चंदन रॉय सान्याल उन गिने चुने बंगाली मूल के अभिनेताओं में से हैं जिनका बचपन दिल्ली में बीता है। वह कहते भी हैं कि भद्रलोक में बच्चों से सरकारी नौकरी की ही उम्मीद की जाती है लेकिन बजाय आईआईटी की तैयारी करने के वह नाटकों की ओर कॉलेज के दिनों में ही आकर्षित हो गए। इसे लेकर उन्हें काफी संघर्ष भी करना पड़ा। सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई फिल्म ‘सनक’ में अपने किरदार को लेकर अभिनेता चंदन रॉय सान्याल इन दिनों चर्चा में हैं। पिछले डेढ़ दशक में उन्होंने खुद को तपाया है और उनका मानना है कि उनका असली समय अब शुरू हो रहा है। ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने चंदन से उनकी अब तक की अभिनय यात्रा पर लंबी बातचीत की।
Sunday Interview: हुआ जब पहली बार ऐश्वर्या राय से आमना सामना, अभिनेता चंदन रॉय सान्याल का खुलासा
इन दिनों चंदन की खुशबू खूब फैल रही है, कितना संतुष्ट हैं अपनी अब तक की कोशिशों से?
अभी जब मैं वेब सीरीज ‘आश्रम’ का अगला सीजन शूट कर रहा था प्रकाश झा के साथ तो मुझे इस बात का एहसास हुआ। मैंने उनको गले लगा लिया और कहा कि आपने जो मुझे रोल दिया है ये भोपा स्वामी का, ये मेरे करियर का सबसे बड़ा रोल रहा है। मुझे लगता है कि आज तक जितने भी मैंने किरदार किए हैं, वह अभी तक वार्मअप ही चल रहा था। मेरे हिस्से अब तक ऐसे ही रोल आए हैं जो कई बार फिल्म के संपादन में छोटे हो गए तो कई बार फिल्में बनीं लेकिन रिलीज नहीं हो पाईं। ऐसी सूरत में अपने लिए एक जगह बना पाना बहुत मुश्किल रहा है।
यही भी दिलचस्प संयोग है कि निर्देशक प्रकाश झा इन दिनों अभिनय में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं और आप अभिनेता के तौर पर नाम जमाने के बाद निर्देशन की तरफ जाते दिख रहे हैं..?
हां, बिल्कुल, बिल्कुल। वह भी एक बहुत ही रोचक दौर से गुजर रहे हैं। अभिनय कर रहे हैं। मुझे तो अभिनय का शौक है ही। मुझे फिल्म बनाने का शौक भी है। तो मैंने सोचा कि कैमरे से बातें करने के बाद थोड़ा स्टोरीटेलिंग भी कर लें। मैंने शॉर्ट फिल्में बनाई हैं। तीन चार फिल्में बनाई हैं। ऐसा इसलिए कि जब भी मैं फीचर फिल्म बनाऊं तो कुछ ठीक से बना सकूं।
कलाकार आमतौर पर किसी फिल्म को साइन करते समय अपना किरदार ही देखते हैं लेकिन एक फिल्म की कामयाबी में अपने साथी कलाकारों का कितना योगदान मानते हैं आप?
अगर जोकर नहीं होगा ‘डार्क नाइट’ जैसी कहानी में तो बैट्समैन भी बैट्समैन नहीं बन पाएगा तो जोकर चाहिए एक सामने। लोग सोचते हैं कि मेरा रोल कितना बड़ा है। लेकिन, आप पुरानी फिल्म कोई भी उठाकर देख लें तो उसमें कलाकारों का जो इंद्रधनुष होता है वह अद्भुत है। उसमें संजीव कुमार भी हैं और मौसमी चटर्जी भी हैं लेकिन फिर उसमें देवेन वर्मा भी हैं। दीप्ति नवल भी दिखती हैं। यूनुस परवेज भी थोड़ा खेलकर जाते हैं। ऐसे लोग अपना थोड़ा थोड़ा देकर जाते हैं तो ये चीज बीच में थोड़ा विलुप्त हो गई है।
संजीव कुमार का हिंदी सिनेमा में एक अलग ही स्थान रहा है, मुझे लगता है कि आप उसी स्थान की तरफ पहुंचने की कोशिश में हैं?
आप इन सब चीजों को देखते-परखते हैं तो आप कह सकते हैं। मैं कहूंगा तो छोटा मुंह, बड़ी बात होगी। संजीव कमार मेरे बहुत पसंदीदा अभिनेता रहे हैं। सबसे पहले मुझे गुरुदत्त बहुत पसंद थे। फिर संजीव कुमार और उसके बाद के दौर में इरफान खान। ऐसा लगता है कि जैसे इन तीनों से मेरा कोई निजी नाता रहा है। संजीव कुमार की अदाकारी का एक अलग ही विस्तार है। उनका खुद पर भरोसा इतना था कि वह कहीं भी खड़े रहकर भी कुछ करके दिखा सकते थे। सत्यजीत रे के साथ वह ‘शतरंज के खिलाड़ी’ कर रहे थे और रमेश सिप्पी के साथ कमर्शियल फिल्म भी वह कर रहे थे। जैसा उनका अभिनय विस्तार रहा है, वैसा मैं भी करना चाहूंगा हालांकि मुझे अभी वैसे किरदार मिले नहीं हैं।