जिस प्रकार हमें जीवित रहने के लिए भोजन की जरूरत होती है, उसी प्रकार पेड़ पौधों को भी जीवित रहने के लिए खाने की आवश्यकता होता है। ऐसे में पौधे अपना खाना सूरज की रोशनी में अपने आप बनाते हैं, जिससे उन्हें एनर्जी मिलती है। इसका सीधा मतलब ये है कि इंसानों के साथ-साथ पेड़- पौधों का जीवन भी सूर्य की रोशनी पर बहुत निर्भर करता है। शरीर की समस्त ऊर्जा के स्रोतों का मूल स्रोत सूर्य की रोशनी ही होती है। दुनिया भर का खाद्यान, पौधों के प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) प्रक्रिया पर निर्भर होता है। लेकिन दुनिया में ऐसे कई शोध किए जा रहे हैं, जिससे कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण के जरिए पौधों पर निर्भरता को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। नए अध्ययन में संश्लेषण प्रक्रिया में प्रकाश पर निर्भरता को भी खत्म करने की बात कही जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण से पृथ्वी पर भोजन के उत्पादन को ऊर्जा के लिहाज से और भी अधिक कारगर बनाया जा सकेगा।
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अब रात में खाना बना सकेंगे पेड़-पौधे, खत्म हो जाएगी सूर्य की रोशनी पर सीधी निर्भरता
फीचर डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Fri, 01 Jul 2022 05:45 PM IST
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सूर्य की रोशनी पर निर्भरता हो जाएगी खत्म
- फोटो : istock

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सूर्य की रोशनी पर निर्भरता हो जाएगी खत्म
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ये भी कहा जा रहा है कि ये तकनीक भविष्य में मंगल ग्रह पर भी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। करोड़ों सालों से सामान्य प्रकाश संश्लेषण पौधों में पानी और कार्बन डाइऑक्साइड को सूर्य की रौशनी की मदद से पौधों के जैविकभार (Biomass) और खाद्य में बदलते आ रहे हैं। लेकिन यह प्रक्रिया सूर्य से आने वाली रोशनी की केवल एक प्रतिशत ही पौधों में पहुंच पाती है। ऐसे में ये बहुत ही कारगर है।
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सूर्य की रोशनी पर निर्भरता हो जाएगी खत्म
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रिवरसाइड की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावारे के शोधकर्ताओं द्वारा सूरज की रोशनी से मुक्त कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण की एक ऐसी पद्धति विकसित की गई है, जो जैविक प्रकाश संश्लेषण की बजाए खाद्य पदार्थ (Food) तैयार कर सकती है।

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शोधकर्ताओं की माने तो इस नई पद्धति से जैविक प्रकाश संश्लेषण की सीमाओं को तोड़ा जा सकता है। इसी क्रम में कार्बन डाइऑक्साइड से कच्चे पदार्थों को उपयोगी अणुओं व उत्पादों में बदलने वाले उपकरण, जिन्हें इलेक्ट्रोलाइजर (Electrolyser) कहा जात है, की अनुकूलनता बढ़ाई गई है।
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कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण के इस तंत्र पर हुए शोध से सामने आया कि इससे बहुत विविध प्रकार के भोजन उत्पादक जीवों को अंधेरे में भी विकसित किया जा सकता है, जैसे हरी काई (Green Algae), खमीर, मशरूम आदि। खास बात ये है कि इसमें ऊर्जा के लिहाज से शैवाल का उत्पादन पुराने प्रकाश संश्लेषण की तुलना में कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण चार गुना अधिक कारगर पाया गया है। जबकि खमीर मक्के से निकली शक्कर से निकाले जाने की तुलना में 18 गुना ज्यादा कारगर पाया गया है।