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Akshay tritiya 2021: बहुत पवित्र होती है अक्षय तृतीया की तिथि, जानिए इससे जुड़ी खास बातें
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: Shashi Shashi
Updated Tue, 04 May 2021 05:54 PM IST
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अक्षय तृतीया 2021
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वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है। कई स्थानों पर इस तिथि को अखतीज के नाम से भी जाना जाता है। इस बार अक्षय तृतीया का पर्व 14 मई 2021 को मनाया जाएगा। यह तिथि बहुत ही शुभ और पुण्यदायिनी मानी गई है। जानकारों के अनुसार इस दिन यदि कोई भी शुभ कार्य करना हो तो पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती है। माना जाता है कि इस दिन किए गए दान पुण्य का फल अक्षय होता है यानी जिसका नाश नहीं होता है। मान्यता है कि इस दिन खरीदे गए सामान की अक्षय बढ़ोत्तरी होती है, इसलिए लोग इस दिन सोने चांदी के बने आभूषणों और चीजों की खरीददारी भी करते हैं। अक्षय तृतीया कई मायनों में बहुत ही खास तिथि मानी जाती है। तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
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भगवान परशुराम।
- फोटो : सोशल मीडिया।
ग्रंथो में मिलने वाली पौराणिक कथाओं के अनुसार वैशाख मास की तृतीया तिथि को महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुका के यहां भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। ये भगवान श्री हरि विष्णु के छठें अवतार माने जाते हैं। यही कारण है कि इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाते हैं और इस दिन भगवान परशुराम और श्री हरि विष्णु की पूजा करने का विधान है।
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अक्षय तृतीया 2021
- फोटो : अमर उजाला
अक्षय तृतीया की पावन तिथि पर ही मां अन्नपूर्णा का जन्मदिवस भी मनाया जाता है। इस दिन जरूरतमंदों की सेवा करने और उन्हें भोजन कराने से मां अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं और अपना आशीर्वाद देती हैं। इस दिन मां अन्नपूर्णा के पूजन से अन्न के भंडारे सदैव भरे रहते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के अवसर पर ही महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत लिखना आरंभ किया था। महाभारत में ही भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुक के ज्ञानक्षशु खोलने के लिए उपदेश दिए हैं जो महाभारत ग्रंथ के 18वें अध्याय में श्रीमद्भागवत गीता के रूप में समाहित हैं। अक्षय तृतीया पर भगवद गीता का पाठ करना भी शुभफालदाई माना जाता है।
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अक्षय तृतीया 2021
- फोटो : laxmi
मान्यातओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने भगवान कुबेर को माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने को कहा था, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा आज तक चली आ रही है। इससे धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है।
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