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Arthritis: महिलाओं में क्यों ज्यादा होता है आर्थराइटिस का खतरा? इससे बचे रहने के लिए क्या उपाय करें

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Sun, 16 Feb 2025 03:41 PM IST
सार

हड्डियों से संबंधित समस्याएं आपके लिए कई प्रकार की जटिलताओं को बढ़ाने वाली हो सकती हैं। महिलाओं में आर्थराइटिस (गठिया) का खतरा पुरुषों की तुलना में अधिक होता है। इसके पीछे कई जैविक, हार्मोनल और जीवनशैली संबंधी कारण जिम्मेदार हो सकते हैं।

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महिलाओं में हड्डियों की समस्या - फोटो : Freepik.com

हड्डियों से संबंधित समस्याएं आपके लिए कई प्रकार की जटिलताओं को बढ़ाने वाली हो सकती हैं। हड्डियों की थोड़ी सी भी चोट या दिक्कत आपके लिए दैनिक जीवन के कामकाज को कठिन बनाने वाली हो सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, गड़बड़ होती लाइफस्टाइल ने कई प्रकार की समस्याओं को बढ़ा दिया है, आर्थराइटिस भी उनमें से एक है। आर्थराइटिस को गठिया भी कहा जाता है। इस समस्या के कारण जोड़ों में सूजन, दर्द, अकड़न की दिक्कत होने लगती है। यह शरीर के किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है, लेकिन हाथों, घुटनों, कूल्हों और पैरों में इसका जोखिम सबसे आम है।

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स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, वैसे तो आर्थराइटिस की दिक्कत किसी को भी हो सकती है। पुरुष हो या महिला या फिर बच्चे सभी इस समस्या का शिकार देखे जा रहे हैं। हालांकि कई रिपोर्ट्स बताते हैं कि महिलाओं में आर्थराइटिस (गठिया) का खतरा पुरुषों की तुलना में अधिक होता है। इसके पीछे कई जैविक, हार्मोनल और जीवनशैली संबंधी कारण जिम्मेदार हो सकते हैं।

डॉक्टर कहते हैं, सभी महिलाओं को कम उम्र से ही आर्थराइटिस से बचाव के लिए उपाय करना शुरू कर देना चाहिए।

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हड्डियों की समस्या - फोटो : Freepik.com

महिलाओं में आर्थराइटिस की दिक्कत

अब बड़ा सवाल ये है कि महिलाओं में आर्थराइटिस का खतरा अधिक क्यों होता है? 

इस बारे में स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि कई स्थितियां हैं जो आपमें गठिया की दिक्कतों को बढ़ाने वाली हो सकती हैं। आमतौर पर महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद ये समस्या बढ़ जाती है। रजोनिवृत्ति यानी कि मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी होने लगती है, ये हार्मोन हड्डियों को मजबूती बनाए रखने में मदद करता है। इस वजह से हड्डियां और जोड़ों की सेहत प्रभावित होने लगती है।

इसके अलावा कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं का इम्यून सिस्टम अधिक सक्रिय होता है, जिससे ऑटोइम्यून डिजीज (रूमेटॉइड आर्थराइटिस) होने की आशंका बढ़ जाती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के हड्डियों का घनत्व कम होता है, जिससे वे ऑस्टियोआर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

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हड्डियों की समस्या (आर्थराइटिस) - फोटो : Freepik.com

आर्थराइटिस के जोखिम कारकों के बारे में जानिए

डॉक्टर बताते हैं, महिलाओं में आर्थराइटिस के जोखिमों को बढ़ाने के लिए कई और कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के हड्डियों और जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है इसके अलावा कैल्शियम और विटामिन डी की कमी हड्डियों को कमजोर कर सकती है। हालांकि अच्छी बात ये है कि आप पहले से ही कुछ बातों का ध्यान रखकर आर्थराइटिस के जोखिमों को कम कर सकती हैं।

शारीरिक गतिविधि की कमी, वजन बढ़ना और अनुचित खानपान आपमें गठिया का जोखिम बढ़ाने वाला हो सकता है, इसलिए जरूरी है कि आप लाइफस्टाइल को ठीक रखें। 

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पौष्टिक चीजों का करिए सेवन - फोटो : Freepik.com

आर्थराइटिस से बचे रहने के लिए क्या करें?

  • खान-पान रखें ठीक: पौष्टिक आहार का सेवन जैसे  कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर चीजें दूध, दही, पनीर, हरी सब्जियां खाना आपके लिए फायदेमंद है। 
  • ओमेगा-3 फैटी एसिड (मछली, अखरोट, अलसी के बीज) और एंटी-इंफ्लेमेटरी फूड्स (हल्दी, लहसुन, अदरक) को भी आहार में शामिल करें। 
  • नियमित व्यायाम करें: हल्की स्ट्रेचिंग और योग जैसे अभ्यास फायदेमंद हैं। वॉकिंग, साइकिलिंग और तैराकी से जोड़ों को लचीला बनाए रखा जा सकता है।
  • अधिक वजन होने से भी घुटनों पर दबाव बढ़ जाता है, इसलिए वजन कम करें। 
  • हार्मोनल संतुलन बनाए रखने के लिए मेनोपॉज के बाद डॉक्टर से हड्डियों की सेहत को लेकर सलाह लें।
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डॉक्टर की लें सलाह (सांकेतिक तस्वीर) - फोटो : Freepik
  • लंबे समय तक एक ही स्थिति में न बैठें और भारी वजन उठाने से बचें।
  • अत्यधिक तनाव से सूजन बढ़ सकती है, जिससे आर्थराइटिस का खतरा बढ़ता है इसलिए स्ट्रेस मैनेजमेंट जरूरी है। 

अगर आपको कम उम्र से ही अक्सर घुटनों में दर्द-सूजन की दिकक्त बनी रहती है तो इस बारे में डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें। 



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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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