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Ujjain Mahakal: महाकाल ने गोपालजी को सौंपी सृष्टि की बागडोर, रात 2 बजे मंदिर लौटी बाबा की सवारी, उमड़ा जनसैलाब

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: अर्पित याज्ञनिक Updated Tue, 04 Nov 2025 09:40 AM IST
सार

रात 11 बजे महाकाल की सवारी राजसी वैभव के साथ निकली और आधी रात गोपाल मंदिर पहुंची, जहां विशेष पूजा-अर्चना के बाद रात 2 बजे वापसी हुई। धार्मिक मान्यता के अनुसार देव उठनी एकादशी से वैकुंठ चतुर्दशी तक यह सत्ता हस्तांतरण शिव और विष्णु के बीच होता है, जिसे "हरिहर मिलन" कहा जाता है।

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Ujjain Mahakal: In Harihar Milan, Mahakal handed over the reins of the universe to Gopalji.
बाबा महाकाल की सवारी। - फोटो : अमर उजाला

श्री सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट के प्रसिद्ध गोपाल मंदिर में सोमवार-मंगलवार की दरमियानी 12 बजे हरिहर मिलन हुआ और भगवान महाकाल ने गोपालजी को सृष्टि का भार सौंपा।


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Ujjain Mahakal: In Harihar Milan, Mahakal handed over the reins of the universe to Gopalji.
बाबा की सवारी में उमड़ा जनसैलाब। - फोटो : अमर उजाला

दोनों को पहनाई गई माला
भगवान महाकाल की ओर से पुजारी ने गोपालजी को बिल्व पत्र की माला पहनाई गई। वहीं भगवान गोपालजी की ओर से महाकाल को तुलसी की माला पहनाई गई। उसके बाद गोपाल मंदिर के पुजारी ने अवंतिकानाथ को वस्त्र, फल, सूखे मेवे, मिष्ठान आदि भेंट किए।

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सवारी में शामिल हुए अधिकारी। - फोटो : अमर उजाला
रात 11 बजे निकली हरिहर मिलन सवारी
महाकालेश्वर मंदिर से रात 11 बजे हरिहर मिलन की सवारी शुरू हुई। राजसी वैभव के साथ निकलने वाली सवारी में पुलिस का अश्वरोही दल, पुलिस बैंड, सशस्त्र बल की टुकड़ी तथा अग्निरोधी दस्ता शामिल रहे। 
Ujjain Mahakal: In Harihar Milan, Mahakal handed over the reins of the universe to Gopalji.
बाबा महाकाल का हरिहर मिलन। - फोटो : अमर उजाला
रात 2 बजे हुई वापसी
महाकाल मंदिर से शुरू होकर सवारी कोटमोहल्ला, गुदरी चौराहा, पटनी बाजार होते हुए रात 12 बजे गोपाल मंदिर पहुंची। यहां सभा मंडप में भगवान महाकाल को गोपालजी के सम्मुख विराजित कर पूजा अर्चना की गई। पूजन पश्चात रात 2 बजे भगवान महाकाल की सवारी पुन: मंदिर के लिए रवाना हुई।

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बाबा की सवारी का हुआ भव्य स्वागत। - फोटो : अमर उजाला
यह है हरिहर मिलन की मान्यता
मान्यता के अनुसार देव शयनी एकादशी से चार माह के लिए भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने चले जाते हैं। तब पृथ्वी लोक की सत्ता शिवजी के पास होती है। फिर जब देव उठनी एकादशी पर विष्णुजी जागते हैं तब वैकुंठ चतुर्दशी के दिन शिवजी यह सत्ता पुनः विष्णुजी को सौंपकर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। इसी परंपरा को हरि-हर मिलन कहते हैं।
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