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India-China: क्या भारत-चीन के बीच LAC पर 'पेट्रोलिंग समझौते' से खत्म होगा सीमा विवाद? क्या होगा बफर जोन का?

Harendra Chaudhary हरेंद्र चौधरी
Updated Mon, 21 Oct 2024 10:44 PM IST
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Will the Patrolling Agreement on LAC end the border dispute between India and China?
भारत-चीन सीमा विवाद। - फोटो : अमर उजाला
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रूस के कजान शहर में 22-23 अक्तूबर को होने वाली ब्रिक्स समिट इस बार एक तरह से एतिहासिक होगी। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात होनी है, जिसके बाद दोनों देशों के नेता वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेट्रोलिंग के एक समझौते को लेकर ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर द्विपक्षीय वार्ता कर सकते हैं। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी की कजान यात्रा से ठीक पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों की वापसी और पेट्रोलिंग को लेकर एक समझौते पर पहुंच गए हैं। इस समझौते में डेपसांग और डेमचोक भी शामिल है, जहां चीन भारत की क्लेम लाइन के अंदर आकर बैठा है। वहीं इस समझौते को लेकर विदेश मंत्री का कहना है कि हम पेट्रोलिंग को लेकर एक समझौते पर पहुंच गए हैं और 2020 से पहले की स्थिति पर वापस आ गए हैं। इसके साथ ही हम कह सकते हैं कि चीन के साथ डिसइंगेजमेंट पूरा हो गया है। खास बात यह है कि अभी तक सेना की तरफ से इस समझौते को लेकर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। 

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अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति लेकर स्पष्टता नहीं
सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि पेट्रोलिंग एग्रीमेंट एलएसी के साथ सटे उन इलाकों में भी हुआ है, जहां पिछले कुछ सालों में डिसइंगेटमेंट प्रोसेस के तहत सैन्य कर्मियों की पहले ही वापसी हो चुकी है, और इसमें डेमचोक और देपसांग के इलाके भी शामिल हैं। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि आज के घटनाक्रम से लगता है कि  अप्रैल 2020 से भारत-चीन के चल रहा गतिरोध अब खत्म हो सकता है। हालांकि इस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय ने समझौते के बारे में और ज्यादा जानकारी नहीं दी। साथ ही इस बारे में कुछ नहीं बताया कि क्या 2020 में गलवां संघर्ष से पहले वाली स्थिति बहाल होगी या नहीं। वहीं, इस बारे में भी कोई सूचना नहीं मिली, कि क्या हाल ही में बनाए गए 'बफर जोन' में भी यह समझौता लागू होगा। विदेश सचिव मिसरी के मुताबिक दोनों पक्ष उन मुद्दों पर सहमति पर पहुंच गए हैं, जिन पर पिछले कुछ वक्त से चर्चा की जा रही थी। 
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क्या ब्रिक्स में मिलेंगे मोदी और शी? साधी चुप्पी 
विदेश सचिव विक्रम मिसरी के मुताबिक दोनों पक्ष अब इस पर "अगला कदम" उठाएंगे। जिसके बाद ये इस बात का संकेत है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपंग के बीच एक बैठक हो सकती है। हालांकि जून 2020 में हुए गलवां संघर्ष से पहले दोनों नेता 18 बार मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन 2020 के बाद से दोनों नेताओं के बीच केवल दो बार 2022 में इंडोनेशिया में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान और 2023 में दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ही मुलाकात हुई है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय और चीनी विदेश मंत्रालय दोनों इस बैठक को लेकर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। मोदी-शी की मुलाकात को लेकर विक्रम मिसरी ने केवल इतना कहा कि हमेशा ही अलग-अलग समय पर द्विपक्षीय बैठकों का प्रावधान होता है। द्विपक्षीय बैठकों के लिए कई अनुरोध मिले हैं और हम आपको जल्दी ही द्विपक्षीय बैठकों के बारे में जानकारी देंगे। वहीं, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने बीजिंग में संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘अगर कोई बात सामने आती है तो हम आपको सूचित करेंगे।

