अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई है। इसमें भारत के छह जवान घायल बताए जा रहे हैं, जबकि चीन के 19 से ज्यादा सैनिकों को गंभीर चोटें लगी हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, कई चीनी सैनिकों के हाथ और पैर की हड्डियां टूटी हैं। कइयों के सिर फट गए हैं। ये घटना नौ दिसंबर की है।
अब इसको लेकर देश में सियासत गर्म होने लगी है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनों सदनों में घटना की पूरी जानकारी दी और मौजूदा स्थिति के बारे में भी बताया। भारत और चीन के बीच सीमा का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। 1962 में दोनों देशों के बीच एक बड़ा युद्ध भी हुआ। इसके बाद युद्ध तो नहीं, लेकिन कई बार दोनों देशों के जवान आमने-सामने आ चुके हैं।
आज हम आपको बताएंगे कि 1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन के जवानों के बीच कब-कब झड़प हुई और उसमें क्या-क्या हुआ? इस बार तवांग में क्या हुआ? रक्षामंत्री ने क्या कहा? आइए जानते हैं...
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India-China Clash: 1962 के बाद कब-कब भारत और चीन के बीच सीमा पर हुई झड़प, जानें अब तक क्या-क्या हुआ?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Tue, 13 Dec 2022 05:04 PM IST
सार
1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन के जवानों के बीच कब-कब झड़प हुई और उसमें क्या-क्या हुआ? इस बार तवांग में क्या हुआ? रक्षामंत्री ने क्या कहा? आइए जानते हैं...
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भारत-चीन सीमा विवाद
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भारत और चीन की सेना
- फोटो : Indian Army
पहले जानिए नौ दिसंबर को क्या-क्या हुआ?
रिपोर्ट्स के मुताबिक नौ दिसंबर को 300 से ज्यादा चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश में तवांग के यंगस्टे में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर भारतीय सीमा में घुसपैठ करने लगे। यहां भारतीय पोस्ट को हटाने के लिए चीनी सैनिक कंटीले लाठी डंडे और इलेक्ट्रिक बैटन लेकर आए थे। भारतीय सेना भी चीनी सैनिकों का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से मुस्तैद थी। जैसे ही चीनी सैनिकों ने हमला किया, भारतीय जवानों ने भी जोरदार जवाब देना शुरू कर दिया। उस वक्त भारतीय पोस्ट पर 50 सैनिक ही थे, लेकिन सभी ने कंटीले लाठी-डंडों से चीनी सैनिकों को जवाब दिया। इसमें चीन के 19 से ज्यादा सैनिक बुरी तरह से घायल हो गए। कुछ की हड्डियां टूटी, तो कुछ के सिर फट गए।
जवाबी हमले के बाद भारतीय अफसरों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और चीनी सैनिक अपनी लोकेशन पर वापस चले गए। 11 दिसंबर को दोनों देशों के लोकल कमांडर ने शांति व्यवस्था बहाल करने के लिए फ्लैग मीटिंग की और घटना के बारे में चर्चा की। दोनों देशों ने सीमा पर शांति व्यवस्था कायम रखने पर सहमति दी। भारत ने कूटनीतिक तौर पर भी इस मुद्दे को चीन के सामने उठाया है।
15 जून 2020 को लद्दाख के गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि चीन के 38 सैनिक मारे गए थे। हालांकि, चीन ने केवल चार सैनिक मारे जाने की बात ही कबूली थी। गलवान के बाद ये दूसरी बड़ी झड़प है। तवांग सेक्टर की बात करें तो इससे पहले यहां 1975 में भी विवाद हो चुका है। तब भी दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इसमें चार भारतीय जवान शहीद हुए थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक नौ दिसंबर को 300 से ज्यादा चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश में तवांग के यंगस्टे में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर भारतीय सीमा में घुसपैठ करने लगे। यहां भारतीय पोस्ट को हटाने के लिए चीनी सैनिक कंटीले लाठी डंडे और इलेक्ट्रिक बैटन लेकर आए थे। भारतीय सेना भी चीनी सैनिकों का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से मुस्तैद थी। जैसे ही चीनी सैनिकों ने हमला किया, भारतीय जवानों ने भी जोरदार जवाब देना शुरू कर दिया। उस वक्त भारतीय पोस्ट पर 50 सैनिक ही थे, लेकिन सभी ने कंटीले लाठी-डंडों से चीनी सैनिकों को जवाब दिया। इसमें चीन के 19 से ज्यादा सैनिक बुरी तरह से घायल हो गए। कुछ की हड्डियां टूटी, तो कुछ के सिर फट गए।
