता हवलदार जोगिंदर सिंह की वीरता को सलाम करते हुए तवांग के बुमला दर्रे पर 'शहीद दिवस' मनाया गया। यह आयोजन ऐसे समय पर हुआ है, जब तवांग, तवांग इंटरनेशनल मैराथन 2025 के उत्साह में भी डूबा हुआ है। देश-विदेश से आए हजारों धावक ‘रन अबव द क्लाउड्स’ यानी बादलों से ऊपर दौड़ने के लिए तैयार हैं।
विस्तार
पूर्वोत्तर की सीमाओं पर आज हवा में श्रद्धा और गर्व घुला हुआ था। 1962 के भारत-चीन युद्ध के अमर योद्धा और परमवीर चक्र विजेता हवलदार जोगिंदर सिंह की वीरता को सलाम करते हुए तवांग के बुमला दर्रे पर 'शहीद दिवस' मनाया गया।
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श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए खास तौर पर एक बाइक हैली निकाली गई। 10,000 फीट से भी अधिक ऊंचाई पर जब राष्ट्रगान की ध्वनि गूंजी, तो हर दिल में उसी
जज्बे का संचार हुआ, जो कभी जोगिंदर सिंह ने रणभूमि में दिखाया था।
शौर्य और समर्पण का प्रतीक
23 अक्तूबर 1962 ठंडी हवाओं के बीच बुमला दर्रे की बर्फीली ढलानों पर सिख रेजिमेंट के एक छोटे से दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे हवलदार जोगिंदर सिंह। दुश्मन संख्या में कई गुना अधिक था, फिर भी उन्होंने मोर्चा संभाले रखा। जांघ में गोली लगने के बावजूद उन्होंने पीछे हटने से इनकार किया। जब गोलियां खत्म हो गईं, तो उन्होंने अपने सैनिकों के साथ बेयॉनेट चार्ज करते हुए चीनी सेना का मुकाबला किया। अंत तक वीरता से लड़े और शहादत को गले लगाया।
उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो देश का सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता पुरस्कार है। बाद में चीनी सेना ने भी उनके साहस को सम्मान देते हुए उनके अवशेष पूरे सैन्य सम्मान के साथ भारत को लौटाए।
बुमला तक पहुंची श्रद्धा की यात्रा
आज उसी बर्फीली ऊंचाई पर उनके नाम पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में स्थानीय नागरिकों, सैनिकों और युवाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। इस अवसर पर तवांग
के विधायक नमग्य त्सेरिंग के नेतृत्व में एक विशेष बाइक रैली निकाली गई, जो तवांग से बुमला तक लगभग 15,200 फीट की ऊंचाई तक पहुंची। हर मोड़ पर तिरंगा लहराता रहा, और हर चेहरे पर एक ही संदेश लिखा था, “देशभक्ति कभी ठंडी नहीं पड़ती।
खेल और शौर्य का संगम
यह आयोजन ऐसे समय पर हुआ है, जब तवांग, तवांग इंटरनेशनल मैराथन 2025 के उत्साह में भी डूबा हुआ है। देश-विदेश से आए हजारों धावक ‘रन अबव द
क्लाउड्स’ यानी बादलों से ऊपर दौड़ने के लिए तैयार हैं। एक ओर जहां बुमला में शौर्य की गाथा को नमन किया गया, वहीं दूसरी ओर खेल के मैदानों में तवांग अपनी नई पहचान बना रहा है।
सीमा पर श्रद्धा, दिलों में प्रेरणा
शहीद दिवस और अंतरराष्ट्रीय मैराथन का यह संगम तवांग के उस संदेश को और मजबूत करता है कि जहां वीरों की आत्मा बसती है, वहां हर सांस देशभक्ति से
महकती है। आज बुमला की ठंडी हवाओं में सिर्फ ठंडक नहीं, बल्कि उन सैनिकों की गर्मी है, जिनके साहस ने आज़ाद भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखा।
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