मैं अमर उजाला हूं... 75 साल पूरे करके 76वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। जी हां, उम्र के लिहाज से मेरा अमृत महोत्सव है। मैं आगरा में आपके बीच ही जन्मा हूं। इस मौके पर अपने सफर पर नजर डालने का मौका भी है और दस्तूर भी। इस समय कई दृश्य मेरी आंखों के सामने आ रहे हैं। अपने बचपन से अब तक मैंने अपने प्रिय शहर आगरा को बदलते देखा है। इस दौरान मुझ में भी परिवक्वता आई। इसमें आगरा का बड़ा योगदान है। शहर ने और यहां के लोगों ने मुझे सहारा दिया, इसी मोहब्बत के चलते मैं आगरा की आवाज बनता रहा। यह बात मुझे गर्व की अनुभूति देती है कि मैं विश्व के अजूबे ताजमहल के शहर का हमसफर हूं। शहर का हर नागरिक मेरा हमराही है। 75 वर्षों में हर दिन मेरे लिए नया दिन रहा। हर दिन नई सुर्खियां बनी। यह बात मैं बड़े विश्वास के साथ कहूंगा कि सभी सुर्खियां शहर के नागरिकों यानी मेरे पाठकों के हक में थीं। मेरा जन्म की कहानी भी बड़ी खबर के मानिंद है।
1948 का वह दौर जब देश आजादी हासिल करने के बाद विभाजन की पीड़ा से जूझ रहा था। आगरा अवध संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश बनने की राह पर था तो आगरा अपने भविष्य की आशंकाओं में डूब उतर रहा था। ऐसे विकट हालात में दो दोस्त भी अपने शहर के हक हुकूक को लेकर उधेड़बुन में थे। शाम के एक अखबार में काम करते थे, लेकिन वहां बात नहीं बन पा रही थी कि अपने शहर की आवाज आजादी से उठा पाते। दोनों ने सपना पाला कि शहर की आवाज बुलंद करने के लिए अखबार निकालेंगे। कई महीनों बाद संकल्प साकार हुआ और मैं आपके सामने आया।
1948 का वह दौर जब देश आजादी हासिल करने के बाद विभाजन की पीड़ा से जूझ रहा था। आगरा अवध संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश बनने की राह पर था तो आगरा अपने भविष्य की आशंकाओं में डूब उतर रहा था। ऐसे विकट हालात में दो दोस्त भी अपने शहर के हक हुकूक को लेकर उधेड़बुन में थे। शाम के एक अखबार में काम करते थे, लेकिन वहां बात नहीं बन पा रही थी कि अपने शहर की आवाज आजादी से उठा पाते। दोनों ने सपना पाला कि शहर की आवाज बुलंद करने के लिए अखबार निकालेंगे। कई महीनों बाद संकल्प साकार हुआ और मैं आपके सामने आया।