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अव्यवस्था: मां के लिए डॉक्टर को ही नहीं मिला बेड, कहा- नेता तो एक फोन पर भर्ती हो जाते हैं

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: गौरव पाण्डेय Updated Thu, 22 Apr 2021 05:45 PM IST
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सार

कोरोना वायरस महामारी के इस समय में जहां सहयोग, एकजुटता और अनुशासन की अपील की जा रही है वहीं दूसरी ओर इस महामारी से जंग में योद्धा की भूमिका निभा रहे डॉक्टर की वीआईपी कल्चर का शिकार हो रहे हैं। देश में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के जहां बहुत बेहतर होने के दावे किए जा रहे हैं वहीं एक डॉक्टर को कोरोना संक्रमित मां के लिए अस्पताल में बेड न मिल पाना इस दावे की हकीकत पूरी तरह बयां कर रहे हैं। पढ़िए ये रिपोर्ट...

VIP Culture during Coronavirus: A Delhi Doctor could not get a bed for his mother in hospital where he works
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : पेक्सेल्स

विस्तार
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दिल्ली के एक प्रसिद्ध सरकारी अस्पताल के एक डॉक्टर की मां 11 अप्रैल को कोरोना वायरस से संक्रमित हो गई थीं। लेकिन उन्हें भर्ती कराने के लिए डॉक्टर को अपने ही अस्पताल में बेड नहीं मिला। डॉक्टर ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि मां का ऑक्सीजन स्तर लगातार घटता जा रहा था। उन्हें भर्ती कराने के लिए मैं दोपहर 12.30 बजे से चार बजे तक दौड़भाग करता रहा, लेकिन बेड नहीं मिल पाया। 

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डॉक्टर ने कहा कि मां की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। एक साथी ने फोन पर सलाह दी कि मां को निजी अस्पताल में भर्ती करवाओ, तब मैंने उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। डॉक्टर ने आरोप लगाया कि जिस अस्पताल में मैं काम करता हूं वहां सांसद से लेकर विधायकों के साथ उनके रिश्तेदारों के लिए भी बेड की व्यवस्था तुरंत हो जाती है और मैं वहीं काम करता हूं, लेकिन मुझे अपनी मां के लिए बेड नहीं मिल पाया। 
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इस वीआईपी कल्चर से परेशान डॉक्टर ने कहा कि माननीयों के कई ऐसे भी रिश्तेदार और करीबी अस्पताल में भर्ती हुए हैं जिन्हें घर में ही आइसोलेट रहना चाहिए था, लेकिन फिर भी बेड मिल गया। उन्होंने कहा कि बेड आरक्षित करने का कोई नियम नहीं है। लेकिन हर अस्पताल में यह नियम चलता है। हालात ऐसे हो गए हैं कि अगर आप किसी पहुंच वाले व्यक्ति को नहीं जानते हैं तो आपके बचने की संभावना कम ही है।

वीआईपी कल्चर पर स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र

वहीं, महामारी के बीच अस्पतालों में सांसदों और विधायकों को अस्पताल में मिल रहे वीआईपी इलाज को लेकर फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (फोरडा) ने भी नाराजगी जताई है। फोरडा ने इसे लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को एक पत्र लिखकर इस पर रोक लगाने की मांग की है। पत्र में लिखा है कि नेताओं की दखलअंदाजी से सेवाएं प्रभावित होती हैं और जरूरतमंद मरीज वंचित रह सकते हैं।

फोरडा ने मांग की कि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वह अपने इलाज के लिए उन्हीं संस्थानों में जाएं जो उन्हें विशेष तौर पर आवंटित किए गए हैं। सेवाएं बेहतर करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करें और पर्याप्त वर्कफोर्स की व्यवस्था करें। स्वास्थ्यकर्मियों और पैरामेडिकल कर्मियों के इलाज के लिए भी एक विशेष स्थान निर्धारित किया जाए। जनप्रतिनिधियों की सिफारिशों पर रोक लगाई जाए।

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