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अमर उजाला के कार्यक्रम में सोनम वांगचुक बोले- पढ़ने पढ़ाने का तरीका बदलो, 'नजरिया' बदल जाएगा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: खुशबू गोयल
Updated Wed, 18 Sep 2019 09:51 AM IST
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सोनम वांगचुक
- फोटो : अमर उजाला
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पीजीआई चंडीगढ़ के भार्गव ऑडिटोरियम में आयोजित अमर उजाला के कार्यक्रम नजरिया में नवाचारी शिक्षक और नवोन्मेषक सोनम वांगचुक ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति फेल है या हमारे बच्चे। मेरे सामने यह बड़ा सवाल था। क्योंकि लद्दाख में एक वक्त ऐसा था जब 100 में से केवल 5 बच्चे पास होते थे। मैंने पाया कि बच्चों में कोई कमी नहीं थी। कमी थी हमारी शिक्षा प्रणाली में। लद्दाख के बच्चों को उस भाषा, उस प्रणाली में शिक्षा दी जा रही थी, जो उनकी म्रातृभाषा नहीं थी।
उन्होंने कहा कि लद्दाखी छोड़कर उन्हें उर्दू और इंग्लिश में पढ़ने को मजबूर किया जा रहा था। मैंने इस पर काम किया। सरकार के साथ मिलकर पाठ्यक्रम में बदलाव कराया। नतीजा सबके सामने है। आज लद्दाख में 100 में से 70 बच्चे पास होते हैं। उन्होंने अपनी कहनी बताते हुए कहा कि वह भी पढ़ाई में बेहद कमजोर थे। ऐसे में टीचर अक्सर क्लास के बाहर खड़ा कर देते थे लेकिन आज मैं यह कह सकता हूं कि उस क्लास में मैं ही आउट स्टैंडिंग स्टूडेंट था। वांगचुक ने कहा कि शिक्षक के बगैर कुछ नहीं सीखा जा सकता।
उन्होंने कहा कि ज्यादातर देशों की पढ़ाई उनकी अपनी भाषा में होती है पर अपने देश में ऐसा नहीं है। लद्दाख के स्टूडेंट्स को यदि उर्दू में समझाएंगे तो उनको क्या समझ में आएगा। उन्होंने कहा कि उनकी रुचि प्रकाश में थी तो इंजीनियरिंग कालेज में पहुंच गए। उन्होंने कहा कि अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। वहीं से उनको काफी कुछ समझ में आया कि ज्यादातर बच्चों की समस्या है भाषा। उनको जब अध्यापक की भाषा तक समझ नहीं आएगी और रोचक ढंग से पढ़ाई नहीं होगी तो वह कैसे समझेंगे।
उन्होंने कहा कि केवल रट्टा मारने से हम रट्टू तोता ही बनेंगे योग्य नहीं। इसलिए प्रैक्टिकल नॉलेज बेहद जरूरी है। इसी को देखते हुए उन्होंने लद्दाख में स्कूल खोला, जिसमें केवल फेल होने वालों को एडमिशन मिलता है। इस स्कूल को बच्चों ने ही अपनी रुचि से बनाया और संचालन भी खुद वही करते हैं। उन्होंने बताया कि इस स्कूल की सबसे बड़ी सजा है एक या दो दिन की छुट्टी।
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उन्होंने कहा कि लद्दाखी छोड़कर उन्हें उर्दू और इंग्लिश में पढ़ने को मजबूर किया जा रहा था। मैंने इस पर काम किया। सरकार के साथ मिलकर पाठ्यक्रम में बदलाव कराया। नतीजा सबके सामने है। आज लद्दाख में 100 में से 70 बच्चे पास होते हैं। उन्होंने अपनी कहनी बताते हुए कहा कि वह भी पढ़ाई में बेहद कमजोर थे। ऐसे में टीचर अक्सर क्लास के बाहर खड़ा कर देते थे लेकिन आज मैं यह कह सकता हूं कि उस क्लास में मैं ही आउट स्टैंडिंग स्टूडेंट था। वांगचुक ने कहा कि शिक्षक के बगैर कुछ नहीं सीखा जा सकता।
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उन्होंने कहा कि ज्यादातर देशों की पढ़ाई उनकी अपनी भाषा में होती है पर अपने देश में ऐसा नहीं है। लद्दाख के स्टूडेंट्स को यदि उर्दू में समझाएंगे तो उनको क्या समझ में आएगा। उन्होंने कहा कि उनकी रुचि प्रकाश में थी तो इंजीनियरिंग कालेज में पहुंच गए। उन्होंने कहा कि अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। वहीं से उनको काफी कुछ समझ में आया कि ज्यादातर बच्चों की समस्या है भाषा। उनको जब अध्यापक की भाषा तक समझ नहीं आएगी और रोचक ढंग से पढ़ाई नहीं होगी तो वह कैसे समझेंगे।
उन्होंने कहा कि केवल रट्टा मारने से हम रट्टू तोता ही बनेंगे योग्य नहीं। इसलिए प्रैक्टिकल नॉलेज बेहद जरूरी है। इसी को देखते हुए उन्होंने लद्दाख में स्कूल खोला, जिसमें केवल फेल होने वालों को एडमिशन मिलता है। इस स्कूल को बच्चों ने ही अपनी रुचि से बनाया और संचालन भी खुद वही करते हैं। उन्होंने बताया कि इस स्कूल की सबसे बड़ी सजा है एक या दो दिन की छुट्टी।
शिक्षा नहीं यह तो नकल है
सोनम वांगचुक ने कहा कि वास्तव में जो शिक्षा लद्दाख में दी जा रही थी तो उसके बारे में पता किया तो पता चला कि वह कश्मीर का कापी पेस्ट है। कश्मीर की शिक्षा पता की तो पता चला कि यह नई दिल्ली से आई है, नई दिल्ली की पता किया तो पता चला कि यह तो लंदन की कापी है और कमाल की बात यह है कि लंदन में भी जो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, वह उनकी नहीं है।
सालों पुराने ढर्रे पर एक ही नीति से दी जा रही शिक्षा हमें कामयाब नहीं बना सकती। सोनम वांगचुक ने कहा कि वास्तव में अब एजूकेशन नीति को बदलने की आवश्यकता है और शिक्षकों की ट्रेनिंग भी आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा तो एकदम प्रेक्टिकल होनी चाहिए। जिसमें बच्चे सीधे हर बात को समझ लें। जैसे बिल्ली अपने बच्चों को शिकार करने की ट्रेनिंग देती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने नौ भाषाएं सीख ली हैं।
सालों पुराने ढर्रे पर एक ही नीति से दी जा रही शिक्षा हमें कामयाब नहीं बना सकती। सोनम वांगचुक ने कहा कि वास्तव में अब एजूकेशन नीति को बदलने की आवश्यकता है और शिक्षकों की ट्रेनिंग भी आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा तो एकदम प्रेक्टिकल होनी चाहिए। जिसमें बच्चे सीधे हर बात को समझ लें। जैसे बिल्ली अपने बच्चों को शिकार करने की ट्रेनिंग देती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने नौ भाषाएं सीख ली हैं।