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Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में नाम-जप के नियम और सावधानियां
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: श्वेता सिंह
Updated Sat, 22 Nov 2025 09:31 AM IST
सार
Benefits of Name-Recitation: प्रेमानंद जी महाराज का संदेश केवल ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन को पवित्र दिशा देने वाला व्यावहारिक मार्ग है; और उस मार्ग में नाम-जप सर्वोच्च साधन है लेकिन उसके साथ शुद्धता भी अनिवार्य है।
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महाराज जी बार-बार बताते हैं कि भगवान तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग नाम-स्मरण है, एक ऐसा मार्ग जिसे कोई भी, किसी भी परिस्थिति में चल सकता है।
- फोटो : mathura
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विस्तार
How to Recite Saint Name: पूज्य प्रेमानंद जी महाराज आज के समय के उन विरक्त संतों में से हैं, जिनकी वाणी में सरलता भी है और गहराई भी। उनके प्रवचनों में शास्त्रों की मर्यादा, भक्ति की मधुरता और जीवन को बदल देने वाली आध्यात्मिक प्रेरणा सहज रूप से मिलती है। महाराज जी बार-बार बताते हैं कि भगवान तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग नाम-स्मरण है, एक ऐसा मार्ग जिसे कोई भी, किसी भी परिस्थिति में चल सकता है।
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उनकी वाणी में प्रेम है, करुणा है, और एक सच्चा आग्रह है कि मनुष्य अपने जीवन को हल्का बनाए, पवित्र बनाए और भगवान के नाम में दृढ़ आस्था पैदा करे। महाराज जी बहुत सरल शब्दों में समझाते हैं कि नाम-जप केवल होंठों का कार्य नहीं, बल्कि हृदय की पुकार है और तभी वह फल देता है। इसी भावना को स्पष्ट करने के लिए वे नाम-जप से जुड़े दस नाम-अपराधों की ओर ध्यान दिलाते हैं क्योंकि नाम कितना ही पवित्र क्यों न हो, यदि साधक इन अपराधों में फँस जाए, तो नाम का फल उपलब्ध नहीं होता।
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भगवान शंकर और भगवान श्रीहरि में भेद करना भक्तिभाव को कमजोर करता है।
- फोटो : adobe stock
- संतों की निंदा: सबसे पहला और बड़ा अपराध है संत, महापुरुषों और संत पुरुषों की निंदा करना। यदि हम संतों का अनादर करेंगे तो नाम-जप का फल सही रूप में नहीं मिलेगा।
- शिव और विष्णु में भेद मानना: भगवान शंकर और भगवान श्रीहरि में भेद करना या उनके नामों को अलग समझना दूसरा अपराध है। नाम में भेद करना भक्तिभाव को कमजोर करता है।
ज्ञान देने वाले गुरु का अनादर करना तीसरा अपराध है।
- फोटो : Instagram/bhajanmarg_official
- गुरु का अपमान: ज्ञान देने वाले गुरु का अनादर करना तीसरा अपराध है। गुरु का सम्मान करना और उनके निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।
- शास्त्रों की निंदा: कोई एक शास्त्र प्रिय होने के बावजूद अन्य वेद, पुराण, उपनिषद या संत वाणियों की निंदा करना चौथा अपराध है। सभी शास्त्रों का सम्मान करना चाहिए।
नाम से बड़ा कोई पुण्य नहीं, कोई तीर्थ नहीं
- फोटो : mathura
- नाम-महिमा को गलत समझना: भगवान के नाम की महिमा जैसे “नाम से बड़ा कोई पुण्य नहीं, कोई तीर्थ नहीं” इसे केवल शब्दों का उत्साह या अतिशयोक्ति समझना पाँचवाँ अपराध है।
- पाप करके नाम से धो डालने की सोच: दिनभर पाप करने के बाद शाम को नाम जप करके सब पाप मिटने की धारणा रखना छठा अपराध है। ऐसा करने से नाम का फल नहीं मिलता।
पैसे या स्वार्थ के लिए किसी को नाम देना
- फोटो : Instagram
- नाम को अन्य साधनों से छोटा समझना: नाम से बड़ा कोई यज्ञ, तप, दान, व्रत नहीं फिर भी अन्य कर्मों को नाम से श्रेष्ठ मानना सातवाँ अपराध है।
- लोभ से नाम देना या जबरदस्ती दीक्षा देना: पैसे या स्वार्थ के लिए किसी को नाम देना, या नाम-सुनना न चाहने वाले को जबरदस्ती दीक्षा देना आठवाँ अपराध है।
नाम केवल सुनने से नहीं, मन से करने से फल देता है।
- फोटो : X@dimo_tai
- नाम की महिमा सुनकर भी जप न करना: नाम की महिमा सुनने के बावजूद मन से नाम-जप न करना नौवाँ अपराध है। नाम केवल सुनने से नहीं, मन से करने से फल देता है।
- अहंकार और सांसारिक बंधनों में फँसना: नाम की महिमा सुनने के बाद भी “मैं, मेरा, मेरे पद” में अटका रहना, विषय भोगों में लिप्त रहना और भगवान के नाम का आश्रय न लेना दसवाँ अपराध है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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