Ground Report: 'न तो चाहिए ममता का बांग्लार बाड़ी और न ही 10 लाख रुपये', पीड़ितों का छलका दर्द
गांव के अंतिम छोर में गंगा नदी के किनारे शांत इलाके में एक घर... दोपहर का समय... घर के मुख्य दरवाजे टूटे हुए हैं, दरवाजे की सीढ़ियों पर ईटों के टूटे टुकड़े आज भी ज्यो के त्यों हैं। शनिवार को उस घर पर हजारों उपद्रवियों ने क्या कहा होगा, उसे कहने के लिए शब्द भी कम पड़ जाए। सारा दृश्य खुद-ब-खुद बता रहा है कि हैवानियत की कहानी... यह घर है मुर्शिदाबाद के धुलियान के जाफराबाद के हरगोबिंद दास और और चंदन दास का, जिन्हें घर से निकाल कर आताताइयों ने कई बार वार करके हत्या कर दी थी। एक ही दिन पिता और पुत्र की अर्थी उठी।
घर पर पूरी तरह से मातम परसा हुआ है। घर कॉरीडोर से अंदर जाने पर पूरे घर में सामन बिखरा पड़ा है। कॉरिडोर के आखिर एक कोने में एक बुजुर्ग महिला बैठी हैं, शांत, चुपचाप और गुमसुम... बहुत देर बाद खुद ही बोल पड़ती हैं... आमि चाइ ना ममता दीदीर बांग्लार बाड़ी (यानि मैं ममता दीदी की बांग्लार घर).. फिर चुप हो जाती हैं... कहती हैं कि करबो टाका निए (पैसे लेकर क्या करूंगी)... फिर मौन हो जाती हैं। फिर लंबी सांस छोड़कर कहती हैं, कि टाका थिके आमार पति एवं बेटा घुरे आसबे... (पैसा लेने से मेरे पति और बेटा वापस आ जाएंगे)। परिवार ने आर्थिक सहायता लेने से इनकार कर दिया। आज पांच दिन हो गए... अब तो आंसू भी सुख गए। अब तो मेरी मौत के साथ ही यह गम मेरे जाएगा कहते हुए... फफक पड़ती हैं, करीब 65 वर्षीय हरगोविंद दास की पत्नी और चंदन दास की मां पारूल दास। इसलिए मेरे पति और बेटे की जान गई, क्योंकि हम हिंदु हैं।
दोनों के शरीर में कोई जगह नहीं थी जहां घाव नहीं थे
हमें तो कुछ भी पता नहीं था। हजारों की संख्या में लोग अचानक गांव में घुस आए। घरों पर पत्थरबाजी करने लगे। लुटपाट करने लगे। हमारे घर पर दो बार हमला किया। लेकिन वे घर के अंदर घुसने में कामयाब नहीं हुए। देखिए, आज भी घर का मुख्य द्वार टूटा पड़ा है, सीढ़ियों में ईट देखिए। तीसरी बार लोहे के बड़े-बड़े रॉड से दरबाजे को तोड़ डाला। उसके बाद उपद्रवियों ने घर की छत से, पीछे से और चारों तरफ से घर पर हमला कर दिया। पति और बेटे को गर्दन से खींच कर बाहर निकाला और धारदार हथियारों से उनको काट डाला...उनकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी और वह बोले जा रही थीं। हाथ काट दिए, पैर काट दिए, शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं था, जहां घाव के निशान नहीं थे। इतने से भी इनका मन नहीं भरा तो पूरे घर का सामान लूट लिया। पूछती हैं, मेरे पति और बेटे का कसूर क्या था। पूछती हैं, मेरा जीवन अब कैसे गुजरेगा। क्या हिंदु होना गुनाह है, इस देश में। क्या हिंदुओं को देश में डर के साए में जीना पड़ेगा।
'पिता को जैसे मारा, वैसी सजा चाहता हूं'
चंदन दास का 11 वर्षीय बेटा आकाश ने कहा, आज ही पिता की पंचवीं की है। आठवीं कक्षा में पढ़ने वााल आकाश कहता है, आखिर मेरे दादू और पिता का क्या दोष था। लोग इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं। जिस नृशंस तरीके से मेरे दादू और ता की हत्या की। मैं चाहता हूं कि जिन लोगों ने मेरे पिता और दादू की जिस निर्ममता से हत्या की, उनको भी उसी तरह से सजा दी जाए। ब,अच्छा बताइए, अब मैं अपने पिता के बिना हम भाई बहन कैसे रहेंगे। कैसे पढ़ाी करेंगे। कैसे जीवन-यापन करेंगे। कौन देगा मेरे सवालों का जवाब। फिर एक सवाल के जवाब में वे गुस्से कहते हैं, अभी पढ़ रहा हूं, समय आने पर बताउंगा कि मैं क्या बनूंगा।
हिंदुओं पर इतनी क्रूरता क्यों?
हमारा किसी के साथ कोई द्वेष नहीं था। हमने किसी का क्या बिगाड़ा था। कहते हुए गुस्से से लाल हो जाती हैं, चंदन की भाई की पत्नी श्रावणी दास। कहती हैं आखिर हिंदुओं पर इतनी क्रूररता क्यों। एक दिन में एक घर से दो अर्थियां उठीं। जब हमला हुआ तो हम सबने दूसरे घर में खुद को बंद कर लिया। हमने खिड़कियों से देखा कि हजारों की संख्या में लोग हमला कर रहे हैं। बमबाजी कर रहे हैं। हाथों में तलवार, हंसिया और न जाने क्या-क्या लेकर हमला कर दिया। हमें कुछ नहीं चाहिए, कोई सरकारी मदद हम नहीं लेंगे। बस, हमें न्याय चाहिए।
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