Hitesh Chimanlal Doshi: उधार की नींव को मेहनत के पसीने से सींचकर बनाई खुद की पहचान, हॉस्टल में सीखी उद्यमशीलता
छोटे से गांव और तंगहाली में पले-बढ़े वारी एनर्जीज लिमिटेड के संस्थापक हितेश चिमनलाल दोशी की यात्रा बेहद मुश्किल परिस्थितियों पर जीत हासिल करने की कहानी है। हितेश ने पांच हजार रुपये से शुरुआत कर 42 हजार करोड़ रुपये की सौर कंपनी बनाई। इनकी सफलता युवाओं को चुनौतियों से लड़ते हुए कुछ कर गुजरने की सीख देती है...


विस्तार
अगर सही आइडिया किसी इन्सान के हाथ लग जाए, तो वह कैसे सफल हो सकता है, इसका जीता-जागता उदाहरण हैं ‘वारी एनर्जीज लिमिटेड’ के मालिक और संस्थापक हितेश चिमनलाल दोशी। इनकी यात्रा चुनौतियों को अवसरों में बदलने की एक प्रेरक कहानी है, जो यह दर्शाती है कि कैसे आपकी दूरदर्शी सोच आपको असाधारण उपलब्धियों की ओर ले जा सकती है। हितेश दोशी ने उधार के पांच हजार रुपये से अपना कारोबार शुरू किया और धीरे-धीरे 42 हजार करोड़ रुपये की एक सौर कंपनी खड़ी कर दी। हितेश चिमनलाल दोशी की कहानी मेहनत, दृढ़ संकल्प और नवाचार की मिसाल है। एक साधारण पृष्ठभूमि से भारत की प्रमुख सौर ऊर्जा कंपनियों में से एक का नेतृत्व करने तक दोशी की यात्रा लचीलेपन, दूरदर्शिता और कड़ी मेहनत का प्रमाण है। उनके नेतृत्व में वारी एनर्जीज ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से विकास किया है और आज भारत में 12,000 मेगावाट की क्षमता के साथ सबसे बड़ी सौर मॉड्यूल निर्माता कंपनी है। हितेश साल 2015 में 'रिन्यूएबल एनर्जी लीडर ऑफ द ईयर' से सम्मानित किए जा चुके हैं। अपनी दूरदर्शी मानसिकता के लिए जाने जाने वाले, उन्होंने एक ऐसी मिशाल पेश की, जो युवाओं को बड़े सपने देखने और उन्हें हासिल करने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही, उनकी उद्यमशीलता की भावना, रणनीतिक निर्णय लेने की क्षमता और प्रतिबद्धता न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता को प्रतिबिंबित करती है, बल्कि युवाओं को विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए कुछ कर गुजरने का पाठ भी पढ़ाती है।
शुरुआती संघर्ष
हितेश का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा था। दोशी का जन्म और पालन-पोषण महाराष्ट्र के एक छोटे-से गांव में हुआ था। उनके पिता एक छोटी-सी किराने की दुकान चलाते थे। गांव में सुविधाएं काफी सीमित थीं। उनका ताल्लुक एक ऐसे परिवार से था, जो रोजाना पैसों के लिए जद्दोजहद करता था। बिजली और टेलीफोन को विलासिता और अमीरों की निशानी माना जाता था। उनके गांव के स्कूल में केवल सातवीं तक ही शिक्षा दी जाती थी। आगे की पढ़ाई के लिए, उन्हें रोजाना साइकिल से दूसरे गांव जाना पड़ता था। बावजूद इसके उन्होंने बेहतर जीवन के लिए शिक्षा के महत्व को समझा। इसलिए उच्च शिक्षा हासिल करने के उद्देश्य से वह अपने गांव को छोड़कर 600 किलोमीटर दूर मुंबई विश्वविद्यालय के श्री चिनॉय कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकनॉमिक्स में दाखिला लेने चले गए। उन्होंने 1987 में वाणिज्य में स्नातक की डिग्री पूरी की।
हॉस्टल में सीखी उद्यमशीलता
कॉलेज के दौरान हितेश नागदेवी में एक छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। उद्यमशीलता की परिभाषा उन्होंने यहीं से सीखी। हॉस्टल में रहते हुए ही उन्होंने जीवन-यापन करने की मूलभूत आवश्यकताओं को महसूस किया। हितेश ने पारंपरिक नौकरी के रास्ते पर न चलकर अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने की ठानी। हॉस्टल का जीवन उनकी सफलता की यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। पढ़ाई के दौरान दोशी ने हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंट गेज का कारोबार शुरू करने के लिए अपने एक रिश्तेदार से 5,000 रुपये उधार लिए। इससे होने वाले मुनाफे से उन्होंने अपने रहने-खाने के खर्च और कॉलेज की फीस का भुगतान किया। बचत का एक हिस्सा वह अपने पिताजी को भी भेजा करते थे।
गांव के मंदिर के नाम पर कंपनी
स्नातक करने के बाद, उन्होंने खुद की कंपनी स्थापित करने के लिए बैंक से डेढ़ लाख रुपये का लोन लिया। इसमें दबाव गेज, गैस स्टेशन उपकरण और औद्योगिक वाल्व का उत्पादन होता था। 1989 में, उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपनी कंपनी ‘वारी इंस्ट्रूमेंट्स’ को पंजीकृत कराया। 1992 में, हितेश ने अंधेरी में 300 वर्ग फुट की जगह किराये पर लेकर कंपनी का विस्तार किया। 2007 में, जर्मनी में एक व्यापार प्रदर्शनी के दौरान सौर ऊर्जा की क्षमता को देखकर वह काफी प्रभावित हुए और थर्मल तथा सौर उपकरण निर्माण करने का निर्णय लिया। उनका शुरुआती लक्ष्य यूरोपीय बाजार था, क्योंकि तब तक भारतीय बाजार सौर उत्पादों के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था। बाद में, इसका विस्तार चीन, अमेरिका और जापान तक हो गया। कंपनी को पहली बार सबसे बड़ा ऑर्डर अमेरिका और यूरोप के ग्राहकों से आया। फिर क्या था हितेश सफलता की ऐसी गाड़ी पर सवार हुए, जो कभी रुकी नहीं। उन्होंने अपने गांव के वारी मंदिर के नाम पर कंपनी का नाम वारी एनर्जीज रखा है।
युवाओं को सीख
- महत्वपूर्ण और असाधारण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना बेहद जरूरी है।
- व्यक्तिगत विकास और सफलता के लिए लगातार सीखते रहना आवश्यक है।
- दृढ़ इच्छाशक्ति आपकी प्रगति में बाधा डालने वाले किसी भी भय को दूर कर सकती है।
- डर और चुनौतियों का डटकर सामना करने से आत्मविश्वास और साहस बढ़ता है।
- सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने से उन अवसरों की पहचान करने में मदद मिलती है, जो दूसरों को बाधाएं लगती हैं।