चार सालों में 31 दौर की कूटनीतिक बैठकें 
वहीं इस मुलाकात को लेकर विदेश मंत्रालय के एक सूत्र का कहना है कि यहां तक पहुंचना ही बड़ी बात है, और यह इतनी आसानी से नहीं हुआ है। जुलाई में विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच दो अहम बैठकें हुईं। पिछले चार सालों में 31 दौर की कूटनीतिक बैठकें और 21 दौर की सैन्य वार्ता ने भारत और चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों की वापसी को लेकर एक समझौते पर पहुंचने का रास्ता खोला है। सूत्रों के मुताबिक जुलाई में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की दो बार मुलाकात हुई थी, जिसमें सैनिकों की शीघ्र वापसी पर जोर दिया गया था। पहली बैठक 4 जुलाई को कजाकिस्तान के अस्ताना में एससीओ काउंसिल ऑफ हेड्स ऑफ स्टेट मीटिंग के दौरान हुई थी। इसमें दोनों मंत्री इस बात पर सहमत हुए कि एलएसी पर मौजूदा स्थिति का लंबे समय तक खिंचना किसी भी पक्ष के हित में नहीं है। 

इसके बाद दोनों मंत्री 25 जुलाई को लाओ पीडीआर के वियनतियाने में आसियान देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में मिले थे। जिसमें भारत की तरफ से कहा गया कि दोनों मंत्रियों ने जल्द से जल्द डिसइंगेजमेंट के लिए तत्परता के साथ काम करने की जरूरत पर सहमति जताई। जिसके बाद भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय पर कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की बैठक आयोजित की गई, जो 31 जुलाई को दिल्ली में और फिर 29 अगस्त को चीन में हुई। बता दें कि पिछले चार सालों में भारत-चीन सीमा मामलों पर डब्ल्यूएमसीसी की कुल 31 दौर की वार्ताएं और भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की 21 दौर की बैठकें हो चुकी हैं।

पांच इलाकों में बने बफर जोन
नाम न छापने की शर्त पर सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि कई जगहों पर चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपने हिसाब से बदलाव किया है, जिसे 'परसेप्शन' की लड़ाई कहता है। वह कहते हैं कि अगर यह इतना ही आसान होता तो, कोर कमांडर स्तर की शुरुआती बातचीत में ही मामला सुलझ जाता। कम से कम 21 दौर तक तो नहीं खिंचता। वह कहते हैं कि अगर समझौते में मई 2020 से पहले की स्थिति में वापस लौटना शामिल नहीं है, तो इस समझौते का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि 2020 से लेकर अभी तक एलएसी में काफी बदलाव आ चुके हैं। 

सूत्रों का कहना है कि जून 2020 से चली लंबी बातचीत में, पांच क्षेत्रों में बफर जोन बनाए गए- गलवां घाटी, पैंगोंग त्सो के उत्तर में, कैलाश रेंज, पेट्रोलिंग पॉइंट्स (पीपी) 17-17ए और 15-16। पैंगोंग त्सो के उत्तर में केवल 8-10 किमी की फिंगर-4 और फिंगर-8 के बीच का बफर जोन दूरी के लिहाज से समान है, जो सड़क के साथ 10 किमी और हवाई रास्ते से 6 किमी की सीधी दूरी और उत्तर में 10-12 किमी है। वहीं, गलवान में 3 किमी के बफर जोन का केंद्र बिंदु पीपी 14 है, जो एलएसी से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर है। वहीं, कुगरांग नदी घाटी में, पीपी 17 और 17ए और पीपी 15 और 16 के बीच प्रत्येक 4-5 किमी के बफर जोन पूरी तरह से एलएसी पर भारत की तरफ बनाए गए हैं। खास तौर पर गलवां को वो पेट्रोलिंग प्वाइंट-14, जिसे लेकर 20 सैनिकों की शहादत हुई थी, जहां चीनी सेना के 2 किमी पीछे हटने के साथ ही भारतीय सैनिक भी 1.5 किमी दूर चले गए हैं। दोनों देशों के बीच इस सहमति के बाद भारतीय सैनिक भी अब यहां तक पेट्रोलिंग नहीं कर सकते हैं। 

