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Shardiya Navratri 2025: नवरात्रि के पहले दिन क्यों बोए जाते हैं जौ? जानें इसके पीछे की धार्मिक मान्यता
ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Tue, 16 Sep 2025 12:37 PM IST
सार
नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना और जौ बोने की परंपरा के साथ होती है। इसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि परंपरा के पीछे क्या मान्यता है।
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नवरात्रि में क्यों बोए जाते हैं जौ?
- फोटो : Amar Ujala
Shardiya Navratri 2025: सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का बड़ा महत्व है। यह पर्व देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की साधना और उपासना के लिए समर्पित होता है। इन नौ दिनों में श्रद्धालु माता से शक्ति, साहस और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन दिनों में माता की उपासना करने से घर-परिवार में सुख, शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है। नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना और जौ बोने की परंपरा के साथ होती है। इसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि परंपरा के पीछे क्या मान्यता है।
क्यों बोए जाते हैं जौ?
आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार जौ को अनाज का प्रथम रूप माना गया है। माना जाता है कि यदि जौ अच्छे से अंकुरित होते हैं, तो पूरे वर्ष घर में खुशहाली और आर्थिक स्थिरता बनी रहती है। वहीं यदि इनके विकास में रुकावट आती है, तो इसे भविष्य में आने वाली चुनौतियों का संकेत माना जाता है। यही कारण है कि नवरात्रि में जौ बोना शुभ संकेत देता है।
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नवरात्रि में क्यों बोए जाते हैं जौ?
- फोटो : freepik
क्या है पौराणिक मान्यताएं?
पुराणों बताया गया है कि जब असुरों का अत्याचार बढ़ा, तब देवी दुर्गा ने उनका वध कर पृथ्वी को बचाया। उस समय भयंकर सूखा और अकाल पड़ा था। देवी की विजय के बाद जब धरती फिर से हरी-भरी हुई, तो सबसे पहले जौ उगे। तभी से जौ को उर्वरता, समृद्धि और जीवनदायी अनाज का प्रतीक माना जाने लगा।
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नवरात्रि में क्यों बोए जाते हैं जौ?
- फोटो : freepik
एक अन्य कथा के अनुसार सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी ने जिन वनस्पतियों को जन्म दिया, उनमें जौ सबसे पहले प्रकट हुए। इसी कारण नवरात्रि के प्रथम दिन जौ बोने और उनकी पूजा करने की परंपरा है। यह प्रतीक है कि हर बार नई शुरुआत धरती को जीवन और सम्पन्नता से भर देती है।
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जौ बोने की विधि
- फोटो : adobe
जौ बोने की विधि
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही मिट्टी के पात्र में स्वच्छ मिट्टी डालकर जौ बोए जाते हैं।
इस पात्र को माता के समक्ष रखा जाता है और नौ दिनों तक नियमित रूप से जल अर्पित किया जाता है।
जौ का अंकुरण जीवन में ऊर्जा, प्रगति और मंगलकारी फल का प्रतीक माना जाता है।
माना जाता है कि जितने तेजी और मजबूती से यह उगते हैं, उतना ही परिवार के लिए शुभ और लाभकारी समझा जाता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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