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Arthritis: लाइफस्टाइल और खानपान ही नहीं, शरीर की अपनी ‘गलती’ भी बढ़ा देती है आर्थराइटिस का खतरा

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Sun, 12 Oct 2025 08:20 PM IST
सार

  • रूमेटाइड आर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली गलती से अपने ही जोड़ों पर हमला करने लगती है। आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी रोगजनकों को पहचानकर उनपर हमला करती है।

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युवाओं में बढ़ती हड्डियों की समस्या - फोटो : Freepik.com

Arthritis: हड्डियों में दर्द-जोड़ों की दिक्कत अब बुढ़ापे की बात नहीं रही है, गड़बड़ दिनचर्या और खानपान की अस्वस्थ आदतों ने भी युवाओं में इसके खतरे को काफी बढ़ा दिया है। अगर आपको भी जोड़ों में अक्सर दर्द या जकड़ने की समस्या बनी रहती है तो समय रहते इसका इलाज करा लें, कहीं इस तरह के लक्षण आपके जीवन के लिए बड़ी मुसीबतें न खड़ी कर दें?



जब भी बात गठिया की होती है तो सबसे पहले हमारे दिमाग में शारीरिक निष्क्रियता, व्यायाम की कमी, विटामिन-डी और कैल्शियम की कमी जैसी स्थितियां आती हैं। गठिया के लिए निश्चित ही इन्हें महत्वपूर्ण कारक माना जाता रहा है पर क्या आज जानते हैं कि कुछ प्रकार के आर्थराइटिस के लिए आप नहीं बल्कि आपका शरीर ही जिम्मेदार हो सकता है। रूमेटाइड आर्थराइटिस ऐसा ही आर्थराइटिस है। 

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, यह कोई साधारण जोड़ों का दर्द नहीं, बल्कि एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली गलती से जोड़ों की कोशिकाओं को ही दुश्मन मानने लगती है और इसपर हमला कर देती है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 25 से 40 की आयु वालों में ये समस्या तेजी से बढ़ रही है।

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गठिया और जोड़ों में दर्द की समस्या - फोटो : Freepik.com

रूमेटाइड आर्थराइटिस और इसका बढ़ता खतरा

आर्थराइटिस-गठिया रोग के दूरगामी प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस रोग से बचाव को लेकर लोगों को अलर्ट करने के उद्देश्य से हर साल 12 अक्तूबर को वर्ल्ड आर्थराइटिस डे (विश्व गठिया दिवस) मनाया जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, रूमेटाइड आर्थराइटिस के प्रति जागरूकता बढ़ाना आज के समय की जरूरत है, क्योंकि यह सिर्फ बुजुर्गों का नहीं, बल्कि हर युवा का संभावित खतरा बन चुका है। समय पर अगर इसकी पहचान हो जाए तो इलाज और थेरेपी के माध्यम से लक्षणों को कम करने और दर्द से राहत पाने में आराम मिल सकता है।

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आर्थराइटिस और जोड़ों की समस्याएं - फोटो : Adobe Stock

पहले जानिए क्या है रूमेटाइड आर्थराइटिस

रूमेटाइड आर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली गलती से अपने ही जोड़ों पर हमला करने लगती है। आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी रोगजनकों को पहचानकर उनपर हमला करती है जिससे शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाया जा सके, हालांकि रूमेटाइड आर्थराइटिस की स्थिति में इम्यून सिस्टम अपनी ही कोशिकाओं पर हमला कर देता है। 

जोड़ों की कोशिकाओं पर होने वाले अटैक के कारण जोड़ों में सूजन, दर्द, जकड़न और धीरे-धीरे हड्डियों में कमजोरी आने लगती है। इस तरह का आर्थराइटिस शरीर के कई हिस्सों जैसे  हाथ, पैर, कलाई, घुटनों और टखने के जोड़ कहीं पर भी हो सकता है।

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हड्डियों की समस्या - फोटो : Freepik.com

क्यों बढ़ती जा रही है गठिया की दिक्कत

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, कुछ प्रकार की आनुवंशिकी और पर्यावरण कारक इस तरह के गठिया का कारण हो सकते हैं। इसके अलावा धूम्रपान, गड़बड़ जीवनशैली, अस्वास्थ्यकर खानपान, और लंबे समय तक तनाव जैसी आदतें भी जोखिमों को बढ़ाने वाले हो सकती हैं।

रूमेटाइड आर्थराइटिस के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और शुरुआत में सामान्य दर्द या थकान की तरह महसूस होते हैं। शुरुआत में यह बीमारी एक या दो जोड़ों तक सीमित रहती है, लेकिन धीरे-धीरे दोनों तरफ के समान जोड़ों को प्रभावित करती है।

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धूम्रपान के नुकसान - फोटो : Freepik.com

इससे बचाव के लिए क्या उपाय करें?

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं,  रूमेटाइड आर्थराइटिस चूंकि ऑटोइम्यून रोग है इसलिए इसे पूरी तरह रोकना कठिन है, लेकिन संतुलित जीवनशैली और सही आदतों से इसके खतरे को काफी कम किया जा सकता है। गठिया रोग के खतरे को कम करने के लिए आहार में सुधार करें।

ओमेगा-3 फैटी एसिड वाली चीजें, हरी सब्जियां, फल, और एंटीऑक्सीडेंट युक्त भोजन जोड़ों के सूजन को कम करते हैं। इसके अलावा योग, स्ट्रेचिंग और शारीरिक एक्टिविटी से जोड़ों की लचक बनी रहती है और सूजन घटती है।

धूम्रपान और शराब से ऑटोइम्यून रोगों के ट्रिगर होने का खतरा रहता है इसलिए इन दो आदतों से भी दूरी बनाना जरूरी है।



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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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