डेपसांग में 18 किलोमीटर अंदर है चीन
सूत्र आगे कहते हैं कि डेपसांग की बात ही कर लें, तो वहां चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी वर्तमान में भारत के नियंत्रण वाले डेपसांग मैदानों में 15 से 20 किलोमीटर आगे आकर बैठी हुई है और बफर जोन बनाने पर अड़ी है। यह इलाका वाई जंक्शन/बॉटलनेक यानी राकी नाला घाटी से पैट्रोलिंग पॉइंट्स 10,11, 11ए, 12 और 13 तक 18-20 किमी के क्षेत्र के अतिरिक्त है। बॉटलनेक से 500-700 मीटर की दूरी पर चीनी फौज बैठी है। यहां पर पीएलए ने मई 2020 के बाद से भारतीय सेनाओं को आगे पेट्रोलिंग करने से रोक दिया है। देपसांग के पूर्व में 'बॉटलनेक' या 'वाई-जंक्शन' में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने भारतीय सैनिकों को उनके पेट्रोलिंग पॉइंट्स 10, 11, 11अल्फा, 12 और 13 पर जाने से रोक हुआ है। यह इलाका भारत में लगभग 18 किलोमीटर अंदर है और चीन इसके 952 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा ठोकता है। बता दें कि देपसांग के उत्तर में भारत का एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) स्थित है।

पैंगोंग में चीन ने बसाया गांव 
वहां यही स्थिति पेंगोंग में भी है। पैंगोंग त्सो में हमारे सैनिक अब फिंगर 3 तक ही जा पा रहे हैं, जबकि पहले वे फिंगर 8 तक जा सकते थे। भारतीय चरवाहे, अब चुशुल में हेमलेट टॉप, मुकपा रे, रेजांग ला, रिनचेन ला, टेबल टॉप और गुरुंग हिल तक नहीं जा पा रहे हैं। सूत्र कहते हैं कि मुखपरी से लेकर रिचिंगला और रेजांग ला तक सारा इलाका बफर जोन में है। साथ ही, गोगरा हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में वे अब पेट्रोलिंग प्वाइंट 15, 16 व 17 तक नहीं जा सकते हैं। पैंगोंग में तो बफर जोन के चलते 1962 की जंग में परमवीर चक्र से सम्मानित मेजर शैतान सिंह के मेमोरियल तक को तोड़ दिया गया औऱ सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया तक नहीं आई। क्योंकि बफर जोन में कोई परमानेंट स्ट्रक्चर नहीं बनाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक पैंगोंग झील के उत्तरी तट के नजदीक येमागौ रोड के पास तो चीन बकायदा 17 हेक्टेयर क्षेत्र में एक बड़ी बस्ती का निर्माण कर रहा है। जहां 100 से 150 ईमारतें और घर बनाए जा रहे हैं। वहीं, पैंगोंग झील के सबसे संकरे बिंदु पर स्थित खुर्नक किले के पास चीन पहले ही पुल का निर्माण कर चुका है। चीन ने जून 1958 में खुर्नक किले के आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया था। यह पुल सिरिजाप से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है, जो फिंगर 8 क्षेत्र के पूर्व में स्थित है। इस इलाके पर भारत अपना दावा करता है। सूत्रों का कहना है कि मई 2020 से पहले तक भारत फिंगर 8 तक और चीन फिंगर 4 तक गश्त करता था। लेकिन समझौते के नए प्रारूप को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। 

डेमचोक में ये हैं हालात
सूत्रों का कहना है कि यही स्थिति डेमचोक में भी है। यहां चीन ने तो बकायदा मॉडल विलेज तक बना लिया है। यह गांव पूर्वी लद्दाख में एलएसी से लगभग 10 मील की दूरी पर स्थित है। 2018 में चीन ने डेमचोक के चार्डिंग निलुंग नाला में टेंट लगा दिए थे, ताकि इलाके में भारतीय सैनिकों की पहुंच को रोका जा सके। चीन कहता है कि ये उसके चरवाहों के टेंट हैं, वहीं भारत का कहना है कि ये चीनी सैनिक हैं जो सिविल ड्रेस में वहां हैं। वह कहते हैं कि चीन ने डेमचोक में जो गांव बसाया है वह भारतीय सीमा से बिल्कुल लगा हुआ है। जो भारत के इलाके से बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे में वहां डिसइंगेजमेंट कैसे होगा। क्या चीन वह गांव खाली करेगा और पीछे एलएसी पर लौटेगा? वह आगे कहते हैं कि आखिर डेमचोक और डेपसांग को लेकर ही क्यों बातचीत आगे नहीं बढ़ पा रही थी। डेमचोक में भी भारतीय इलाके में बफर जोन बना हुआ है। वह कहते हैं कि अगर इस समझौते का मतलब चीन की बनाई नई वास्तविक LAC पर गश्त करना है, तो इसके कोई मायने नहीं हैं। 