जवाबी हमले के बाद भारतीय अफसरों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और चीनी सैनिक अपनी लोकेशन पर वापस चले गए। 11 दिसंबर को दोनों देशों के लोकल कमांडर ने शांति व्यवस्था बहाल करने के लिए फ्लैग मीटिंग की और घटना के बारे में चर्चा की। दोनों देशों ने सीमा पर शांति व्यवस्था कायम रखने पर सहमति दी। भारत ने कूटनीतिक तौर पर भी इस मुद्दे को चीन के सामने उठाया है।
15 जून 2020 को लद्दाख के गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि चीन के 38 सैनिक मारे गए थे। हालांकि, चीन ने केवल चार सैनिक मारे जाने की बात ही कबूली थी। गलवान के बाद ये दूसरी बड़ी झड़प है। तवांग सेक्टर की बात करें तो इससे पहले यहां 1975 में भी विवाद हो चुका है। तब भी दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इसमें चार भारतीय जवान शहीद हुए थे।
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चीन से झड़प के मुद्दे पर राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दिया जवाब
- फोटो : Amar Ujala
रक्षा मंत्री ने क्या कहा?
भारत और चीनी सेना के बीच हुई झड़प के मुद्दे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज लोकसभा और राज्यसभा में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि नौ दिसंबर 2022 को PLA गुट (चीनी सेना) ने तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में, LAC पर अतिक्रमण कर यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास किया। चीन के इस प्रयास का हमारी सेना ने दृढ़ता के साथ सामना किया। इस झड़प में दोनों तरफ से हाथापाई भी हुई। भारतीय सेना ने बहादुरी दिखाते हुए चीन के सैनिकों को अतिक्रमण करने से रोका और वापस लौटने पर मजबूर किया। कुछ ही देर में हमारे सैनिकों ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया। इस दौरान हमारे किसी भी सैनिक की न तो मृत्यु हुई है, न ही कोई गंभीर रूप से घायल हुआ है।
अधिकारियों के दखल के बाद पीएलए सैनिक वापस लौट गए। 11 दिसंबर को भारत के स्थानीय सैन्य अधिकारी ने पीएलए के अधिकारी के साथ बैठक की और इस घटना पर चर्चा की। उन्हें सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कहा गया है। मैं इस सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारी सेनाएं भारत की अखंडता के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसके खिलाफ कोई भी प्रयास को रोकने के लिए तत्पर हैं। मुझे विश्वास है कि यह सदन भारत की सेना को समर्थन देगा और उसकी क्षमता और पराक्रम का अभिनंदन करेगा।
भारत और चीनी सेना के बीच हुई झड़प के मुद्दे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज लोकसभा और राज्यसभा में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि नौ दिसंबर 2022 को PLA गुट (चीनी सेना) ने तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में, LAC पर अतिक्रमण कर यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास किया। चीन के इस प्रयास का हमारी सेना ने दृढ़ता के साथ सामना किया। इस झड़प में दोनों तरफ से हाथापाई भी हुई। भारतीय सेना ने बहादुरी दिखाते हुए चीन के सैनिकों को अतिक्रमण करने से रोका और वापस लौटने पर मजबूर किया। कुछ ही देर में हमारे सैनिकों ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया। इस दौरान हमारे किसी भी सैनिक की न तो मृत्यु हुई है, न ही कोई गंभीर रूप से घायल हुआ है।
अधिकारियों के दखल के बाद पीएलए सैनिक वापस लौट गए। 11 दिसंबर को भारत के स्थानीय सैन्य अधिकारी ने पीएलए के अधिकारी के साथ बैठक की और इस घटना पर चर्चा की। उन्हें सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कहा गया है। मैं इस सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारी सेनाएं भारत की अखंडता के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसके खिलाफ कोई भी प्रयास को रोकने के लिए तत्पर हैं। मुझे विश्वास है कि यह सदन भारत की सेना को समर्थन देगा और उसकी क्षमता और पराक्रम का अभिनंदन करेगा।

भारत-चीन युद्ध
- फोटो : अमर उजाला
कब-कब भारत और चीन के बीच बॉर्डर पर हुई झड़प?
