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Politics: 'आप' से समझौता टूटने पर सामने आई सच्चाई; दलितों-मुसलमानों के दम पर वापसी करने की तैयारी में कांग्रेस
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सार
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Congress AAP Alliance
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Amar Ujala
विस्तार
लोकसभा चुनाव में जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच साथ मिलकर चुनाव लड़ने का समझौता हुआ था, तभी भाजपा ने इसे 'मजबूरी' का समझौता बताया था। भाजपा का आरोप था कि केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ आ रहे हैं, जबकि उनके बीच में किसी भी तरह का कोई सामंजस्य नहीं है। पार्टी ने यह भी संभावना जताई थी कि चुनाव के बाद यह गठबंधन टूट जाएगा और दोनों दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाएंगे।
भाजपा का आरोप अब बिल्कुल सही साबित हुआ है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन टूट चुका है और दोनों दलों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अलग-अलग उतरने की घोषणा कर दी है। कांग्रेस के तीनों लोकसभा प्रत्याशियों उदित राज, जेपी अग्रवाल और कन्हैया कुमार ने कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के सामने स्वीकार किया है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने चुनाव के दौरान उनका साथ नहीं दिया, जिसके कारण उनकी करारी हार हुई। इसके पीछे के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था, तब उसका प्रदर्शन इससे कहीं बेहतर रहा था।
लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा के लिए कांग्रेस ने अपने नेता पीएल पुनिया, रजनी पाटिल और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष देवेंद्र यादव की नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने तीनों लोकसभा प्रत्याशियों से बातचीत करने के बाद अपनी रिपोर्ट पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में तीनों प्रत्याशियों ने यही दावा किया है कि आम आदमी पार्टी नेता और कार्यकर्ता ने चुनाव में उनका साथ नहीं दिया। उन्हें इस बात का डर था कि यदि कांग्रेस दिल्ली में खड़ी हो जाएगी, तो इससे विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की जमीन खिसक सकती है। यही कारण है कि दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में कोई सामंजस्य नहीं बना और कांग्रेस को अपने हिस्से की सभी तीनों सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा।
बड़े उद्देश्य के कारण आए साथ
कांग्रेस नेता राजेश लिलोठिया ने अमर उजाला से कहा कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर पार्टी के ही कई नेता असहज थे। उनका मानना था कि कांग्रेस को अकेले दम पर चुनाव में उतरना चाहिए और उसे केजरीवाल के भ्रष्टाचार का बोझ अपने कंधों पर नहीं उठाना चाहिए। लेकिन 'बड़े उद्देश्यों' को ध्यान में रखकर चुनाव लड़ रही पार्टी ने अंततः कई अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने का निर्णय किया। हालांकि इसका उसे कोई लाभ नहीं मिला। दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी एक भी सीट पर सफलता नहीं हासिल कर सके।
मुसलमान-दलित के साथ वापसी
कांग्रेस नेता राजेश लिलोठिया ने कहा कि पूरे देश में मुसलमान और दलित मतदाताओं ने कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई है। उनके अंदर यह भावना प्रबल हो गई है कि यदि देश में धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) और भाईचारे को यदि कोई बचा सकता है तो वह कांग्रेस ही है। दलित समुदाय इस बात से बहुत आशंकित रहा कि भाजपा को पूर्ण बहुमत की सत्ता मिल जाने के बाद देश के संविधान में परिवर्तन किया जा सकता है। इसलिए उसने पूरे दमखम के साथ कांग्रेस का साथ दिया और पूरे देश में भाजपा को हराने का काम किया। अब कांग्रेस अपने इन्हीं दो मूल मतदाता वर्ग को अपने साथ लेते हुए अन्य समाज के लोगों को भी साधने का काम करेगी। कांग्रेस नेता ने विश्वास जताया कि पार्टी दिल्ली में एक बार फिर मजबूत वापसी करने में सफल रहेगी।
क्या मुसलमान-दलित कांग्रेस का साथ देंगे?
कांग्रेस की पूरी उम्मीद मुसलमान और दलित मतदाताओं के समर्थन पर टिकी हुई है। मुसलमान मतदाता पूरे देश में रणनीतिक वोटिंग करने के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि मुसलमान मतदाता उसी राजनीतिक दल को वोट करता है, जो भाजपा को हराने की स्थिति में होता है। ऐसे में पिछले तीन लोकसभा चुनाव और तीन विधानसभा चुनाव में शून्य पर अटक रही कांग्रेस को मुसलमान मतदाता क्यों वोट देंगे, यह बात समझ पाना कठिन है।
नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस ने इसी वोट बैंक पर भरोसा किया था, इसका उसे कुछ लाभ अवश्य मिला और 250 सीटों वाले नगर निगम में उसके नौ प्रत्याशियों को (11.68 फीसदी वोट के साथ) जीत हासिल हुई थी। लेकिन ज्यादातर मामलों में मुस्लिम मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को ही सपोर्ट किया। ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में वह किसको सपोर्ट करेगा, यह देखने वाली बात होगी। इसी प्रकार दलित समाज के मतदाता भी दिल्ली में आम आदमी को पर भरोसा जता रहे हैं। ऐसे में अपने इस पुराने वोट बैंक को साथ लाना कांग्रेस के लिए बहुत चुनौती का काम साबित होने वाला है।