राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या के मामले में पाकिस्तान के दावत-ए-इस्लामी संगठन का नाम सामने आया है। दोनों हत्यारे इस संगठन से जुड़े थे। हत्यारा गौस मोहम्मद 2014 में पाकिस्तान गया था। तब वह 45 दिन तक वहां रहा। इस दौरान वह दावत-ए-इस्लामी के कराची स्थित दफ्तर भी गया था। इसके बाद 2018-19 में वह नेपाल और अरब देशों में गया था।
पुलिस के अनुसार गौस पाकिस्तान में कई लोगों के संपर्क में था और पिछले दो-तीन साल से वहां के 8-10 नंबरों पर अक्सर फोन करता था। ऐसे में अब सवाल उठता है कि आखिर ये दावत-ए-इस्लामी संगठन है क्या? इसकी शुरुआत कब हुई थी? इसका भारत और पाकिस्तान में कितना असर है? इसका काम क्या है? कन्हैयालाल की हत्या पर पाकिस्तान ने क्या कहा? आइए जानते हैं...
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Kanhaiya lal Murder : क्या है दावत-ए-इस्लामी जिससे जुड़े थे कन्हैयालाल के हत्यारे, जानें कितना खतरनाक है यह संगठन?
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Sat, 02 Jul 2022 01:40 PM IST
सार
राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या के मामले में पाकिस्तान के दावत-ए-इस्लामी संगठन का नाम सामने आया है। दोनों हत्यारे इस संगठन से जुड़े थे। हत्यारा गौस मोहम्मद 2014 में पाकिस्तान गया था। तब वह 45 दिन तक वहां रहा। इस दौरान वह दावत-ए-इस्लामी के कराची स्थित दफ्तर भी गया था।
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आतंकवादी गौस और रियाज
- फोटो : अमर उजाला

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दावत-ए-इस्लामी
- फोटो : अमर उजाला
अब जानिए दावत-ए-इस्लामी क्या है?
दावत-ए-इस्लामी एक सुन्नी इस्लामिक संगठन है। इसका गठन पाकिस्तान में 1981 में मोहम्मद इलियास अत्तार कादरी ने किया था। इसका मुख्यालय कराची में है। ये संगठन दुनिया के 194 देशों में फैला हुआ है। ये संगठन सुन्नी मुसलमानों के बरेलवी समुदाय से जुड़ा है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग भारत और पाकिस्तान में रहते हैं।
संगठन का दावा है कि वह विशुद्ध रूप से शैक्षिक, धर्म प्रचारक और परोपकारी संगठन है जो शांति का प्रचार करता है। दावत-ए-इस्लामी का दावा है कि उसने पाकिस्तान के 820 स्कूलों में 55 हजार से ज्यादा छात्रों को इस्लामी पाठ्यमक्रम दर्स-ए-निजामी की मुफ्त शिक्षा दी है। इसके अलावा देश के 3500 मदरसों में 1.75 लाख छात्रों को कुरान की शिक्षा दी है। संस्था के ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और दूसरे देशों में भी शाखाएं हैं।
भारत की बात करें तो यहां भई ये संगठन सक्रिया है। दिल्ली और मुंबई में इसके मुख्यालय हैं। सैयद आरिफ अली अत्तारी संगठन के विस्तार को लेकर देश में काम कर रहे हैं।
दावत-ए-इस्लामी एक सुन्नी इस्लामिक संगठन है। इसका गठन पाकिस्तान में 1981 में मोहम्मद इलियास अत्तार कादरी ने किया था। इसका मुख्यालय कराची में है। ये संगठन दुनिया के 194 देशों में फैला हुआ है। ये संगठन सुन्नी मुसलमानों के बरेलवी समुदाय से जुड़ा है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग भारत और पाकिस्तान में रहते हैं।
संगठन का दावा है कि वह विशुद्ध रूप से शैक्षिक, धर्म प्रचारक और परोपकारी संगठन है जो शांति का प्रचार करता है। दावत-ए-इस्लामी का दावा है कि उसने पाकिस्तान के 820 स्कूलों में 55 हजार से ज्यादा छात्रों को इस्लामी पाठ्यमक्रम दर्स-ए-निजामी की मुफ्त शिक्षा दी है। इसके अलावा देश के 3500 मदरसों में 1.75 लाख छात्रों को कुरान की शिक्षा दी है। संस्था के ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और दूसरे देशों में भी शाखाएं हैं।
भारत की बात करें तो यहां भई ये संगठन सक्रिया है। दिल्ली और मुंबई में इसके मुख्यालय हैं। सैयद आरिफ अली अत्तारी संगठन के विस्तार को लेकर देश में काम कर रहे हैं।
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राजस्थान पुलिस
- फोटो : अमर उजाला
भारत कैसे पहुंचा दावत-ए-इस्लामी?
