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Sameer Anjaan: 30-40 गाने सुनने के बाद संगीतकार ने फेंक दी डायरी, उषा खन्ना ने इस गाने से दिया पहला ब्रेक

Virendra Mishra वीरेंद्र मिश्र
Updated Sat, 25 Feb 2023 11:48 AM IST
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Sameer Anjaan Exclusive Interview with Amar Ujala Bollywood news in Hindi Anand Milind Aamir Khan First break
सीएम योगी आदित्यनाथ, समीर - फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई

बनारस के शीतला पांडे को आप जानते हैं? नहीं जानते? लालजी पांडे को तो जानते होंगे। इनको भी नहीं जानते तो खैर कोई बात नहीं। जानेंगे भी कैसे, दोनों ने अपने असली नाम से लोगों को कम ही सलाम किया। उनके दुनिया तक जो गीतों के जरिये पैगाम पहुंचे, वे पहुंचा दोनों के फिल्मी नामों के माध्यम से। जी हां, लालजी पांडे यानी अनजान जिनका हिंदी सिनेमा के चोटी के गीतकारों में नाम रहा है और शीतला पांडे यानी समीर जिन्होंने अपने चार दशक के करियर में इतने गाने लिख डाले कि उनकी नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है। अपने जन्मदिन पर उन्होंने ‘अमर उजाला’ से इस खास मुलाकात के लिए कुछ समय निकाला और अपने बनारस से मुंबई आने, मुंबई में बार बार बेइज्जत होने और फिर इसी मुंबई शहर का एक सफल गीतकार बनकर दिखाने की जो दास्तां सुनाई, वह भावुक कर देने वाली है। आप भी पढ़िए..

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समीर - फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई

समीर जी, पहली बार कब लगा कि आपकी रुचि काव्य में हो रही है?
मैं छठवीं या सातवीं कक्षा में आया तो कुछ कुछ लिखकर दोस्तों को सुनाता रहता। वे तारीफ करते तो मेरा भी हौसला बनता। स्कूल खत्म करके कॉलेज में आया तो वहां पहली बार हमारी मंडली बनी। फिर, हमने एक संस्था बना ली और शनिवार, रविवार को छुट्टी में गोष्ठियां करनी शुरू की। इसके बाद कवि सम्मेलनों, मुशायरों की बारी आई। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी मौका मिलने लगा।

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समीर - फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई

मतलब, गीतकार बनने की राह आपने कॉलेज के दिनों में ही पकड़ ली?
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मैंने बीकॉम किया है। पिताजी की मंशा थी कि मैं कुछ भी बनूं लेकिन गीतकार न बनूं। शायद इसलिए उन्होंने मुझे साहित्य न पढ़ाकर कॉमर्स पढ़ाया। बीकॉम के बाद मैंने एम कॉम किया। दादा शिवनाथ प्रसाद जी बैंक में नौकरी करते थे और रामलीला के बहुत बड़े कलाकार थे। रामायण का ऐसा कोई पात्र नहीं जिसे उन्होंने न निभाया हो। कला हमारे परिवार की रगों में हैं। हमारे परदादा राजाराम शास्त्री बहुत बड़े ज्ञाता थे। महाराजा बनारस ने उनके शास्त्र ज्ञान से खुश होकर उन्हें 52 बीघा जमीन दान दी तो हमारे पुरखे गोरखपुर छोड़कर वाराणसी आ गए थे।

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समीर अपने पिता अनजान के साथ - फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई

जब पिताजी आपके गीतकार बनने के खिलाफ थे तो आप मुंबई कैसे आ गए?
पहले तो मैं बता दूं कि मेरे पिताजी भी मुंबई आना नहीं चाहते थे। लेकिन, वह बीमार पड़े तो बताया गया कि समंदर किनारे की हवा उनकी संजीवनी बन सकती है। इधर, एमकॉम करने के बाद दादाजी की प्रतिष्ठा के चलते मुझे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी मिल गई। कहां मैं मुशायरों और कवि सम्मेलनों में मिलने वाली तालियों से प्राणवायु पाने वाला और कहां ये बैंक की नौकरी? बस, दो दिन में ही बैंक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। मां से 500 रुपये लेकर काशी एक्सप्रेस में बैठा और 6 अप्रैल 1980 को मुंबई की धरती को प्रणाम करने यहां आ गया।

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समीर - फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई

और, सीधे अपने पिताजी से मिलने गए होंगे? 
नहीं, पिताजी से मिलने की हिम्मत ही नहीं थी। उनको तो मेरे गीतकार बनने पर ही एतराज था। मैं मलाड पश्चिम में मालवनी की एक चाल में रहने लगा। उन दिनों की यादें मुझे अब भी अंदर तक सिहरा देती हैं। अच्छे घर परिवार में पला बढ़ा। कभी किसी चीज की तकलीफ नहीं। यहां न खाना ठीक से मिल रहा था और न रहने को। यकीन करेंगे आप कि मैंने इस शहर में सुबह सुबह हाथ में डिब्बा लेकर शौच के लिए भी लाइन लगाई है।

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