चीन ने तोड़े थे समझौते 
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी इस पूरे समझौते पर सवाल खड़े करते हैं। वह कहते हैं कि सैन्य गतिरोध को खत्म करने के लिए कोई डील नहीं हुई है। ये इस सप्ताह होने जा रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी-शी की बैठक को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया है, जिसके तहत भारत और चीन एक पेट्रोलिंग व्यवस्था पर सहमत हुए हैं। चेलानी का कहना है कि इस गतिरोध की जड़ चीन की ओर से पेट्रोलिंग सहित सीमा-प्रबंधन समझौतों का उल्लंघन है।

गश्त से टकराव घटेंगे नहीं बल्कि बढ़ेंगे
वहीं ताइवान प्लस न्यूज के पत्रकार आदिल बरार के मुताबिक चीन की ओर से अभी तक डिसइंगेजमेंट को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है। वह कहते हैं कि मामूली वापसी से पीछे इलाकों में लंबे समय से तैनात सैनिकों की मौजदूगी को लेकर कोई समाधान नहीं होगा। उनका मानना है कि बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती और गश्त फिर से शुरू होने का मतलब है कि गश्त करने वाली पार्टियों के बीच टकराव की संभावना कम नहीं, बल्कि और बढ़ेगी। 2020 में भी शुरुआती झड़पें तब शुरू हुईं, जब गश्त करने वाली सैन्य टुकड़ियां एक-दूसरे से भिड़ गईं थीं। उन्हें लगता है कि यह केवल कुछ पेट्रोलिंग राइट्स की बहाली के साथ छिटपुट वापसी है और दोनों देशों के सैनिक अपनी जगह पर बने रहेंगे। 

ब्रिक्स में माहौल बनाने की तैयारी
वहीं ताइवान मामलों की जानकार सना हाशमी इस समझौते को किसी और नजर से देखती हैं। उनका कहना है कि हम ब्रिक्स समिट के दौरान मोदी-शी की द्विपक्षीय बैठक का नतीजा देख सकते हैं। यह डील पीएम नरेंद्र मोदी को शी जिनपिंग की मुलाकात के लिए माहौल बनाने के लिए भी हो सकती है। अब देखते हैं यह संघर्ष विराम कब तक चलता है। हम शिखर सम्मेलन के बाद तक इस पर कोई चीनी बयान नहीं देखेंगे। चीन फिर इसे बहुत महत्व नहीं देगा।

जयशंकर बोले- हो पेट्रोलिंग की व्यवस्था 
इससे पहले सितंबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत और चीन के बीच 75 फीसदी गलतफहमियां सुलझ गई हैं। उन्होंने कहा कि डिसइंगेजमेंट यानी दोनों ओर से सैनकों को पीछे करने से जुड़ी समस्या 75 प्रतिशत हल हो गई। उन्होंने आगे कहा था कि हमें उम्मीद है कि अगर डिसइंगेजमेंट का कोई हल निकलता है और शांति की बहाली होती है, तो हम अन्य संभावनाओं पर गौर कर सकते हैं। हम करीब चार साल से बातचीत कर रहे हैं औऱ इसका पहला कदम डिसइंगेजमेंट है कि  उनके सैनिक अपने सामान्य ठिकानों पर वापस चले जाएं और हमारे सैनिक अपने सामान्य ठिकानों पर वापस चले जाएं, और जहां आवश्यकता हो, वहां हमारे बीच पेट्रोलिंग करने की व्यवस्था हो। चीन पर बोलते हुए जयशंकर का कहना था कि 2020 में जो कुछ हुआ वह कई समझौतों का उल्लंघन था। वास्तविंक नियंत्रण रेखा अभी भी हमारे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। केवल अनुमान लगा सकते हैं। चीन एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर दिए और जवाब में हमने अपने सैनिकों को तैनात कर दिया। यह हमारे लिए बहुत कठिन था क्योंकि हम उस समय कोविड लॉकडाउन के बीच में थे।

सेना प्रमुख कहा था- भरोसे को हुआ नुकसान
वहीं, इस महीने की शुरुआत में भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा था कि दोनों पक्षों ने "आसान मुद्दों" को सुलझा लिया है और अब कठिन परिस्थितियों से निपटने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि कूटनीतिक पक्ष से "सकारात्मक संकेत" मिले हैं और जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन दोनों देशों के सैन्य कमांडरों पर निर्भर है। उन्होंने कहा था कि पूरे मामले में दोनों देशों के बीच भरोसा टूटा है और हम चाहते हैं कि अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो। 

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