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Jammu News: 2015 की रोक के बाद तैनात किए दैनिक वेतनभोगी नहीं होंगे नियमित
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जम्मू। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि वर्ष 2015 में नई भर्तियों पर लगी सरकारी रोक के बाद रखे गए दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने का कोई अधिकार नहीं बनता। अदालत ने नजीर अहमद भट समेत दो की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि याचियों के नाम विभागीय रिकाॅर्ड में मौजूद ही नहीं पाए गए हैं।
न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचियों की नियुक्ति से जुड़ा रिकार्ड सरकारी रोक लागू होने के बाद तैयार किया गया और वे बिजली विकास विभाग के सब ट्रांसमिशन डिवीज,न गांदरबल की आधिकारिक मजदूर सूचियों में दर्ज नही हैं। इसलिए उनके किसी कानूनी या मूल अधिकार के उल्लंघन की बात भी साबित नही होती। जांच समिति ने जुलाई 2022 में पूरे मामले की जांच की थी। इसमें पाया गया कि डिवीजन की सूची में 128 लोगों के नाम ही नही थे। जबकि 465 दैनिक वेतनभोगी, जरूरत आधारित और पीडीएल व टीडीएल श्रेणी के कर्मचारी ही वास्तविक रूप से काम करते मिले और उन्हें ही वेतन मिल रहा था। याचियों ने कहा था कि उन्हें 2012 से 2015 के बीच लगाया गया था यानी रोक लागू होने से पहले। उनका यह भी आरोप था कि नियमितिकरण के लिए 2021 में भेजी गई 472 नामों की सूची से उनके नाम हटाकर 37 अपात्र लोगों को जगह दे दी गई।
अदालत ने कहा कि याचियों ने न तो जांच रिपोर्ट को चुनौती दी और न ही लगातार सेवा का कोई भरोसेमंद सबूत पेश किया। इसलिए विभाग की कार्रवाई को गलत ठहराने का कोई आधार नही बनता। अदालत ने दोनों याचिकाएं और उनसे जुड़ी सभी अर्जियां खारिज कर दीं। जेएनएफ
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न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचियों की नियुक्ति से जुड़ा रिकार्ड सरकारी रोक लागू होने के बाद तैयार किया गया और वे बिजली विकास विभाग के सब ट्रांसमिशन डिवीज,न गांदरबल की आधिकारिक मजदूर सूचियों में दर्ज नही हैं। इसलिए उनके किसी कानूनी या मूल अधिकार के उल्लंघन की बात भी साबित नही होती। जांच समिति ने जुलाई 2022 में पूरे मामले की जांच की थी। इसमें पाया गया कि डिवीजन की सूची में 128 लोगों के नाम ही नही थे। जबकि 465 दैनिक वेतनभोगी, जरूरत आधारित और पीडीएल व टीडीएल श्रेणी के कर्मचारी ही वास्तविक रूप से काम करते मिले और उन्हें ही वेतन मिल रहा था। याचियों ने कहा था कि उन्हें 2012 से 2015 के बीच लगाया गया था यानी रोक लागू होने से पहले। उनका यह भी आरोप था कि नियमितिकरण के लिए 2021 में भेजी गई 472 नामों की सूची से उनके नाम हटाकर 37 अपात्र लोगों को जगह दे दी गई।
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अदालत ने कहा कि याचियों ने न तो जांच रिपोर्ट को चुनौती दी और न ही लगातार सेवा का कोई भरोसेमंद सबूत पेश किया। इसलिए विभाग की कार्रवाई को गलत ठहराने का कोई आधार नही बनता। अदालत ने दोनों याचिकाएं और उनसे जुड़ी सभी अर्जियां खारिज कर दीं। जेएनएफ