पाकिस्तान से उलेमा का एक प्रतिनिधिमंडल साल 1989 में भारत आया था। इसके बाद से दावत-ए-इस्लामी संगठन को लेकर देश में चर्चा शुरू हुई और फिर इसकी शुरुआत भी हो गई। तभी से यह संगठन देश में लगातार अपना विस्तार कर रहा है।
पाकिस्तान से उलेमा का एक प्रतिनिधिमंडल साल 1989 में भारत आया था। इसके बाद से दावत-ए-इस्लामी संगठन को लेकर देश में चर्चा शुरू हुई और फिर इसकी शुरुआत भी हो गई। तभी से यह संगठन देश में लगातार अपना विस्तार कर रहा है।

आतंकवादी
- फोटो : अमर उजाला
भारत के लिए क्यों खतरनाक है?
यह बरेलवी समुदाय से ताल्लुक रखता है। बरेलवी समुदाय का इतिहास उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से जुड़ा है। हर साल बरेली में दरगाह-ए-आला हजरत के उर्स में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। पाकिस्तान से भी बड़ी संख्या में जायरीन आते हैं।
उत्तर प्रदेश में दो दशक तक तैनात रहे रिटायर्ड आईपीएस प्रभाकर सिंह कहते हैं, 'भारत में सबसे ज्यादा मुसलमान बरेलवी समुदाय से आते हैं। दावत-ए-इस्लामी का ताल्लुक बरेलवी समुदाय से है। ऐसे में अगर इस संगठन ने भारत के युवा मुसलमानों को भड़काया और उन्हें आतंकी ट्रेनिंग दी है तो इसकी जांच होनी चाहिए। इसके पूरे कनेक्शन को तोड़ना जरूरी है।'
बीबीसी ने कराची के पत्रकार जियाउर रहमान के हवाले से बताया है कि पिछले कुछ सालों में इस संगठन में कट्टरपंथ बढ़ा है। इससे जुड़े लोग पैगम्बर मोहम्मद से जुड़े मामलों में ज्यादा हिंसक हो जाते हैं। हालांकि, उदयपुर की घटना में नाम आने के बाद इस संगठन के मौलाना अपने संगठन का आतंकवाद से किसी भी तरह का जुड़ाव होने की बात खारिज कर रहे हैं।
यह बरेलवी समुदाय से ताल्लुक रखता है। बरेलवी समुदाय का इतिहास उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से जुड़ा है। हर साल बरेली में दरगाह-ए-आला हजरत के उर्स में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। पाकिस्तान से भी बड़ी संख्या में जायरीन आते हैं।
उत्तर प्रदेश में दो दशक तक तैनात रहे रिटायर्ड आईपीएस प्रभाकर सिंह कहते हैं, 'भारत में सबसे ज्यादा मुसलमान बरेलवी समुदाय से आते हैं। दावत-ए-इस्लामी का ताल्लुक बरेलवी समुदाय से है। ऐसे में अगर इस संगठन ने भारत के युवा मुसलमानों को भड़काया और उन्हें आतंकी ट्रेनिंग दी है तो इसकी जांच होनी चाहिए। इसके पूरे कनेक्शन को तोड़ना जरूरी है।'
बीबीसी ने कराची के पत्रकार जियाउर रहमान के हवाले से बताया है कि पिछले कुछ सालों में इस संगठन में कट्टरपंथ बढ़ा है। इससे जुड़े लोग पैगम्बर मोहम्मद से जुड़े मामलों में ज्यादा हिंसक हो जाते हैं। हालांकि, उदयपुर की घटना में नाम आने के बाद इस संगठन के मौलाना अपने संगठन का आतंकवाद से किसी भी तरह का जुड़ाव होने की बात खारिज कर रहे हैं।
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कादरी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर को मार डाला।
- फोटो : अमर उजाला
पंजाब के गवर्नर की हत्या में भी आया था नाम
बताया जाता है कि दावत-ए-इस्लामी से मुमताज कादरी जुड़ा था। मुमताज पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर का बॉडीगार्ड था। 2011 में मुमताज कादरी ने सलमान तासीर को सिर्फ इसलिए मार दिया कि उसे लगता था कि उसने पैगम्बर मोहम्मद का अपमान किया है।
इस मामले में कादरी को 2016 में फांसी दे दी गई थी। कादरी के लाखों समर्थक उसके जनाजे में शामिल हुए थे। ये सभी बरलेवी समुदाय से जुड़े थे। इसमें दावत-ए-इस्लामी संगठन के सदस्य भी शामिल हुए थे।
बताया जाता है कि दावत-ए-इस्लामी से मुमताज कादरी जुड़ा था। मुमताज पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर का बॉडीगार्ड था। 2011 में मुमताज कादरी ने सलमान तासीर को सिर्फ इसलिए मार दिया कि उसे लगता था कि उसने पैगम्बर मोहम्मद का अपमान किया है।
इस मामले में कादरी को 2016 में फांसी दे दी गई थी। कादरी के लाखों समर्थक उसके जनाजे में शामिल हुए थे। ये सभी बरलेवी समुदाय से जुड़े थे। इसमें दावत-ए-इस्लामी संगठन के सदस्य भी शामिल हुए थे।