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अमर उजाला के कार्यक्रम 'नजरिया' में आनंद मलिगावद ने सुनाई संघर्ष की कहानी, बोले- जुनून चाहिए

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: खुशबू गोयल Updated Wed, 18 Sep 2019 09:57 AM IST
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Anand Malligavad Speech in Amar Ujala Foundation Motivational Programme Nazariya
आनंद मलिगावद - फोटो : अमर उजाला
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अमर उजाला फाउंडेशन की ओर से आयोजित ‘नजरिया जो जीवन बदल दे’ कार्यक्रम में लेक रिवाइवर आनंद मलिगावद बताई अपने संघर्ष की कहानी और कहा कि जिद-जुनून से आएगा बदलाव। आनंद ने झीलों के डंपिंग बनने और इससे खड़ी हुई पानी की समस्या से रूबरू कराते हुए बिना सरकारी मदद के खुद से बंगलूरू में चार नई झीलों के निर्माण की अपनी उपलब्धि को बेहद रोचक अंदाज में बताया।
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लेक रिवाइवर आनंद मलिगावद ने कहा कि एक वक्त था जब हम मेहनत करके कुएं और झील से पानी लाकर पीते थे। तब हम सोच-समझकर जरूरत के हिसाब से पानी का इस्तेमाल करते थे लेकिन धीरे-धीरे झीलें गंदी हो गईं और कुएं सुख गए। इसके बाद बोरिंग कर हमने जमीन से पानी निकालना शुरू किया।
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आसानी से पानी मिलने लगा तो हमने उसका दोहन शुरू कर दिया, लिहाजा भूमि का जलस्तर लगातार गिरता गया। अब हालात यह हैं कि बोतलबंद पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है। एक समय था जब बंगलूरू में करीब एक हजार झीलें होती थीं और बंगलूरू को लेक सिटी कहा जाता था लेकिन अब सिर्फ 81 बची हैं और उनकी भी हालत बदतर है। बंगलूरू में अब डेढ़ हजार फीट में जाकर पानी मिलता है।

मलिगावद ने बताया कि वह एक गांव से हैं। उनका बचपन झील के पास बीता है। इसलिए उन्हें झील से प्यार था। पढ़ाई कर वह इंजीनियर बने और एक मल्टीनेशनल कंपनी सनसेरा इंजीनियरिंग लिमिटेड में काम करने लगे। इसी बीच जब उन्होंने झीलों की बदहाली देखी तो तय कर लिया कि झीलों के लिए कुछ करेंगे। इसके लिए उन्होंने पुरानी झीलों को साफ करने की जगह नई झीलें बनाने का बीड़ा उठाया। इसके बाद एक के बाद एक चार झीलें बना डालीं। वह भी बेहद कम लागत और समय में। सबसे पहले 36 एकड़ में क्यालसनहल्ली लेक तैयार की।

इसके बाद वाबसंद्रा लेक, कोनसंद्रा लेक, गवी लेक बनाईं। उन्होंने बताया कि झील निर्माण में उन्होंने प्रकृति को समझा और उसके मुताबिक ही झील तैयार की। मसलन, उन्होंने जो मिट्टी निकाली, उससे झील के बीच में आईलैंड तैयार किए। उन आईलैंड में पौधे लगाए। झील में सांप, मछली आदि डाले, जिससे झील का पानी साफ रहे। उसके साथ ही 15 किस्म के फलों के पौधे लगाए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक के मंत्री तक को उन्होंने उसी झील का पानी पिलाया और उन्होंने गांरटी ली कि उनको कुछ नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि वह तो एक गांव वाले हैं और जो स्थिति देखी है उससे ऐसा लगता है कि एक समय ऐसा आने वाला है कि पानी खत्म हो जाएगा। इसी वजह से उनका टारगेट है कि 45 दिन में लेक को रिवाइव करेंगे। उन्होंने बताया कि उनका टारगेट रहता है कि दो माह के भीतर एक लेक को रिवाइव करें।

सुखना का पानी बहुत साफ, यह आपकी जिम्मेदारी है कि इसे ऐसे ही रखें

आनंद ने कहा कि वह चंडीगढ़ आए तो उन्हें काफी अच्छा लगा। यहां की हरियाली कमाल की है लेकिन जिस तरह से इस शहर में कारों की संख्या बढ़ रही है, एक दिन यह शहर भी बंगलूरू बन सकता है। ऐसे में यह इस शहर के लोगों की जिम्मेदारी है कि वह यहां की हरियाली और प्रकृति के उपहारों को सुरक्षित रखें।

उन्होंने कहा कि सुखना लेक भी उन्होंने देखा। सुखना का पानी बहुत साफ है। यह देख उन्हें बेहद खुशी हुई। जरूरत है सुखना को ऐसे ही बचाए रखने की। उन्होंने चंडीगढ़ में मौजूद साइकिल ट्रैक की भी सराहना की। कहा कि देश का यह एकमात्र शहर है जहां साइकिल ट्रैक है। लोगों को इसका लाभ उठाना चाहिए। साइकिल चलाइए और स्वस्थ्य रहिए।

तो टैबलेट खाएंगे आप भी
आनंद ने पानी की समस्या पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जिस प्रकार से पानी की किल्लत हो रही है, समय ज्यादा दूर नहीं जब लोग सुबह एक टेबलेट खा लेंगे और दिन भर पानी पीने से मुक्ति मिल जाएगी। खाने के लिए टेबलेट, पीने के लिए टेबलेट और सोने के लिए टेबलेट। जब टेबलेट ही लेना है तो जी कर क्या करेंगे।
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