1962 : जब अचानक चीन ने भारत पर हमला कर दिया
यूं तो भारत-चीन के बीच विवाद काफी पुराना है, लेकिन 1959 में जब तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ तो ये मतभेद लड़ाई में तब्दील होने लगा। तिब्बती विद्रोह के बाद भारत ने तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा को शरण दी। इससे तमतमाए चीन ने बॉर्डर पर भारत के खिलाफ षडयंत्र करना शुरू कर दिया। बार-बार भारतीय सीमा में घुसपैठ करने लगा और जवानों के साथ मारपीट। 1962 में चीन ने अचानक भारत पर हमला कर दिया। भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था। इसके चलते युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, उस दौरान भी कई जगह ऐसी थी जहां भारतीय जवान चीनी सैनिकों पर भारी पड़ गए थे।
1962 : जब अचानक चीन ने भारत पर हमला कर दिया
यूं तो भारत-चीन के बीच विवाद काफी पुराना है, लेकिन 1959 में जब तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ तो ये मतभेद लड़ाई में तब्दील होने लगा। तिब्बती विद्रोह के बाद भारत ने तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा को शरण दी। इससे तमतमाए चीन ने बॉर्डर पर भारत के खिलाफ षडयंत्र करना शुरू कर दिया। बार-बार भारतीय सीमा में घुसपैठ करने लगा और जवानों के साथ मारपीट। 1962 में चीन ने अचानक भारत पर हमला कर दिया। भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था। इसके चलते युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, उस दौरान भी कई जगह ऐसी थी जहां भारतीय जवान चीनी सैनिकों पर भारी पड़ गए थे।
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1967 भारत-चीन युद्ध
- फोटो : अमर उजाला
1967 : भारतीय जवानों के आगे चीनी पड़े कमजोर
1962 भारत-चीन युद्ध के बाद भी समय-समय पर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति कायम रही। 1967 में ये तब बढ़ गया जब, तिब्बत-सिक्किम बॉर्डर पर नाथु ला से सेबू ला तक भारत ने कंटीले तार लगाकर बॉर्डर को रेखांकित करना शुरू किया। 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्ब्त-सिक्किम सीमा पर है। इससे गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। उस वक्त चीनी पीएलए ने भारतीय सीमा में घुसकर जवानों के साथ हाथापाई की। फिर अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। ये एक तरह का युद्ध था। भारत ने भी जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। कई दिन तक ये सिलसिला जारी रहा और भारत ने अपनी स्थिति बरकरार रखी। जब चीन समझ गया कि भारत को ऐसे हराना मुश्किल होगा तो बड़ी संख्या में चीनी सैनिक आगे बढ़ने लगे। नाथू ला के पास सिक्किम बॉर्डर के चो ला तक आ गए और भारत पर फायरिंग बढ़ा दी। भारतीय जवानों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया। इसमें भारत के 80 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।
1962 भारत-चीन युद्ध के बाद भी समय-समय पर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति कायम रही। 1967 में ये तब बढ़ गया जब, तिब्बत-सिक्किम बॉर्डर पर नाथु ला से सेबू ला तक भारत ने कंटीले तार लगाकर बॉर्डर को रेखांकित करना शुरू किया। 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्ब्त-सिक्किम सीमा पर है। इससे गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। उस वक्त चीनी पीएलए ने भारतीय सीमा में घुसकर जवानों के साथ हाथापाई की। फिर अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। ये एक तरह का युद्ध था। भारत ने भी जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। कई दिन तक ये सिलसिला जारी रहा और भारत ने अपनी स्थिति बरकरार रखी। जब चीन समझ गया कि भारत को ऐसे हराना मुश्किल होगा तो बड़ी संख्या में चीनी सैनिक आगे बढ़ने लगे। नाथू ला के पास सिक्किम बॉर्डर के चो ला तक आ गए और भारत पर फायरिंग बढ़ा दी। भारतीय जवानों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया। इसमें भारत के 80 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।