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कादरी हत्याकांड: सीमा पार आतंकियों से मिलकर साजिश रचने का आरोप, अब्दुल कय्यूम की जमानत अर्जी खारिज

अमर उजाला नेटवर्क, जम्मू Published by: निकिता गुप्ता Updated Wed, 17 Dec 2025 11:39 AM IST
सार

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने बाबर कादरी हत्याकांड में आरोपी एवं पूर्व बार अध्यक्ष मियां अब्दुल कय्यूम की मेडिकल आधार पर दायर जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि जेल में उन्हें पर्याप्त और नियमित इलाज मिल रहा है तथा गंभीर आरोपों के चलते बीमारी मात्र जमानत का आधार नहीं बन सकती।

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Qadri murder case: Former Bar Association president Abdul Qayyum's bail plea rejected
judge court हथोड़ा - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को हाई प्रोफाइल एडवोकेट बाबर कादरी की हत्या के मामले में आरोपी एवं जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मियां अब्दुल कय्यूम की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कय्यूम पर सीमा पार बैठे आतंकियों के साथ मिलकर कादरी की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप है।

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जस्टिस सिंधु शर्मा और जस्टिस शहजाद अजीम की डिवीजन बेंच ने मेडिकल इमरजेंसी के आधार को नकारते हुए ट्रायल कोर्ट के जमानत याचिका खारिज करने के आदेश को बरकरार रखा है। करीब 77 वर्षीय याचिकाकर्ता के वकील ने मानवीय और मेडिकल आधार पर जमानत मांगी थी। उन्होंने धमनी रोग, परमानेंट पेसमेकर की जरूरत, दिल की धड़कन और मूत्र संबंधी समस्याओं, ग्लूकोमा, ऑर्थोपेडिक जैसी कई बीमारियों का हवाला दिया गया था। वकील का तर्क था कि कय्यूम को रोज तकरीबन 20 दवाओं और लगातार निगरानी की जरूरत है जो उसके अनुसार जेल में रहते संभव नहीं है।
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कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कय्यूम को हिरासत के दौरान जीएमसी जम्मू में सफलतापूर्वक पेसमेकर लगाया गया था। इसमें 20 अक्तूबर 2025 की नवीनतम मेडिकल रिपोर्ट भी शामिल है। कोर्ट ने कय्यूम के स्थिर स्थिति में होने और कार्डियोलॉजी, यूरोलॉजी, एंडोक्रिनोलॉजी, रेडियोलॉजी और ऑप्थल्मोलॉजी सहित आवश्यक विभागों से नियमित, विशेष उपचार प्राप्त करने की बात कही।

बेंच ने यह भी कहा कि कय्यूम को 36 बार जांच के लिए ले जाया गया था। इससे पता चलता है कि अधिकारियों ने स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को नजरअंदाज नहीं किया है। अस्पताल जाने से स्वास्थ्य बिगड़ने के तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि हर बीमारी या कमजोरी आरोपी को जमानत का हकदार नहीं बनाती।

शिकायतकर्ता की पैरवी के लिए तैयार नहीं हुआ था कोई वकील
हाईकोर्ट ने आरोपों की गंभीरता पर भी जोर दिया है। कहा कि मामला पहले प्रदेश जांच एजेंसी (एसआईए) को सौंपा गया था। बाद में निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए इसे श्रीनगर से जम्मू स्थानांतरित कर दिया गया। कोर्ट ने गवाहों को धमकाने जैसे आरोपों और श्रीनगर में किसी भी वकील को शिकायतकर्ता की पैरवी के लिए तैयार न होने का भी हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि इस स्टेज पर रिहाई से ट्रायल पर असर पड़ सकता है क्योंकि ज्यादातर गवाहों की गवाही अभी बाकी है।

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