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Kathua News: मनुष्य आनंदलोक का वासी, परमधाम तक पहुंचना उद्देश्य
संवाद न्यूज एजेंसी, कठुआ
Updated Wed, 07 May 2025 01:25 AM IST
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नगरी के रामलीला मैदान में श्रीमद् भागवत कथा संकीर्तन जारी
कठुआ। नगरी के रामलीला मैदान में श्रीमद् भागवत कथा संकीर्तन महामहोत्सव का आयोजन जारी है। कथा के तीसरे दिन कथाव्यास श्रीपाद् मधुसूदन दासनूदास जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने अपने मनुष्य तन पाने का मनन करने और परमगति को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने के कहा। इस मौके पर उनके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले मधुर भजनों पर उपस्थित संगत मंत्रमुग्ध रही।
अपने प्रवचन के दौरान कथाव्यास ने कहा कि 84 हजार योनियों में भटकने के बाद हमें यह मनुष्य तन मिला है। इस धरा पर जन्म लेने वाले जितने भी प्राणी हैं, उसमें सिर्फ मनुष्य को भगवान ने अपना कल्याण करने का बल प्रदान किया है। लेकिन हम उस कल्याण के पथ को भूलकर लौकिक सुखों को प्राप्त करने में लग जाते है। क्योंकि हमें मोहमाया जकड़ लेती है। इसमें कई बार जाने-अनजाने हमसे कई बार ऐसे पाप कर देते हैं कि हमारे मनुष्य तन को प्राप्त करने उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।
उन्होंने कहा कि इस जगत में हमारे आने का उद्देश्य क्या है। हमें इस पर विचार करना होगा। मनुष्य जीवन इहलोक और परलोक की कड़ी है। चौरासी लाख योनियों के बाद हमें मनुष्य जीवन मिलता है और संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ है। इसकी वजह मनुष्य में सत्य व असत्य का विवेक कराने वाली बुद्धि का होना है, लेकिन इस धरती पर हम दुनियादारी के चक्र में ऐसे फंस जाते हैं कि हमारी बुद्धि सीमित दायरे में ही सिमट कर रह जाती है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य आनंदलोक का वासी है और आनंद के परमधाम तक पहुंचना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है, इसलिए मनुष्य को इस संसार की मृग मरीचिका से निकलकर भव्य जीवन की प्राप्ति के लिए साधना के मार्ग को अपनाकर अपने गंतव्य को पहचानना चाहिए और उसी में लीन होने के लिए साधनारत रहने का संकल्प लेना चाहिए। संवाद
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कठुआ। नगरी के रामलीला मैदान में श्रीमद् भागवत कथा संकीर्तन महामहोत्सव का आयोजन जारी है। कथा के तीसरे दिन कथाव्यास श्रीपाद् मधुसूदन दासनूदास जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने अपने मनुष्य तन पाने का मनन करने और परमगति को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने के कहा। इस मौके पर उनके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले मधुर भजनों पर उपस्थित संगत मंत्रमुग्ध रही।
अपने प्रवचन के दौरान कथाव्यास ने कहा कि 84 हजार योनियों में भटकने के बाद हमें यह मनुष्य तन मिला है। इस धरा पर जन्म लेने वाले जितने भी प्राणी हैं, उसमें सिर्फ मनुष्य को भगवान ने अपना कल्याण करने का बल प्रदान किया है। लेकिन हम उस कल्याण के पथ को भूलकर लौकिक सुखों को प्राप्त करने में लग जाते है। क्योंकि हमें मोहमाया जकड़ लेती है। इसमें कई बार जाने-अनजाने हमसे कई बार ऐसे पाप कर देते हैं कि हमारे मनुष्य तन को प्राप्त करने उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।
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उन्होंने कहा कि इस जगत में हमारे आने का उद्देश्य क्या है। हमें इस पर विचार करना होगा। मनुष्य जीवन इहलोक और परलोक की कड़ी है। चौरासी लाख योनियों के बाद हमें मनुष्य जीवन मिलता है और संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ है। इसकी वजह मनुष्य में सत्य व असत्य का विवेक कराने वाली बुद्धि का होना है, लेकिन इस धरती पर हम दुनियादारी के चक्र में ऐसे फंस जाते हैं कि हमारी बुद्धि सीमित दायरे में ही सिमट कर रह जाती है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य आनंदलोक का वासी है और आनंद के परमधाम तक पहुंचना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है, इसलिए मनुष्य को इस संसार की मृग मरीचिका से निकलकर भव्य जीवन की प्राप्ति के लिए साधना के मार्ग को अपनाकर अपने गंतव्य को पहचानना चाहिए और उसी में लीन होने के लिए साधनारत रहने का संकल्प लेना चाहिए। संवाद