Air Pollution: दम घोंट रहा है बढ़ता प्रदूषण, डॉक्टर ने ऐसे मरीजों को दिल्ली छोड़ने की दी सलाह
- दिल्ली और आसपास के इलाकों में धुंध की मोटी चादर छाई हुई है, जिससे कई प्रकार का स्वास्थ्य संकट पैदा हो रहा है। डॉक्टर कहते हैं, घर के अंदर और बाहर के प्रदूषण के कारण सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ सकते हैं।
विस्तार
Delhi Air Pollution: राजधानी दिल्ली-एनसीआर इन दिनों घातक वायु प्रदूषण की चपेट में है। हवा में बढ़ते प्रदूषण के सूक्ष्म कण सांसों को चोक कर रहे हैं, लिहाजा खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो रहा है, आंखों में जलन बढ़ रही है और लोगों को सिरदर्द जैसी समस्याएं अधिक हो रही हैं।
एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम (ईडब्ल्यूएस) की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को दिल्ली की वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट आई और यह 'बेहद खराब' श्रेणी में पहुंच गई। सुबह करीब 7 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 371 तक दर्ज किया गया। हालांकि, निजी वायु गुणवत्ता निगरानी समूहों ने एक्यूआई को थोड़ा कम यानी 242 बताया।
#WATCH | Delhi | A layer of haze engulfs Anand Vihar as AQI deteriorates to 371, categorised as 'Very Poor' by the Central Pollution Control Board (CPCB).
(Drone visuals from the area, shot at 6.50 am today) pic.twitter.com/MAHIsFs02N — ANI (@ANI) November 3, 2025
पिछले कुछ हफ्तों से जिस तरह से दिल्ली की हवा में प्रदूषण का बढ़ा हुआ स्तर देखा जा रहा है, इसे लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी लोगों को सावधान करते हैं। इतना ही नहीं दिल्ली स्थित एक निजी अस्पताल में वरिष्ठ श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. गोपी चंद खिलनानी ने उन लोगों को अगले कुछ हफ्तों तक दिल्ली में न रहने की सलाह दी है जो पहले से ही फेफड़ों की किसी क्रॉनिक बीमारी का शिकार हैं या फिर बुजुर्ग हैं। डॉक्टर ने कहा, हवा की खराब होती गुणवत्ता सांस से संबंधित समस्याओं को ट्रिगर करने वाली हो सकती है।
बुजुर्ग और पहले से बीमार लोगों के लिए बढ़ सकती है मुश्किलें
मीडिया से बातचीत में डॉ खिलनानी कहते हैं, प्रदूषण का ये स्तर फेफड़ों के साथ-साथ हृदय स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है। ऐसे में पहले से जिनको सांस की समस्या है, प्रदूषण के कारण इसके ट्रिगर होने का खतरा हो सकता है। ऐसे लोग यदि सक्षम हैं तो अगले छह से आठ सप्ताह के लिए दिल्ली से कहीं बाहर चले जाएं, ऐसा करके आप प्रदूषण से बचाव कर सकते हैं और सेहत को ठीक रख सकते हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में धुंध की मोटी चादर छाई हुई है, जिससे कई प्रकार का स्वास्थ्य संकट पैदा हो रहा है। डॉक्टर कहते हैं, घर के अंदर और बाहर के प्रदूषण के कारण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ सकते हैं।
क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ?
अमर उजाला से बातचीत में पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अमृत सहाय कहते हैं, बढ़ता प्रदूषण उन लोगों के लिए तो खतरनाक है ही जिनको पहले से सांस की कोई दिक्कत है, इसके अलावा प्रदूषित हवा के अधिक संपर्क में रहना पहले से स्वस्थ लोगों में भी इन बीमारियों को बढ़ाने वाला हो सकता है।
दिल्ली में सर्दी की शुरुआत के साथ ही प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। हवा में धूल, धुआं, पराली जलने और औद्योगिक कचरे से निकलने वाले जहरीले गैसों के मिश्रण के कारण लोगों के लिए सांस लेना कठिन होता जा रहा है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों तक जाकर फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करते हैं, जिससे सांस फूलने, खांसी और अस्थमा जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
फेफड़ों के साथ हृदय पर भी असर
एम्स की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदूषण के दिनों में अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों की संख्या लगभग 30% बढ़ जाती है। बच्चों और बुजुर्गों को इसका असर सबसे पहले महसूस होता है, क्योंकि उनकी इम्यून सिस्टम कमजोर होती है।
प्रदूषण सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं है। हवा में मौजूद जहरीले तत्व खून में ऑक्सीजन की मात्रा घटा देते हैं, जिससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा 20-25% तक बढ़ जाता है।
पीएम 2.5 के कारण 17 लाख मौतें
हाल ही में अमर उजाला में प्रकाशित रिपोर्ट में हमने बताया था कि किस तरह से प्रदूषित हवा के कारण लाखों लोगों की जान जा रही है। द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, मानव-जनित पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण साल 2022 में भारत में 17 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। साल 2010 की तुलना में मौत के मामलों में 38 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
-------------------------------
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।